25 December 2009

मैनें तुम्हारा ठेका नही ले रखा है

गाजर का हलवा, समोसे, गुलाब जामुन और पकौडों का लुत्फ उठा रही 5-6 औरतों में उसकी बूढी आंखों ने छोटी बहू को पहचान लिया।
बहू मेरे लिये खिचडी बन गई है क्या?
ओहो, तुम्हें तो भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। अभी तो तुम्हें चाय और ब्रेड दी थी।
बेटा, चाय मैनें चार बजे पी थी, अब तो साढे आठ बज रहे हैं, थोडी सी खिचडी खा लूं तो नींद आ जायेगी।
तुम्हें दिखाई नही दे रहा है, मेरे मेहमान आये हुये हैं। आज मेरी शादी की सालगिरह है, कम से कम एक दिन तो चैन से बैठने दो।
बेटा, ये नाश्ता पानी तो चलता रहेगा। मैं तो इसलिये पूछ रही थी कि अगर खिचडी बन गई है तो अपने-आप ले कर खा लूंगी और तुम्हें भी बीच में उठना नही पडेगा।
पता नही क्यों तुम मेरे पीछे पडी रहती हो, और भी तो बेटे-बहुएं हैं। कभी-कभार उनसे भी कह दिया करो, मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है।
बुढिया इतना सुनते ही चुपचाप अपनी कोठरी में जा कर लेट गई।
कानों में छोटी बहू के स्वर पिघले शीशे की तरह गिरते जा रहे हैं। "बुढिया पता नही कितना खाती है, दिन पर दिन जीभ चटोरी होती जा रही है। सारा दिन इसकी फरमाईशें पूरी करते रहो, काम की ना काज की सेर भर अनाज की" 
गीली आंखों से छत को देख रही है। जितना मुझसे बनता है, उतना तो घर की साफ-सफाई, बर्तनों और कपडे तह करने के काम कर ही देती हूं। एक-एक कर तीनों बडी बहुओं ने उसे "मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है" कहकर हाल-चाल भी पूछना छोड दिया है। महिने के एक दिन इस कोठरी में बच्चों और बहुओं का आना और बातें करना उसको खुशियों से भर देता है। उस दिन जब वह अपनी पेंशन के 700 रुपये ले कर आती है और सब बच्चों को मिठाईयां और बहुओं को 100-100 रुपये देती है।  
बेटा काम पर से लौटा नही है। दोनों बच्चे ऊपर वाले कमरे में पढ रहे हैं। बिना बच्चों और पति के शादी की सालगिरह केवल सहेलियों के साथ मनाई जा सकती है क्या?

22 December 2009

बात अब तक बनी हुई है

धन्यवाद, शुक्रिया, मेहरबानी, आभार उस परमपिता, परमात्मा, अल्लाह, रब, भगवान, परमसत्ता को
Ye sab tumhara karama hai aaqa


