दूसरे को कमतर बता कर खुद को सुप्रियर या ऊंचा साबित करना कितना आसान है ना। बहुत सारी पोस्ट पाठकों के लिये नही ब्लागर्स के लिये लिखी जा रही हैं। सुपरहिट होने के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं, टिप्पणियों के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं, पोस्ट के लिये पोस्ट लिखी जाती हैं।
कोई लिखता है कि आज सार्थक ब्लागिंग नहीं हो रही है, सार्थक पोस्ट नहीं लिखी जाती है। कोई किसी पोस्ट को निरर्थक बता कर अपनी पोस्ट की सार्थकता साबित करना चाहता है। एक पोस्ट जिसे आप निरर्थक कहते हैं, उसके आधार पर आपने एक लम्बी-चौडी पोस्ट निकाल ली, क्या यह उस पोस्ट (कथित निरर्थक पोस्ट) की सार्थकता नहीं है।
कोई किसी की पोस्ट को फालतू और गंदी बताता है। यह बताने के लिये तुम अपनी ऊर्जा, अपना समय, अपना धन, खर्च कर के एक बडी सी पोस्ट लिखते हो विरोध में। आप संदेश देते हो दूसरों को विरोध करने का और तवज्जो खुद दे रहे हो। जो आप को पढने आता है, जिसे उस ब्लाग का नाम-पता भी नहीं मालूम उसे आप अपनी गाडी में बैठाकर वहां तक छोडने जाते हो। उस पोस्ट के स्नैप अपनी पोस्ट पर लगाकर सबको पढवाते हो, तो फालतू और गंदी कैसे हुई। जिसे कोई ब्लाग फालतू लगेगा, उसे नही जाना होगा, वह अपने आप जाना छोड देगा। प्रचार तो आप खुद कर रहे हैं,
विरोध भी तो प्रचार का ही एक रूप है।
कोई लिखता है ब्लाग पर सार्थक बहस होनी चाहिये। "सार्थक बहस" यह शब्द ही गलत है। बहस सार्थक हो ही नही सकती है। जैसे शुद्ध अमृत या शुद्ध वनस्पति घी नही होता है। बहस तो हमेशा निरर्थक ही होती है, क्योंकि इससे कोई परिणाम नही निकल पाता है। एक के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं किसी बात के पक्ष में, दूसरे के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं उसी बात के विपक्ष में। हां विचार सार्थक हो सकते हैं, किसी विषय पर विचारों का आदान-प्रदान करना क्या बहस कहलायेगा???
कोई लिखता है कि आज सार्थक ब्लागिंग नहीं हो रही है, सार्थक पोस्ट नहीं लिखी जाती है। कोई किसी पोस्ट को निरर्थक बता कर अपनी पोस्ट की सार्थकता साबित करना चाहता है। एक पोस्ट जिसे आप निरर्थक कहते हैं, उसके आधार पर आपने एक लम्बी-चौडी पोस्ट निकाल ली, क्या यह उस पोस्ट (कथित निरर्थक पोस्ट) की सार्थकता नहीं है।
कोई किसी की पोस्ट को फालतू और गंदी बताता है। यह बताने के लिये तुम अपनी ऊर्जा, अपना समय, अपना धन, खर्च कर के एक बडी सी पोस्ट लिखते हो विरोध में। आप संदेश देते हो दूसरों को विरोध करने का और तवज्जो खुद दे रहे हो। जो आप को पढने आता है, जिसे उस ब्लाग का नाम-पता भी नहीं मालूम उसे आप अपनी गाडी में बैठाकर वहां तक छोडने जाते हो। उस पोस्ट के स्नैप अपनी पोस्ट पर लगाकर सबको पढवाते हो, तो फालतू और गंदी कैसे हुई। जिसे कोई ब्लाग फालतू लगेगा, उसे नही जाना होगा, वह अपने आप जाना छोड देगा। प्रचार तो आप खुद कर रहे हैं,
विरोध भी तो प्रचार का ही एक रूप है।
कोई लिखता है ब्लाग पर सार्थक बहस होनी चाहिये। "सार्थक बहस" यह शब्द ही गलत है। बहस सार्थक हो ही नही सकती है। जैसे शुद्ध अमृत या शुद्ध वनस्पति घी नही होता है। बहस तो हमेशा निरर्थक ही होती है, क्योंकि इससे कोई परिणाम नही निकल पाता है। एक के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं किसी बात के पक्ष में, दूसरे के पास अनगिनत तर्क हो सकते हैं उसी बात के विपक्ष में। हां विचार सार्थक हो सकते हैं, किसी विषय पर विचारों का आदान-प्रदान करना क्या बहस कहलायेगा???
कृप्या इस लेख को पढने के बाद कोई अवधारणा मन में ना रखें। मुझ गधे के दिमाग में कुछ विचार आये तो यहां लिख दिये हैं। गधे के दिमाग में विचार आते हैं और वो ढेंचू-ढेंचू करने ही लगता है।
भाई आप सही लिखते हैं. पर पोस्ट तो आप भी निकाल ही लेगये ना आखिर?:) यही तो हो रहा है.
ReplyDeleteरामराम.
