20 February 2010

बकवास मत कर, सार्थक लिख


दूसरे को कमतर बता कर  खुद को सुप्रियर या ऊंचा साबित करना कितना आसान है ना। बहुत सारी पोस्ट पाठकों के लिये नही ब्लागर्स के लिये लिखी जा रही हैं।  सुपरहिट होने के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं, टिप्पणियों के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं, पोस्ट के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं।


कोई लिखता है कि आज सार्थक ब्लागिंग नहीं हो रही है, सार्थक पोस्ट नहीं लिखी जाती है। कोई किसी  पोस्ट को निरर्थक बता कर अपनी पोस्ट की सार्थकता साबित करना चाहता है। एक पोस्ट जिसे आप निरर्थक कहते हैं, उसके आधार पर आपने एक लम्बी-चौडी पोस्ट निकाल ली, क्या यह  उस पोस्ट (कथित निरर्थक पोस्ट) की सार्थकता नहीं है।


कोई किसी की पोस्ट को फालतू और गंदी बताता है। यह बताने के लिये तुम अपनी ऊर्जा, अपना समय, अपना धन, खर्च कर के एक बडी सी पोस्ट लिखते हो विरोध में। आप संदेश देते हो दूसरों को विरोध करने का और तवज्जो खुद दे रहे हो। जो आप को पढने आता है, जिसे उस ब्लाग का नाम-पता भी नहीं मालूम उसे आप अपनी गाडी में बैठाकर वहां तक छोडने जाते हो। उस पोस्ट के स्नैप अपनी पोस्ट पर लगाकर सबको पढवाते हो, तो फालतू और गंदी कैसे हुई। जिसे कोई  ब्लाग फालतू लगेगा, उसे नही जाना होगा, वह अपने आप जाना छोड देगा। प्रचार तो आप खुद कर रहे हैं,

विरोध भी तो प्रचार का ही एक रूप है।


कोई लिखता है ब्लाग पर सार्थक बहस होनी चाहिये। "सार्थक बहस" यह शब्द ही गलत है। बहस सार्थक हो ही नही सकती है।  जैसे शुद्ध अमृत या शुद्ध वनस्पति घी नही होता है। बहस तो हमेशा निरर्थक ही होती है, क्योंकि इससे कोई परिणाम नही निकल पाता है। एक के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं किसी बात के पक्ष में, दूसरे के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं उसी बात के विपक्ष में। हां विचार सार्थक हो सकते हैं, किसी विषय पर विचारों का आदान-प्रदान करना क्या बहस कहलायेगा???
कृप्या इस लेख को पढने के बाद कोई अवधारणा मन में ना रखें।  मुझ गधे के दिमाग में कुछ विचार आये तो यहां लिख दिये हैं। गधे के दिमाग में विचार आते हैं और वो ढेंचू-ढेंचू करने  ही लगता है। 

18 February 2010

मकई के दाने के गर्म होने पर आवाज कर के फटना

बातचीत रहेगी जारी, के अपने ब्लाग पर प्रकाशित करने की अनुमति मांगनें पर, श्री आनन्द शर्मा जी के अमूल्य विचार और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत एक पत्र
अन्तर सोहिल जी, नमस्कार

