23 December 2010

नीरज की छलांग, पाबला जी की सीट और शादी के बाद जिन्दगी

कल बात अधूरी रह गई थी। अचानक याद आया कि कवि सम्मेलन के स्मृति चिन्ह लेने दरीबां जाना है। लेकिन स्मृति चिन्ह पर लिखाई यानि फॉन्ट पसन्द नही आया। इतना बडा और बोल्ड कर दिया था कि नीचे प्लेट की चमक (ग्रेस/शाईनिंग) समाप्त हो गई थी। मुझे बिना प्रूफ दिखाये दुकानदार ने ऐसी छपाई करवा दी। मंच की जगह भी पढने में गंच ही आ रहा था। और अब दुकानदार अपनी गलती मानने को भी तैयार नहीं। खैर जब चीज ही पसन्द नहीं आयी तो लेने का कोई फायदा नहीं दुबारा से बनाने के लिये ऑर्डर दे आया हूँ। जिस चीज के लिये 6250 रुपये खर्च होने थे, अब 7500 रुपये देने होंगे। खैर अपना क्या है जी, सब जनता का है। अपनी तो रुपयों पर ना स्याही लगी और ना कागज। कहते हैं ना कि तेरा ही चून और तेरा ही पुन्न, अपनी तो बस वाह-वाह है। :-)

नीरज जाटजी
अरे ये क्या पुराण शुरु हो गई। हाँ याद आया मैं और पाबला जी चाय पीते हुये बातें कर रहे थे कि नीरज जाटजी पहुँच गये। पाबला जी उनके लिये भी चाय लेने गये और फिर से दो कप चाय ले आये। दूसरी चाय भी मेरे ही हाथ में थमा दी। यानि एक साथ दो-दो कप चाय पिलाई, उन्होंने मुझे। तभी अचानक पाबला जी और नीरज जी दोनों के हाथों में उनके हथियार नजर आये और कर्र-कर्र, क्लिक-क्लिक और शूट-शूट-शूट। चारों तरफ प्लेटफार्म पर खडे लोग इधर-उधर भागे नहीं और हम तीन अजीब से जीवों को देखने लगे। जो ब्लॉग के बारे में नहीं जानता, उसे तो ब्लॉगर शायद परग्रही ही लगते होंगे, है ना? अब लगता है कि मुझे भी एक कैमरा खरीद ही लेना चाहिये, क्योंकि अब तो मैं भी ब्लॉगर बन गया हूँ(?) हालांकि कई जगहों पर प्रभाव डालने कि कोशिश की है कि मैं एक ब्लॉगर हूँ, लेकिन ये भारतीय वेटर, रिक्शा चालक, मोची, ड्राईवर कोई मुझे तरजीह ही नहीं देता। :-)

फोटो सैशन होते-होते ही पाबला जी की ट्रेन का प्लेटफार्म पर पदार्पण हो गया। मैनें जल्दी से पाबला जी से पूछा कि जरनल बोगी में इतनी भीड में सीट का इंतजाम कैसे करेंगें? पाबला जी कुछ कहते इससे पहले ही नीरज जी ने छलांग लगाई और ट्रेन रुकने से पहले ही ट्रेन के अन्दर जाकर एक बडी वाली सीट पर पसर गये। सोना-चाँदी च्यवनप्राश वालों को अपने विज्ञापन के लिये नीरज जाटजी से कॉन्टैक्ट करना चाहिये। :-) मैं और पाबला जी उस बोगी तक पहुंचे तब तक बोगी पर हाऊसफुल का बोर्ड टंग चुका था। नीरज जी के पास पाबला जी का सामान रखकर हम टी टी को ढूँढने लगे कि उन्हें बर्थ का इंतजाम हो जाये। भई, विटामिन एम ऐसा विटामिन है जिससे जिन्दगी में ज्यादतर आराम खरीदा जा सकता है। लेकिन पाबला जी के लिये शायिका का इंतजाम नही हो पाया।   अब उनके सामने दो ही रास्ते थे, या तो नीरज जी द्वारा पकडी (घेरी) गई जरनल बोगी की सीट पर ही 23-24 घंटे का सफर करें या रिस्क लेकर शायिका वाली आरक्षित बोगी में जा चढें और टिकट पर्यवेक्षक (टी टी) के आने पर शायिका के इंतजामात की कोशिश करें (भीड-भाड को देखते हुये यह उम्मीद कम ही थी कि ऐसा हो पायेगा) खैर तब तो आगे किसी स्टेशन पर टी टी से बात करने का मन बना कर, पाबला जी जरनल बोगी में ही बैठ गये और मैं और नीरज उन्हें यात्रा के लिये शुभकामनायें देते हुये स्टेशन से बाहर आ गये।

