22 December 2010

"पंजाबी ऐसे ही होते हैं" सही कह रहे हैं पाबला जी

प्रतिदिन सैंकडों चेहरे देखते हैं हम, दसियों नये लोगों से मिलना भी होता है। लेकिन चुनिंदा लोग होते हैं, जिन्हें हम याद रख पाते हैं? केवल अंगुलियों पर गिने जाने लायक। इसी तरह ब्लॉगिंग में भी है। कुछेक ब्लॉगर हैं जिनसे मिलने की उत्कंठा चरम तक हो जाती है। वो बात अलग है कि हम सबसे मिलना-जुलना चाहते हैं, लेकिन कुछ ब्लॉगर तो आपकी पसन्दीदा सूचि में भी जरुर होंगे। 

कहते हैं कि विपरीत की तरफ हमेशा आकर्षण होता है। मैं स्वीकार करता रहा हूँ कि मैं थोडा भीरु प्रवृति का प्राणी हूँ और जिस बात की मुझमें कमी है, वही दूसरे में प्रचुर दिख जाये तो मेरे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है।

ऐसे ही एक जीवटता के धनी ब्लॉगर श्री बी एस पाबला जी से मिलने का मेरा सपना 21-12-10 को पूरा हुआ। पाबला जी से उनकी मारुति वैन से लम्बी यात्रा वाली हिम्मत के कारण मैं उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हूँ। बेटे गुरप्रीत के साथ सडक दुर्घटना हो जाने के कारण पाबला जी रोहतक में तिलयार पर ब्लॉगर मित्र मिलन में नहीं आ पाये थे। (रोहतक में मिलन की तारिख से कुछ पहले ही ब्लॉगजगत में इसी तरह की कुछ खेदजनक  घटनाओं ने मेरा उत्साह पहले ही ठंडा कर दिया था। इसलिये उस मीट में मुझे ज्यादा अच्छा नहीं लगा था और दिल उदास रहा था) 

श्री बी एस पाबला जी
शनिवार, 18 दिसम्बर 2010 को रात 10 बजे के लगभग श्री बी एस पाबला जी के नाम से मोबाईल खनक और चमक उठा। एक आश्चर्यमिश्रित मुस्कान आ गई मेरे चेहरे पर। उन्होंने बताया कि दिल्ली में हैं और मैं उनसे कल छतीसगढ भवन, चाणक्यपुरी में श्री अशोक बजाज जी के साथ ही कई अन्य ब्लॉगर मित्रों से भी मिल सकता हूँ। लेकिन यहां सांपला में कवि सम्मेलन का आयोजन और व्यवस्था पर विचार करने के लिये मैनें कुछ मित्रों को भी रविवार को ही आंमत्रित कर रखा था। मैनें पाबला जी से कहा कि आप कब तक दिल्ली में हैं? उन्होंने बताया कि सोमवार को उनकी  3:25 दोपहर की ट्रेन है और 1:30-2:00 बजे तक रेलवे स्टेशन पर पहुंच जायेंगे। तो ठीक है जी, मैं आपसे सोमवार को रेलवे स्टेशन पर मिल सकता हूँ। फोन कटने के बाद भी बहुत खुशी सी महसूस हो रही थी कि मुझे पाबला जी से मिलने का सौभाग्य मिलने वाला है।