देशभक्तिपूर्ण कविता आपको पसंद आयी - अहोभाग्य - धन्यवाद
कविता का रचयिता इस अकिंचन का अनुज धर्मेश शर्मा है - मैंने तो केवल मात्रा / वर्तनी का संशोधन एवं संपादन किया है।
मातृभूमि भारत के प्रति देशभक्ति की भावना या रचना पर एकाधिकार अथवा नियंत्रण अवांछित है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय अपनी अपनी भाषा में अनुवाद कर के प्रसारित करे। किसी भी प्रकार का "Copy Right" नहीं है - सब कुछ "Copy Left" है।
अवश्य छापें - क्योंकि :
भारत के लोगों में देशभक्ति अक्षरशः "मरघटिया वैराग्य" जैसी है। ज्यों ही भारत पर आक्रमण होता है - जैसा की पिछले २००० वर्षों से होता आ रहा है (कोई नई बात नहीं है, आक्रमण न होना नई बात होगी), लोगों  की देशभक्ति उनींदी सी आँखों से जागती हुई प्रतीत होती है - केवल प्रतीत होती है - जागती नहीं है, बस मिचमिचाई हुई आँखों से देख - थोडा बड़बड़ा कर फिर सो जाती है - अगले आक्रमण होने तक।  मैं तो कहता हूँ कि  "मरघटिया वैराग्य" भी बहुत लम्बा समय है - यूँ कहना चाहिए कि सोडा वाटर की बोतल खोलने पर बुलबुलों के जोश जितना या फिर मकई के दाने के गर्म होने पर आवाज कर के फटना और पोपकोर्न बनने की अवधि तक - बस इतना ही - इस से अधिक नहीं। पता नहीं कितने महान लोग भारत को जगाने का असफल प्रयत्न कर कर के मर गए, परन्तु पूरे विश्व में केवल भारत के ही लोग हैं, जो ठान रक्खें हैं कि हम नहीं जागेंगे। जो जाग जाते हैं, उनके साथ ये तकलीफ़ है कि, वे दूसरों को जगाने का मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं - भूल जाते हैं कि, उनके पहले भी उनसे लाख गुना महान आत्माएं सिर पटक के थक गए - परन्तु भारत के लोग नहीं जगे।  हम आप जैसे कुछ लोग भी भारत को जगाने के प्रयास में सहयोग कर रहें है - संभवतः किसी दिन भारत की अंतरात्मा जाग जाये।  चर्मचक्षु  खुलने से जागना नहीं होता है - ज्ञानचक्षु खुलने की नितांत आवश्यकता है - Sooner the Better.
जिस प्रकार हम प्रतिदिन शौचकर्म करते हैं, स्नानादि करते हैं, भोजन करते हैं - यह नहीं कहते कि कल तो किया था फिर आज क्यों - ठीक उसी प्रकार भारत के लोगों की मूर्छित अंतरात्माको जगाने के लिए प्रत्येक जागरूक देशभक्त व्यक्ति को प्रतिदिन प्रयत्न करना है। मैं "चाहिए" शब्द के प्रयोग से बचता हूँ।  हमें प्रयत्न करना "चाहिए" नहीं - हमें प्रयत्न करना है - और करते रहना है।

आनंद जी. शर्मा
मुंबई / दिनांक : १७.०२.२०१०
प्रतिलिपि  प्रेषित की : धर्मेश शर्मा

17 February 2010

बात चीत रहेगी जारी……………


बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी

चाहे हम हों कितने तगड़े , मुंह वो हमारा धूल में रगड़े,
पटक पटक के हमको मारे , फाड़ दिए हैं कपड़े सारे ,
माना की वो नीच बहुत है , माना वो है अत्याचारी ,
लेकिन - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

जब भी उसके मन में आये , जबरन वो घर में घुस जाए ,
बहू बेटियों की इज्ज़त लूटे, बच्चों को भी मार के जाए ,
कोई न मौका उसने छोड़ा , चांस मिला तब लाज उतारी ,
लेकिन - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

हम में से ही हैं  कुछ पापी , जिनका लगता है वो बाप ,
आग लगाते  हुए वे जल मरें , तो भी उसपर हमें ही पश्चाताप ?
दुश्मन का बुरा सोचा कैसे ???  हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी ???
अब तो - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .

बम यहाँ पे फोड़ा , वहां पे फोड़ा , किसी जगह को नहीं है छोड़ा ,
मरे हजारों, अनाथ लाखों में , लेकिन गौरमेंट को लगता थोडा ,
मर मरा गए तो फर्क पड़ा क्या ? आखिर है ही क्या औकात तुम्हारी ???
इसलिए - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

लानत है ऐसे सालों पर , जूते खाते रहते हैं दोनों गालों पर ,
कुछ देर बाद , कुछ देर बाद , रहे टालते बासठ सालों भर ,
गौरमेंट  करती रहती है  नाटक , जग में कोई नहीं हिमायत ,
पर कौन सुने ऐसे हाथी की , जो कोकरोच की करे शिकायत ???
इलाज पता बच्चे बच्चे  को , पर बहुत बड़ी मजबूरी है सरकारी ,
इसीलिये  - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी .     

