कल मैनें आपसे "विद्यालय का अर्थ" जानना चाहा था। अभी तक मेरी दुविधा बरकरार है। आज ऊर्वशी की उसी पुस्तक हिन्दी की पाठ्य पुस्तक "बरखा" से ली गई एक कहानी की सीख (Moral) के बारे में आपसे मशविरा करना चाहता हूँ। कृप्या अपनी राय दें। कहानी इस प्रकार है :-
एक शेर शिकार के लिये निकला। रास्ते में एक लोमडी, एक चीता और एक भालू भी मिले जो शिकार की तलाश में थे। उनमें एकसाथ मिलकर शिकार करने और शिकार को आपस में बांटने पर सहमति बनी। चारों ने एकसाथ मिलकर एक हिरण का शिकार किया। लोमडी ने हिरण को चार हिस्सों में बांट दिया। शेर ने कहा - पहला हिस्सा मेरा है, क्योंकि शिकार में मैनें भी मेहनत की है। दूसरा हिस्सा भी मेरा है, क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ। तीसरे हिस्से पर भी मेरा अधिकार है, क्योंकि मेरे बच्चे भूखे हैं। चौथा हिस्सा जिसे चाहिये, वो मुझसे लडकर ले ले।
शिक्षा - ताकतवर से सभी डरते हैं।
अब आप बताईये कि क्या यह शिक्षा सही है? बच्चे इससे क्या सीखेंगें? कि यदि तुम ताकतवर हो, तो दूसरों का हक भी मार सकते है। या फिर तुम शारीरिक रुप से कमजोर हो तो अपना हक भी छोड दो।
क्या इसकी बजाय यह शिक्षा नहीं दी जानी चाहिये कि विश्वासघाती से बचकर रहो। कभी विश्वासघाती मत बनो और अगर तुम शक्तिशाली हो तो दूसरों का अधिकार मत छीनो।
आप क्या कहते हैं?
सोहिल जी, इस तरह की कहानी वास्तव में बच्चों को तो नहीं पढाई जानी चाहिए। पर क्या कहा जाए हमारे शिक्षा अधिकारियों को, किसी जान पहचान वाले की होगी, तो कैसे मना कर पाते? :)
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं, लेकिन वर्तमान में आधुनिक दर्शन यह कहता है कि जो शक्तिशाली है वह जीवित रहेगा, इसलिए हमने इस दर्शन को अपना दर्शन भी बना लिया है। जबकि भारतीय दर्शन है कि मनुष्य का कर्तव्य है कि वह चराचर जगत का संरक्षण करे। यही कारण है कि हमारी शिक्षा पद्धति आधुनिकता की दौड़ से गुजरती हुई ताकत की बात ही करती है। हमारे यहाँ ताकत दूसरों के संरक्षण के लिए थी।
ReplyDeleteसोहिल साहब मेरे शब्दकोष के हिसाब से विध का अर्थ है भेदना और आलय का अर्थ है घर .............. अत: जहां घर को भेदने अथवा सेंध लगाने की ट्रेनिंग दी जाती है उसे विद्यालय कहते है शायद...............!:)
ReplyDeleteनिस्संदेह ऐसी शिक्षा, शिक्षा नहीं दु:शिक्षा है....
ReplyDeleteबिल्कुल सही.... लगता है बच्चों को कुछ गलत ही पाठ पढाया जा रहा है.....
ReplyDeleteवर्तमान परिपेक्ष में शक्तिशाली ही जिंदा रह सकता है और वही वही अधिकारों रक्षा भी कर सकता है. इसका सटीक उदाहरण ताऊ ओबामा (अमेरिका) है. आप देख लिजिये उसकी करतूते...फ़िर आपको इस कहानी से कोई गिला शिकवा नही रहेगा. इस कहानी का संदेश स्पष्ट है कि "शासन और अधिकार केवल लठ्ठ के बल पर ही पाये और सुरक्षित रखे जा सकते हैं."