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20 December 2009

जाको राखे साईयां

एक बै अस्पताल म्है एक बालक नै जनम लिया तो अस्पताल म्है हंगामा मच गया, क्यों?
क्योंकि बालक जन्म लेते समय हंस रहा था अर उसके केवल एक हाथ की मुट्ठी बंद थी। डाक्टर नै जब उसकी मुट्ठी खोली तो उसमै एक गोली थी। अरे भाई बन्दूक की नहीं वा वाली ई पिल या अन्वांटेड वाली ;) समझ गये ना
तो जाको राखे सांईयां, मार सके ना कोये
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एक बै मुसाफिर जाट अपनी कार ले कै पैट्रोल पम्प पै गया।
जाट - भाई पांच रूपये का पैट्रोल घाल दे
कर्मचारी(व्यंग्य से) - साहब इतना पैट्रोल डलवा कर कहां जाओगे
जाट - अरै हम सां जाट आदमी, हम तो नूएं धन फूकां करां
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प्राध्यापक - अगर सच्चे मन से प्रार्थना की जाये तो, भगवान जरूर पूरी करते हैं
एक छात्र - रहन दो मास्टरजी, गर इस्सा होता तै आज आप मेरे ससुर जी होते 
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अजब प्रेम की गजब कहानी
एक मुर्गी और सुअर में प्यार हो गया, कुछ ही दिन में दोनों चल बसे।
मुर्गी मरी स्वाईन फ्लू से और सुअर मरा बर्ड फ्लू से
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एक सरदार जी और एक नाई ट्रेन में आमने-सामने की सीट पर बैठे यात्रा कर रहे थे। सरदार जी को नींद आने लगी तो उन्होंने अपने सामने की सीट पर बैठे नाई से कहा कि मुझे रोहतक आने पर जगा देना। सरदार जी ने उस आदमी को दस रूपये भी दे दिये और सो गये। नाई ने सोचा कि सरदार ने दस रूपये शायद शेव बनाने के लिये दिये हैं। उसने अपना उस्तरा निकाला और सोते हुये सरदार जी को क्लीन शेव कर दिया। अभी रोहतक काफी दूर था तो उसने सोचा चलो सरदार जी के बाल भी काट देता हूं, मेरा भी समय व्यतीत हो जायेगा। उसने सरदार जी को सफाचट गंजा कर दिया। सरदार जी गहरी नींद में सोते रहे और उन्हें पता ही नही चला। रोहतक स्टेशन आया तो नाई ने सरदार जी को जगाया। सरदार जी ने नाई का धन्यवाद किया और ट्रेन से उतर गये। सरदार ने अपने घर आकर जब आईने में अपना चेहरा देखा तो हैरान रह गये और बोले - "साले को दस रूपये मैनें दिये और उसने जगा किसी और को दिया।"
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18 December 2009

दे ताली

एक ताली होती है ताला या ताले (Lock) की स्त्री याने के चाभी या चाबी (Key) और दूसरी ताली जो दोनों हाथों को तेजी से टकरा कर बजाई जाती है। दोनों हाथों को जब  टकराते हैं तो जो ध्वनि पैदा होती है, उसे ताली कहते हैं। ताली कई तरह से बजाई जा सकती है। एक प्रकार की ताली में एक हाथ की हथेली और दूसरे हाथ की ऊंगलियों से ध्वनि की जाती है। दूसरे प्रकार में दोनों हथेलियों को टकराते हैं। कहते हैं ताली एक हाथ से नही बजती है, लेकिन कुछ लोग एक हाथ से भी ताली बजा लेते हैं। कोई भी थोडे अभ्यास से एक हाथ से ताली बजा सकता है। हाथ की ऊंगलियों को झटके से उसी हाथ की हथेली पर मारने से जो ध्वनि होगी, वह एक हाथ से बजी ताली है। ताली ज्यादातर खुशी प्रकट करने और सराहना करने के काम आती है। ताली बजाकर रोगों का इलाज भी किया जा सकता है और ताली पीट कर बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है
image ताली कब-कब बजाई जाती है या कब-कब ताली बजती है, आईये देखते हैं:-
  • किसी का स्वागत करने के लिये (Give him a big hand)
  • किसी का कलाप्रदर्शन पसन्द आने पर (आभार प्रकट करने के लिये) 
  • किसी का भाषण या वक्तव्य पसन्द आने पर
  • मस्ती में नाचते वक्त
  • व्यायाम भी होता है ताली बजाना
  • ताली बजाकर इशारे भी किये जाते हैं।
  • मंच पर किसी के सम्मान में भी ताली बजाई जाती है।
  • भक्त लोग ताली बजा-बजा कर भजन गाते हैं और पूजा आराधना करते हैं।
  • तमाशबीन तमाशे दिखाते वक्त कहते थे- "बच्चों बजाओ ताली"
  • शिशुओं (छोटे बच्चों) के साथ खेलते वक्त भी ताली बजाई जाती है।
  • शिशु भी खेलते वक्त ताली बजाते हैं।
  • लैंगिक विकलांग (वह हिजडे, जो शादी-ब्याह, पुत्र-जन्म आदि पर शगुन वगैरहा लेने आते हैं)  एक खास तरह की ताली बजाते हैं, जो केवल दोनों हथेलियों को टकरा कर बजाई जाती है। इसमें ऊंगलियां आपस में नहीं मिलती और इसमें विशेष और तेज ध्वनि होती है।
  • हरियाणवी लोकगीतों (रागणी) में ताली का संगीत दिया जाता है, जो एक लय में और बहुत मधुर लगता है।
  • कव्वाली गाते वक्त ताली से ताल यानि लय देना जरूरी होता है। यानि बिना ताली के तो कव्वाली हो ही नही सकती।
  • ज्यादातर औरतें झगडते वक्त ताली बजा-बजा कर आपस में ताने देती हैं।
  • पुराने समय में राजे-महाराजे तीन ताली बजाते थे और कहते थे - "नाचने वाली को पेश किया जाये"
  • हंसी-मजाक चलता है तो किसी बात पर कोई ना कोई एक हाथ आगे करके कह उठता है- "दे ताली" और दूसरा उसके हाथ पर हाथ मार देता है।