सोमवार को मैनें मेरे प्रिय श्री नीरज जाटजी को फोन करके बताया कि 1:30 पर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। पाबला जी 1:10 पर स्टेशन पर पहुंच गये और मुझे फोन किया। मैं ठीक 1:30 पर स्टेशन पर पहुंच गया। पाबला जी मेरा इंतजार कर रहे थे। मुझे लगा पिछले कुछ समय में घटित घटनाओं ने  उनके चेहरे पर अभी तक अपनी रेखायें छोड रखी हैं। (खुद का वैन यात्रा में चोटिल होना, पुत्र का बुरी तरह बाईक दुर्घटना में जख्मी होना, माता जी का स्वर्गवास, भाई और खुद का हृदयाघात झेलना) लेकिन उनके जज्बे, हिम्मत, जीवटता और ऊर्जा में कोई कमी नही आयी है। अब एक और परेशानी उनकी तरफ मुँह बाये खडी थी, वो ये कि उनका ई-टिकट कन्फर्म ना होने के कारण रद्द हो गया था। अभी सोच-विचार कर रहे थे कि क्या करें। फिर उन्होंने परिस्थितियों को धता करने के लिये जरनल टिकट खरीदा और हम प्लेटफार्म पर आ गये। पाबला जी चाय-बिस्किट ले आये और हम दोनों बैठ कर खाते-पीते हुये ब्लॉगिंग और घर-परिवार की बातें करने लगे।  मैनें उनसे कहा कि आप कमाल के हैं, तो उनका जवाब था  "पंजाबी ऐसे ही होते हैं"। हाँ सचमुच कमाल के होते हैं। बातों में कब एक घंटा बीत गया, पता ही नहीं चला।  नीरज जाटजी अभी तक हाजिर नहीं हुये थे। 

अरे अभी याद आया  कवि-सम्मेलन के लिये स्मृति चिन्ह बनने दिये थे, अभी लेने जा रहा हूँ।  आगे की बातें बाद में बताऊंगा….….

11 comments:

  1. पाबला जी का निस्संदेह पिछला समय बहुत बुरा गुज़रा है ! मगर दुर्घटनाएं हमारे हाथ में नहीं होतीं , इश्वर से प्रार्थना है यह कष्ट किसी को न दे ! शुभकामनायें उनको !

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  2. सरदार ऐसे ही होते है इसीलिये उन्हें सरदार कहते है |

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  3. पाबलाजी के चेहरे में उत्साह छलकता है, यह उनके व्यक्तित्व का प्रभाव है या पंजाबी होने का, जो भी है, सीखने योग्य है।

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  4. पाबला जी ने सही कहा कि पंजाबी होते ही ऎसे हे, सब से बखरे... धन्यवाद

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  5. देखने में लगता है कि शक्तिशाली दिमाग को बांध कर रखते हैं मगर आप सलाह मांग कर तो दखिए दिल खोल कर मदद के लिए तत्पर रहते हैं। पाबला का बावला हर वह ब्लॉगर है जिसने उन्हे थोड़ा भी जाना।

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  6. देश को गर्व रहा है और है अपने पंजाबी भाइयों पर । पाबला जी से मिलने का सौभाग्य नहीं मिला है ,पर सुना है आपके बारे में जिंदा दिल हैं । शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ । शुभकामनाएं । आपको कोटिशः धन्यवाद ।

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  7. सच मे पंजाबी कुछ ऐसे ही होते हैं।मैं भी पंजाबी हूँ ना। हा हा हा। आशीर्वाद।

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  8. पाबला जी को सादर शुभकामनाएं!

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  9. एक बार अलबेला खत्री जी ने कहा था कि किसी भी शब्द से पहले ‘अ’ लगा दो, मतलब उलट जाता है।
    लेकिन सरदार से पहले ‘अ’ लगा देने से वह असरदार हो जाता है।
    ऐसे ही होते हैं सरदार।
    मैं अभी थोडी देर में आ रहा हूं। स्टेशन के बाहर गोल गप्पे वाला खडा है।

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  10. आपका स्नेह साफ दिख रहा अभिव्यक्ति में

    रेल्वे स्टेशन पर एकाएक उत्तपन्न उलझनों के कारण इस मुलाकात में एकाग्र नहीं हो सका था। फिर से मुलाकात की इच्छा है। चलिए एक बार हम दोनों मोटरसायकल पर यात्रा करते हैं उत्तर भारत की -पंजाबी ऐसे ही होते हैं :-)

    नीरज से मिलना अप्रत्याशित रहा

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