बात 1991-1992 के बाद की है, जब मैनें दसवीं पास की थी। उस समय "टोटा" मुझसे कहता था कि "तेरे से अच्छा दोस्त नहीं मिलेगा।" मैं अब तेरे साथ रहूंगा। मेरे पिताजी का साथ भी वह बडे दिनों से निभाता आया है। ना-ना आप गलत समझे जी "टोटा" किसी आदमी का नाम नहीं। अरे नहीं लडकियों के मामले मैं बहुत शरीफ हूँ। मैं उन्हें "टोटा, पटाखा या गंडासा" आदि किसी नाम से नहीं पुकारता। जी नहीं ये सिगरेट का लोगड वाला हिस्सा (फिल्टर वाला हिस्सा) भी नहीं। ये "टोटा" है "तंगी" माने "आर्थिक तंगी" वाला।
तो "टोटा" मुझसे कहता कि मैं तेरा पीछा नहीं छोडूंगा। अब मैनें भी तबतक किसी का दिल नहीं तोडा था, तो इसका क्या तोडता। ठीक है भाई, आजा, पर मेरी एक बात सुनले, मेरी दोस्ती खुभात के गेलां भी सै (परिश्रम के साथ भी है) और मैं उसका साथ नहीं छोड सकता। तो जी हमने तो खुभात को गले लगा रखा था और टोटे ने हमें। अप्रत्याशित खर्चें अपने साथ टोटे को लेकर आते और टोटा मुझसे चिपका रहता। हालांकि खुभात के सामने आते ही टोटा पता नहीं कहां भाग जाता था।
इस टोटे से पिंड छुडवाने के लिये हमने क्या-क्या उपाय नहीं किये। खुभात और मैनें मिलबैठ कर बडे-बडे प्लान बनाये। फिर भी ये लुका-छुपी पूरे दस साल तक यानि 2002 तक चलती रही।
टोटा = कमी, आर्थिक तंगी, हानि
खुभात = मेहनत, परिश्रम
लोगड = पुरानी रजाई से निकली रुई
अच्छी रचना पोस्ट की है ........
ReplyDeleteजाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....
कहया करैं सै,
ReplyDeleteबाणिया का बेटा कदी टोटे का सौदा कोनी करता।
अरे भाई तन्नै किस तरियाँ कर लिया?
या तो घणी चो्खी बात बताई।
राम राम
जाना टोटे का फंडा... रोचक अभिव्यक्ति.....आभार
ReplyDeleteफिर भी ये लुका-छुपी पूरे दस साल तक यानि 2012 तक चलती रही।
ReplyDeleteपर 2012 अभी आया कहां है ??
@ आदरणीया संगीता पुरी जी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद,चेताने के लिये
टंकण की त्रुटि थी, दूर कर दी है।
प्रणाम स्वीकार करें
सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई!!
ReplyDeleteटोटे को साथी उपमा देकर संतोष को महत्व दिया।
यह सत्य उदघाटित हुआ कि आवश्यकता से अधिक मिलता नहिं और काम कभी रुकता नहिं।
और पुरुषार्थ का महत्व अब भी है,संघर्ष (खुभात)जारी है।
सार्थक!!
अब 2002 के बाद तो यह टोटा भाग गया ना? मुनाफे को अपने पास रखिए बस। अच्छी पोस्ट थी लेकिन बेहद छोटी थी। यहाँ भी टोटा था क्या?
ReplyDeleteआखिर टोटे से पीछा छुड़ा ही लिया ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteपुरुषार्थी का टोटा क्या बिगाड लेगा? घणी जोरदार बात सुणाई आज तो.
ReplyDeleteरामराम.
अपने हिस्से के टोटे देख लिये, अब उन्मुक्त जियें।
ReplyDeleteटोटे का फंडा आज समझ में आया...
ReplyDeleteभाई मेहनत कारी आदमी को टोटा भी छोटा ही लगता है, इस लिये आप तो मस्त मलग ओर मेहनती है, कोई फ़िक्र नही. मस्त रहो, वेसे बहुत सालो के बाद ठेठे हरियानवी पढी, धन्यवाद
ReplyDeleteभाई "टोटा" ता उम्र भर नू ही चिपका रह्वेगा. आगे कि सोच.
ReplyDeleteटोटा कै पुंजल पाड़ेगा हम जैसों की भाई। हिम्मत और मेहनत अपना काम है, करते जाना है बस।
ReplyDeleteलिखो यार अपने अनुभव कुछ, सबक मिलता है ऐसे अनुभवों से।
वाह क्या बात है! इसी तरह खुभात से टोटा को सोटा मारते रहो, एक दिन भाग जाएगा....
ReplyDeleteचलिए २००२ में ख़त्म हुआ साथ , अच्छी बात है की अब आप फायदे में हो !
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