17 December 2009

अल्लाह अल्लाह कहो इंशाअल्लाह

रोज आफिस से छह बजे निकलता हूं। शाम 6:30 बजे की सिरसा एक्सप्रेस से घर जाते-जाते 8:00 बज ही जाते हैं। फिर हाथ-मुंह धोना (गर्मियों में नहाना) और 8:30 बज गये। रात का खाना खाया और उर्वशी, लव्य, याचिका तीनों बच्चों के साथ खेलना या फिल्मी गाने और भजन सुनता हूं और तीनों के साथ नाचता भी हूं। रात को घर से बाहर निकले बिना खाना भी पच जाता है और अन्तर्तम भी आनन्द से भर जाता है।
आज आप भी सुनिये मेरे पसन्दीदा भक्ति संगीत कलैक्शन में से एक भजन  (आप इसे नात या कव्वाली भी कह सकते हैं)

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13 December 2009

दारू पी कै जनानी छेड दी

एक बार जंगल के राजा शेरसिंह नै जंगल म्है एक दावत का इंतजाम करा। सारे जंगल के जानवरां तै न्यौता दिया। दावत आले दिन सारे जानवर शेरसिंह के घर में बढिया-बढिया पकवान, मिठाईयां और दारू के मजे लेने पहुंच गये। (हां शेरसिंह नै दारू का भी पूरा इंतजाम कर राक्खा था)  चूहेराम नै पहलां कदे दारू ना पी थी। आज उसने भी एक-दो पैग चढा लिये। अर भाईयों चूहेराम कै नशा होग्या चोखा।

उसनै भी डीजे पै चढ कै खूब डांस-डूंस करा।जब उसनै एक के दो और दो के चार दिखन लाग गए तो वो झूमता-झामता पास पडे सोफे पै पैर पसार कै लेट गया। इतनी देर म्है बिल्लोरानी भी उडै आग्यी। बिल्लोरानी नै चूहेराम को देखा तो दिल मैं  पेट मैं कुछ-कुछ होन लाग्या।

पर यो राजा शेरसिंह का घर था, बिल्लोरानी कुछ भी ना कर सकै थी।
बिल्लोरानी - चूहेराम, सोफे पर तै उठ जा, मन्नै बैठन दे
चूहेराम - बिल्लोरानी, कितै और जगहा देख, दिखता नहीं मैं आराम कर रहा हूं
बिल्लोरानी -  चूहेराम, चुपचाप हट जा वरना बुरा होगा
चूहेराम - अपना काम कर बिल्लो, मन्नै परेशान ना कर
बिल्लोरानी - देख चूहे, आज यो शेरसिंह का घर ना होता तो मैं तन्नै तुरन्त मजा चखाती
चूहेराम - जा-जा, ना तो लोग नू कहैवेंगें के मन्नै दारू पी के जनानी छेड दी 
चित्र गूगल से साभार लिये गये हैं