वैसे हैं बहुत होशियार हम , कर भी रक्खी सेना  तैयार है ,
सेना गयी मोर्चे पर तो  - इन भ्रष्ट नेताओं का कौन चौकीदार है ???
बंदूकों की बना के सब्जी , बमों का डालना अचार है ,
मातम तो पब्लिक के  घर है , पर गौरमेंट का डेली त्योंहार है 
ऐसे में वो युद्ध छेड़ कर , क्यों उजाड़े खुद की दुकानदारी ???
इसीलिये - बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी . 

सपूत हिंद के बहुत जियाले , जो घूरे उसकी आँख निकालें ,
राम कृष्ण के हम वंशज हैं , जिससे चाहें पानी भरवालें ,
जब तक धर्म के साथ रहे हम , राज किया विश्व पर हमने ,
कुछ पापी की बातों में आ कर , भूले स्वधर्म तो सब से हारे ,
जाग गए अब, हुए सावधान हम , ना चलने देंगे  इनकी मक्कारी ,
पर तब तक -  बात चीत रहेगी जारी , बात चीत रहेगी जारी . 
यह रचना श्री आनन्द शर्मा जी ने मुझे मेल से भेजी है।  अनुमति के साथ उनके अमूल्य विचार भी आप सबसे अगली पोस्ट में बांटूंगा। उन्हें धन्यवाद करने, आभार प्रकट करने या सम्पर्क करने के लिये आप नीचे दिये लिंक से उन्हें ईमेल भेज सकते हैं। 

रचयिता :  धर्मेश शर्मा , भारत
मुंबई दिनांक २०.०९.२००९ 
संशोधन , संपादन : आनंद जी.शर्मा

16 February 2010

ब्लाग किसलिये है? (अपने रिस्क पर पढें)

कृप्या इस लेख को किसी अवधारणा को दिमाग में रखकर ना पढें।  मुझ गधे के दिमाग में कुछ विचार आये तो यहां लिख दिये हैं। गधे के दिमाग में विचार आते हैं और वो ढेंचू-ढेंचू करने  ही लगता है। किसी भी ब्लागर या नान ब्लागर से इस वार्तालाप का कोई भी सम्बन्ध नही है।
आप क्या लिखते हैं?
ब्लाग
ब्लाग पर क्या लिखते हैं?
कुछ भी
कुछ भी मतलब?
मतलब कुछ भी जैसे कोई भी विचार, कोई भी घटना, कोई भी बात
इसके अलावा
इसके अलावा मतलब
मतलब साहित्य, कविता जैसा कुछ
नहीं जी कुछ भी नहीं
कुछ सार्थक लिखना चाहिये, जब ब्लाग मुफ्त है तो इसका यह मतलब नही कि कुछ भी कूडा-करकट छाप दो।
भईया जी क्या ब्लाग केवल साहित्य के लिये है? जिसके पास जो होगा वह वही तो दे सकता है, मेरे पास तो बकवास ही है और मेरे जैसे कुछ पाठक भी हैं जो बकवास ही पढने आते हैं।
टिप्पणियां आती हैं?
टिप्पणियां कोई रोटी तो है नही कि जिनके बिना पेट नही भरेगा। जिसके पास टिप्पणियां होंगी वो दे देगा।
पाठक मिलते हैं
मैं खुद ही पाठक हूं, मैं लेखक या साहित्यकार नही हूं, बाकि जिसे पढना है वो तो पढेगा ही।
छोटी-छोटी समस्यायें हैं, जो दबा दी जाती हैं, उनको उजागर करो। आगे नास्टैलोजी ब्लागिंग का वक्त आ रहा है। ब्ला-ब्ला…………(काफी देर तक  उन्होंनें कुछ नहीं बहुत कुछ कहा  आधा मेरे सिर के ऊपर से और आधा टांगों के नीचे से निकल गया, उत्तेजना से उनके हाथ  शायद पैर भी  कांप रहे थे) 
भईया जी क्या ब्लाग केवल पत्रकारिता के लिये है। आप पत्रकार हैं, मीडियाकर्मी हैं, बुद्धिजीवी हैं, आप बना सकते हैं तिल का ताड, यह आपका व्यवसाय है। आपके पास समस्यायें हैं, रोना-पीटना है, कुंठा है, गुस्सा है, खीझ है, भडास है आप  लिखिये इस बारे में। मेरे पास मुस्कान है तो मुस्कान दे सकता हूं, सुकून है तो सुकून दे सकता हूं।

