गूगल से साभार |
मैनें तो एक बात यह भी सीखी है जी यहां (ब्लॉगिंग में) आकर कि बडी-बडी डिग्री पा लेने, खूब पढ-लिख लेने, खूब पैसा कमा लेने, बडा पद पा लेने, दुनिया-जहान घूम लेने के बाद भी बहुत से लोग अपने घटिया विचारों से छुटकारा नहीं पा सकते। बढिया और घटिया का पैमाना मेरे विचार में यही है कि जिस बात या कर्म से किसी के दिल को ठेस पहुंचे, वह घटिया है और जिस बात से किसी को आनन्द की अनुभूति हो वही बढिया है। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि "सत्य" तो कहा जायेगा, चाहे उससे किसी को ठेस पहुंचे। कृप्या मुझे बतायें कि क्या सचमुच सत्य कहने से किसी को चोट लगती है?