ReplyDeleteरामराम
कहानी की शिक्षा गलत हो सकती है, लेकिन आज के समय का सत्य तो यही है। हां, ऐसे सत्य का इतनी छोटी उम्र के बच्चों को भान करवाना, बल्कि इसे सबक के रूप में सिद्ध करना इन मासूमों के लिये अच्छा नहीं है।
ReplyDeleteमिलते जुलते विषय पर एक कहानी विष्णु शर्मा रचित ’पंचतंत्र’ में है। एक गीदड़ को एक मरणासन्न जानवर मिल जाता है, और फ़िर बारी बारी से उस शिकार को हथियाने के लिये शेर(बहुत शक्तिशाली), चीता(अपेक्षाकॄत शक्तिशाली), सियार(समबल) और कौआ(अपने से हीनबल) आते हैं और चतुर सियार हरेक को अलग तरीके से हैंडल करता है। मौका लगे तो बच्चों को वह कहानी सुनाना।
हम लोग अपनी विरासत को छोड़कर भेड़चाल में आकर पूरे देश का भविष्य बिगाड़ रहे हैं, और दुख ये है कि विकल्प भी नहीं दिखते।
अच्छा ये लगा इस पोस्ट में कि अपने बच्चों को टाईम देते हो, उनकी किताबें देखते हो। ये छोटी बात नहीं है।
keep it up, Amit.
इस कहानी में एक शक्ति शाली के द्वारा धोखे से कमजोर का हक़ मारना बताया गया है जो सही नहीं कहा जा सकता ! मगर यह सच है की शक्तिशाली होना अति आवश्यक है अन्यथा हर कोई यही करेगा ! शुभकामनाएं !!
ReplyDelete@ जाकिर अली 'रजनीश' जी
ReplyDeleteआपकी बात सही लगती है जी
आजकल पता नहीं कैसे शिक्षा आयोग, पब्लिशर्स आदि मिलकर उल्टी-सीधी पुस्तकें और घटिया लेखकों की घटिया सोच वाली कहानियां बच्चों को पढा रहे हैं।
@ ajit gupta जी
लेकिन यहां तो उल्टा ही हो रहा है जी।
@ पी सी गोदियाल जी
हा-हा-हा
@ भारतीय नागरिक
अब क्या करना चाहिये जी
@ डाO मोनिका शर्मा जी
आभार आपका
@ ताऊ रामपुरिया जी
सही समय पर सही चुटकी लेते हो ताऊ जी :)
क्या लट्ठ के बल पर पाये शासन और अधिकार से कोई 100% संतुष्ट हो सकता है और क्या वह हर वक्त अपनी सत्ता के छिन जाने से भयभीत नहीं रहता है। क्या उसे सम्मान मिल पाता है?
प्रणाम स्वीकार करें
@ ताऊ रामपुरिया जी
ReplyDeleteहमारे दिलों पर आपका शासन है जी, क्या सचमुच आपके लट्ठ की वजह से है:) हा-हा-हा
@ मो सम कौन जी
जी पंचतंत्र की वह कहानी तो बहुत ही बढिया है। वैसे पाठ्य पुस्तकों में पंचतंत्र की कहानियां ही होनी चाहिये।
बच्चों को पढाने की जिम्मेदारी कभी-कभी श्रीमति जी के आदेशानुसार लेनी पडती है जी। हाँ जी कभी-कभी।
विकल्प क्या है जी?
@ सतीश सक्सेना जी
ऐसे लोग अपने आपको वरिष्ठ साहित्यकार बताते हैं, जिन्हें यही नहीं पता की हमने क्या लिखा और क्या संपादन किया है। और किस उम्र के बच्चे को यह बात पढाई जायेगी।
प्रणाम स्वीकार करें
ऎसी कहानियां बच्चो को स्कुल मै बढाई जाती है? मै तो यह पढ कर ही हेरान हुं, वेसे इस किताब के लेखक, ओर हमारे शिक्षा अधिकारी ओर शिक्षा मंत्री केसे होगें जो इन छोटे बच्चो को अभी से गुंडा गर्दी ओर बकबास भरी बाते पढने के लिये मजबुर कर रहे है, तो आने वाली पीढी केसी बनेगी???
ReplyDeleteआप एकदम सही कह रहे हैं...ऐसी शिक्षा बच्चों को कतई नहीं मिलनी चाहिए...एक गीत है अल्लाह तेरो नाम,ईश्वर तेरो नाम ...उसमें एक पंक्ति है जो बचपन से सुनते आए हैं..ओ सारे जग के रखवाले, निर्बल को बल देने वाले, बलवानों को देदे ज्ञान....भला किताब वाले कैसे भूल गए....
ReplyDeleteऔर ताकतवर ऐसा ही करते हैं।
ReplyDeleteअपके होते भला हमारी क्या मजाल कुछ कह सकें? ताकतवर से सब डरते हैं।
ReplyDeleteउचित सलाह!! ताकतवर से डर तो लगता है..:)
ReplyDeleteआपकी बात सही है ,यह शिक्षा सही तो नहीं है परन्तु ये आज के समय का एक कड़वा सच है
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