अगली चिट्ठी में सार्थक पोस्ट की बात करते एक सज्जन
कोई मुझे नौस्टैलोजी या नौस्टैलोजिक का अर्थ बता सके तो आभारी रहूंगा। प्रशांत जी की चिट्ठियों में भी यह शब्द कई बार पढा है।

14 February 2010

चने, मूंगफली, सत्तू, फत्तू और बनिया

सत्तू और फत्तू दोनों बडे आलसी थे। एक बार रामभज पंसारी ने जिससे उन्होंनें काफी उधार ले रखा था कहा कि या तो मेरी उधारी चुकता करो वरना मैं तुम्हारे घर पर कब्जा कर लूंगा। सत्तू-फत्तू ने कहा लाला जी हमारे पास काम नही है, जब काम मिल जायेगा तो आपके पैसे लौटा देंगें। रामभज पंसारी ने कहा कि तुम मेरे पास नौकरी करो। उसने फत्तू को एक टोकरी मूंगफली और सत्तू को एक टोकरी चने दिये और कहा कि शाम तक घूम-घूमकर यह सब बेचकर आओ, और नगद में बेच कर आना। मरते क्या ना करते दोनों अपनी-अपनी टोकरी उठा कर चल पडे। अब काम तो उन्होंने किया नही था, थोडी दूर चलते ही उनका आलसी मन हावी हो गया। दोनों जा कर बस अड्डे के पिछवाडे बैठ गये ताकि कोई देख ना ले और बनिया को बता ना दे। अब बस अड्डे के पीछे तो सुनसान जगह थी, वहां कहां से ग्राहक आते। दोनों थोडी देर में ही बोर हो गये और भूख भी लगने लगी। 
सत्तू ने फत्तू से कहा - थोडी सी मूंगफली दे दे।
फत्तू - ना भाई, अगर उधार बेचूंगा तो बानिया मेरी जान काढ लेगा
सत्तू ने अपनी जेब टटोली तो उसकी जेब में दो रुपये निकले। 
सत्तू - अररे, उधार कौन मांगै सै, यो ले नकद, फटाफट दो रुपये की मूंगफली दे
फत्तू पहली बिक्री से खुश हो गया और मूंगफली दे दी। थोडी देर बाद फत्तू को भूख लगी और उसने सत्तू से चने मांगें तो सत्तू ने भी उधार देने से मना कर दिया। अब फत्तू ने अपनी पहली बिक्री से आये दो रुपये के चने खरीद लिये। इस तरह दोनों दो रुपये से आपस में ही खरीद-बिक्री करते रहे और मूंगफली और चने खाते गये। दोपहर तक दोनों का माल खत्म हो गया। दोनों ने बनिया की दुकान पर जाकर टोकरी फेंकी और कहा - लो लाला जी अपनी टोकरी, हम सारा माल बेच आये और वो भी नगदम-नगदा। लाला बडा हैरान हुआ और कमाई के पैसे मांगें तो सत्तू ने दो रुपये लाला के हाथ पे धर दिये। लाला ने अपना माथा पीट लिया।
लाला, सत्तू से - तूने सारे चने दो रुपये में बेच दिये
सत्तू ना जी - मन्नै तो दो-दो रुपये के थोडे-थोडे कर के बेचे सैं
लाला - अर फत्तू तेरी कमाई
फत्तू - लालाजी मन्नै भूख लाग रही थी इसलिये मन्नै दो रुपये की मूंगफली खा ली, आप मेरी दिहाडी में से दो रुपये काट लो।