विचारोत्तेक गंभीर पोस्ट अंतर सोहिल जी,
ReplyDeleteआभार
विचारणीय पोस्ट लिखी है...धन्यवाद।
ReplyDeleteअरे अमित भाई कुछ लोगो की आदत ऎसी होती है उस पर ध्यान ही नही देते, ओर उन्हे अन्देखा कर के आगे बढते है, अगर हर किसी की बात पर अमल करे तो जीना कथीन हो जाये, मस्त रहो
ReplyDeleteअन्तर सोहिल जी,
ReplyDeleteसंसार में प्रत्येक वस्तु साक्षेप होती है इसलिये एक पोस्ट जो किसी के लिये सार्थक है किसी दूसरे के लिये निरर्थक हो सकता है। सार्थकता और निरर्थकता के सबके अपने-अपने अलग-अलग मानदंड हैं। जिसे आत्मतुष्टि पसंद है वह अधिक से अधिक टिप्पणी पाने को ध्यान में रखकर पोस्ट लिखेगा और जिसे कुछ सीखना-सिखाना पसंद है वह अधिक से अधिक पाठक पाने को ध्यान में रखकर पोस्ट लिखेगा।
चलो, अच्छा किया अपने विचार लिख दिये. सोचने योग्य हैं बातें.
ReplyDeleteब्लोग्गिंग का निरंकुश चरित्र होना चाहिए ..है भी .....मगर ये निरंकुशता ..विचारों में होनी चाहिए ...विवादों में नहीं ...सब अपने आप ठीक होगा ...ब्लोग्गिंग करते रहें
ReplyDeleteअजय कुमार झा
सहमत हूँ आपसे ।
ReplyDeleteलो जी एक और पोस्ट निकल गई अब बढ़िया है या नहीं ये तो आप बेहतर जानते हैं :)
ReplyDeleteआप्ने भी वही किया है कोई नया विचार नही दिया है
ReplyDeleteAapane samay ki maang ke anusaar hi post likhi hai....ek dusare par chinta kashi karati hui posts likh kar koi apane aap ko vidwaan sabit nahi kar sakata. vidwaan vahi hai jo vinamra hai sohadrata se apana paksh rakh sake naaki kisi ki taang khich kar !!!
ReplyDeletebahas sachmuch nirarthak hai ...vichar vimarsh hi bhasha aur gyaan ke aadaan pradaan aur vistaar ka sahi tarika hai.
आपने भी अख़िर बकवास ही की और सार्थक कुछ भी नहीं लिखा !
ReplyDeleteबस इसीलिए तो हमने अपने ब्लॉग अब तक कुछ भी नहीं लिखा !!
हम क्या कहें। हम भी यदा कदा इस प्रकार का विलाप कर पोस्ट निकालते रहे हैं। :-(
ReplyDeleteआदरणीय ताऊजी
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने, मैं भी इसी तरीके से पोस्ट निकाल ले गया।
वीनस केसरी जी, हरि शर्मा जी, शशिकांत ओझा जी
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है जी , धन्यवाद
@ अंतर सोहिळ
ReplyDeleteदेखिये ऐसी पोस्ट लिखने का फ़ायदा.....टिप्पणीयों खी बाढ सी आगई.:)
भाई अमिने तो मजाक के मूड मे टिप्पणी मारी थी. दिल से ना लगाना. बात आपकी सौ फ़ीसदी सही और विचारणिय है.
रामराम.
आदरणीय ताऊजी नमस्कार
ReplyDeleteआप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। आपकी बात बिल्कुल सही है। मुझे आपकी पहले वाली टिप्पणी बहुत अच्छी लगी।
रही दिल की बात दिल से आप तब ही लग गये थे, जब आपके ब्लाग पर पहली बार आया था। :-)
सही पूछो तो मैं यही देखना चाहता था कि इस बात को कौन-कौन पकडता है और सीधी बात कहता है। बाकि आपकी यह बात भी एकदम सही है।
अब मुझे लगता है कि ज्यादा टिप्पणियां इस तरीके से भी पायी जा सकती हैं। लेकिन सच बताऊं मुझे इस पोस्ट पर आयी टिप्पणियों की संख्यां से कोई खुशी नही हुयी है, और मैं ना तो टिप्पणी पाने के लिये टिप्पणी करता हूं और ना ही टिप्पणी के लिये पोस्ट लिखता हूं।
प्रणाम स्वीकार करें
बिल्कुल सही,
ReplyDeleteलेकिन कुछ अपवाद भी हैं.
भाटिया जी ने सही कहा ... किस किस को देखेंगे ... अपना काम किए चलें ....
ReplyDeleteअरे आप अपना काम करते रहिये कोई कुछ कहता है कहने दें यहाँ वैसे भी कौन किसी की सुनता है सब को अपनी अपनी पडी है। बस कुछ भी लिख देना और काम खत्म ।जहाँ हर तरह के लोग हैं सब से कैसी उमीद की जा सकती है कि वो किसी दायरे मे बन्ध कर लिखे बस आप अपना काम करते रहें। वैसे विचार्णीय पोस्ट है बहुत लोगों के दिल की बात मगर कौन सुनता है। बहुत बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteआपकी भावनाओं से सहमत हूँ और इसीलिए इस तरह के पचड़ों से दूर रहकर अपनी समझ के विषयों पर निरंतर लेखन करता रहा हूँ। लोकप्रियता सब चाहते हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं।पर उसके लिए मेहनत ना कर सिर्फ इन रास्तों का प्रयोग कर शार्ट कर्ट खोजते हैं। कुछ दिनों तक ये फार्मूला तो कारगर होता है पर बाद में तो आपका लेखन ही काम आता है।
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