ऑटो ड्राईवर
स्टेशन से निकलकर हमने अजमेरी गेट के लिये ऑटो किया। नीरज जी सांपला में कवि-सम्मेलन के बारे में जानने-बूझने लगे। बातों का रुख मुडकर उनकी यात्राओं तक और वहां से शादीशुदा जिन्दगी की तरफ आ गया। ऑटो ड्राईवर जी जो अभी तक हमारी बातें चुपचाप सुन रहे थे, उन्होंने कहा - "शादी के बाद जिन्दगी ऐसे गुजर जाती है जैसे सुबह से शाम हो जाती है" यानि शादी के बाद बीवी-बच्चों और नून-तेल-लकडी के चक्कर में आदमी खुद को इतना भूल जाता है कि पता ही नहीं चलता कि कब समय बीत गया। मुझे उनकी यह बात भा गई क्योंकि मैं खुद नहीं जानता कि मेरी शादी के आठ साल इतनी तेजी से कैसे गुजर गये। या तो मैं इस बीच बहुत खुश रहा इसलिये? या नून-तेल-लकडी के फेर में समय के बीतने का पता ही नहीं चला इसलिये?

11 comments:

  1. सच कह रहे है खुशहाल जिंदगी के बीतने का पता ही नहीं चलता है |

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  2. आप तो लेखन में माहिर होते जा रहे हैं भाईजी। संस्मरण में भी अच्छा हाथ साफ़ कर लिया है। :)

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  3. आपके संस्‍मरण पढकर लगा जैसे हम भी आपके साथ हों।

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    मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्‍स।

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  4. नीरज की छलांग, पाबला जी की सीट और शादी के बाद जिन्दगी
    ...............बहुत खूब, लाजबाब !

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  5. समय भी भड़भड़ाकर भागने लगता है, विवाह के पश्चात।

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  6. मैरिज एनिवर्सरी तो नहीं है आज कल में?

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  7. अजमेरी गेट पर रिक्शा वाले भी बडे चाव से हमारी बातें सुन रहे थे। वे सोच रहे थे कि हम टूरिस्ट हैं।

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  8. भाई नीरज की उम्र ऐसी है कि वे यह कारनामा कर सकते हैं। हम भी उस उम्र में सिनेमा का टिकट सबसे पहले ले लिया करते थे, चाहे लाइन कितनी ही लंबी क्यों न रही हो। वैसे भी यह कारनामा न आता होता तो नीरज इतनी यात्राएँ नहीं कर सकते थे।
    पाबला जी से फोन पर पूछते हैं कहाँ तक पहुँचे और कैसे?

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  9. नीरज जाट जिन्दावाद जी,हमे भी अपने दिन याद आ गये..... पावला जी पहुच गये होगे अब तक तो अपने डेरे पर, हम ने भी बहुत सफ़र किया हे जनरल बोगी मे, अब साले हम अग्रेज बनते जा रहे हे, लेकिन मै धीरे धीरे लोट रहा हुं अपनी ओकात पर, यानि अब बस ओर ट्रेन मै सफ़र करना चाहता हुं बस एक दर हे अंदर, ओर हां यह ऑटो ड्राईवर को क्यो छोड दिया जी इस की शकल तो पुरी ब्लांगर बनने की हे, ओर उस ने बात भी बिलकुल सही कही,हमे शादी किये २२,२३ साल हो गये हे, कभी कभी लगता हे अभी तो कुडमाई(सगाई ) ही हुयी हे

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  10. जो ब्लॉग के बारे में नहीं जानता, उसे तो ब्लॉगर शायद परग्रही ही लगते होंगे,

    ये बिल्कुल सही है :-)

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  11. शादी के बाद जिन्दगी ऐसे गुजर जाती है जैसे सुबह से शाम हो जाती है

    पता नहीं, अभी तो सूरज दोपहर की गर्मी दिखा रहा है :-)

    खैर, आप दोनों के सहयोग से जनरल डब्बे में हड़पी गई जगह का इस्तेमाल कर सकुशल अपने घर पहुँच गया हूँ। आप दोनों से फुरसत के साथ मिलने की तमन्ना है अब

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