12 February 2010

जब किसी को टारगेट बना कर लिखा जाता है

image मानव मस्तिष्क भी कमाल की चीज है, यह हर बात, हर विचार, हर काम के पक्ष में  हजारों कारण और बहाने खोज लेता है और विपक्ष में भी। मेरे मस्तिष्क में अगर कोई विचार आ जाये तो पोस्ट लिख देता हूं। अगर किसी की कोई पोस्ट मेरी अल्प-बुद्धि (समझ) में आ जाये और मेरे पास कोई शब्द हो तो टिप्पणी भी कर देता हूं। मैं टिप्पणी क्यों नही करता हूं इसके दस कारण मेरे मस्तिष्क ने खोज डाले हैं :-
1> वर्ड वेरिफिकेशन के कारण (बार-बार हिन्दी-अंग्रेजी फान्ट बदलने में कोफ्त होती है)
2> लेख समझ से परे है (अल्प-शिक्षा और अल्प-बुद्धि के कारण काफी लेख समझ नही पाता हूं)
3> सहमति-असहमति, सही-गलत का चुनाव करने में असमर्थता
4> समय की कमी (कई बार रीडर में ढेरों पोस्ट इकट्ठी हो जाती हैं)
5> जब लेख पुराना होता है (कुछ लोग एक ही पोस्ट को बार-2 ठेलते रहते हैं)
6> जब वही लेख किसी दूसरे ब्लाग पर भी पढा होता है
7> जब लेख किसी को टारगेट बना कर लिखा जाता है
8> जब लेख से विवाद की स्थिति उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है
9> जब चिट्ठियों को मोबाईल फोन पर पढता हूं (यह ईमानदार कारण है)
10> जब किसी लेख का लेखक ज्यादातर दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले लेख लिखता है तो उसके बढिया लेख पर भी टिप्पणी नही कर पाता हूं।

10 February 2010

मातृभाषा में गाली

राजा भोज के दरबार में एक बार एक विद्वान आया। उसने राजा भोज के सामने एक शर्त रखी की आपके राज्य का कोई भी आदमी अगर मेरी मातृभाषा कौन सी है यह बता सके तो मैं उसे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें भेंट करूंगा। लेकिन अगर आपके राज्य के सब विद्वान हार गये तो आप मुझे दस लाख स्वर्ण मुद्रायें देंगें। राजा भोज उसकी बात सुनकर आश्चर्य में पड गये। उनके दरबार में बडे-बडे विद्वान पंडित थे, जो पृथ्वी की हरेक भाषा का ज्ञान रखते थे। राजा भोज ने उस परदेशी विद्वान की शर्त मंजूर कर ली।
एक माह तक लगातार प्रतियोगिता चलती  रही। राज्य के पंडित हर रोज अलग-अलग भाषाओं में उस विद्वान से तर्क-वितर्क करते रहे। वह विद्वान हरेक भाषा का ऐसे उच्चारण करता था जैसे वही उसकी मातृभाषा है। लेकिन राज्य का कोई भी पंडित उस विद्वान की मातृभाषा नही बता सका।
आखिरी दिन जब सभी पंडितों ने हार मान ली, तो विद्वान ने राजा भोज से अपना पुरस्कार  ग्रहण किया। दस लाख स्वर्ण मुद्राओं की संदूक उठा कर जब वह सीढियों से नीचे उतरने लगा तो एकदम महाकवि कालीदास ने उस विद्वान को जोर से धक्का दे दिया। अचानक धक्का लगते ही विद्वान लुढकते हुए नीचे गिरा और गालियां देने लगा। कालीदास जी ने कहा - महानुभाव क्षमा करें मेरे पास यही तरीका था आपकी मातृभाषा जानने का। जिस भाषा में आप गालियां निकाल रहे हैं, वही आप की मातृभाषा है।