गाजर का हलवा, समोसे, गुलाब जामुन और पकौडों का लुत्फ उठा रही 5-6 औरतों में उसकी बूढी आंखों ने छोटी बहू को पहचान लिया।
बहू मेरे लिये खिचडी बन गई है क्या?
ओहो, तुम्हें तो भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। अभी तो तुम्हें चाय और ब्रेड दी थी।
बेटा, चाय मैनें चार बजे पी थी, अब तो साढे आठ बज रहे हैं, थोडी सी खिचडी खा लूं तो नींद आ जायेगी।
तुम्हें दिखाई नही दे रहा है, मेरे मेहमान आये हुये हैं। आज मेरी शादी की सालगिरह है, कम से कम एक दिन तो चैन से बैठने दो।
बेटा, ये नाश्ता पानी तो चलता रहेगा। मैं तो इसलिये पूछ रही थी कि अगर खिचडी बन गई है तो अपने-आप ले कर खा लूंगी और तुम्हें भी बीच में उठना नही पडेगा।
पता नही क्यों तुम मेरे पीछे पडी रहती हो, और भी तो बेटे-बहुएं हैं। कभी-कभार उनसे भी कह दिया करो, मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है।
बुढिया इतना सुनते ही चुपचाप अपनी कोठरी में जा कर लेट गई।
कानों में छोटी बहू के स्वर पिघले शीशे की तरह गिरते जा रहे हैं। "बुढिया पता नही कितना खाती है, दिन पर दिन जीभ चटोरी होती जा रही है। सारा दिन इसकी फरमाईशें पूरी करते रहो, काम की ना काज की सेर भर अनाज की"
गीली आंखों से छत को देख रही है। जितना मुझसे बनता है, उतना तो घर की साफ-सफाई, बर्तनों और कपडे तह करने के काम कर ही देती हूं। एक-एक कर तीनों बडी बहुओं ने उसे "मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है" कहकर हाल-चाल भी पूछना छोड दिया है। महिने के एक दिन इस कोठरी में बच्चों और बहुओं का आना और बातें करना उसको खुशियों से भर देता है। उस दिन जब वह अपनी पेंशन के 700 रुपये ले कर आती है और सब बच्चों को मिठाईयां और बहुओं को 100-100 रुपये देती है।
बेटा काम पर से लौटा नही है। दोनों बच्चे ऊपर वाले कमरे में पढ रहे हैं। बिना बच्चों और पति के शादी की सालगिरह केवल सहेलियों के साथ मनाई जा सकती है क्या?