12 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)3

पिछली कडियों पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)1 और  2 में आपने यज्ञ (हवन) के महत्त्व के बारे में पढा। अब आगे पढिये यज्ञ के लघुत्तम रूप में प्रचलित धूप, अगरबत्ती आदि क्या यज्ञ के विकल्प हैं।

अग्नि में डालने से कोई पदार्थ नष्ट नही हो जाता है, बल्कि रूपान्तरित होता है। ठोस या द्रव रूप से गैस रूप में बदल जाता है। खाया हुआ 50 ग्राम घी एक ही मनुष्य के लिये लाभकारी होता है, किन्तु वही घी यज्ञीय प्रक्रिया से सूक्ष्म होकर और शक्तिशाली बनकर हजारों मनुष्यों, पशु-पक्षियों तथा वृक्षादि स्थावरों के लिये भी लाभकारी बन जाता है। जलायी हुई अगरबत्ती की सुगन्ध पूरे दिन भर मकान में बनी रहती है।

यज्ञ का प्रयोजन केवल सुगन्धि फैलाना ही नही है, बल्कि जलवायु के प्रदूषण को भी नष्ट करना होता है। उचित मात्रा में व सीमित स्थान पर यज्ञाग्नि में डाली गयी अनेक प्रकार की औषधियों व घी के जलने पर उत्पन्न धुआं दूर-दूर के जलवायु के प्रदूषण अथवा दोषों को दूर करता है।

धूप, अगरबत्ती या फूलों के रस में यह सामर्थ्य नही होता कि वह घर में विद्यमान समस्त गंदी वायु को बाहर निकाल दें तथा शुद्ध वायु का बाहर से प्रवेश करा सकें।
इसलिये यज्ञ का विकल्प ये धूप आदि नही हैं।

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)2
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

10 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)2

यज्ञ का लघुत्तम स्वरूप "अग्निहोत्र" है जो एक वैदिक प्रक्रिया है। आजकल विश्व के कई देशों में बीमारियां दूर करने, प्रदूषण रोकने, एवं कृषि उत्पादन को बढाने के लिये "अग्निहोत्र" को गृह-चिकित्सा (HOME THERAPY) के रूप में अपनाया जा रहा है।

गाय के घी के साथ सामग्री की मन्त्रोच्चार के साथ जब आहुति दी जाती है तो निम्न प्रकार की चार गैसों का पता चलता है। (1) एथिलिन आक्साइड, (2) प्रापिलीन आक्साइड, (3) फार्मेल्डिहाइड, (4) बीटा प्रापियों लेक्टोन। आहुति देने के पश्चात गोघृत से एसिटिलीन निर्माण होता है। यह एसिटिलीन प्रखर ऊष्णता की ऊर्जा है। जो दूषित वायु को अपनी ओर खींचकर उसे शुद्ध करती है। गोघृत से उत्पन्न इन गैसों में कई रोगों को तथा मन के तनावों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।

जल, वायु आदि को शुद्ध करने के लिये तथा सुरक्षा के लिये आजकल कृमिनाशक (Disin Feetants), कृमिहर (Antiseptic) तथा संरक्षक (Preservatives) पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु ये पदार्थ सर्वत्र सब प्रकार के कृमियों का नाश करने में असमर्थ होते हैं, तथा जल, भूमि, खाद्यान्न के उपयोगी भाग को भी नष्ट करते हैं और इनका कुप्रभाव भी होता है।

प्रमाणिक रूप में बने यज्ञ कुण्ड में निर्धारित वृक्षों की लकडियां जलायी जायें तथा उचित मात्रा में घी तथा सामग्री डाली जाये तो अनेक प्रकार की लाभकारी गैसें, बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होती हैं। जो वायु के प्रदूषण को नष्ट करके वातावरण को सुगन्धित व स्वास्थयकारी बना देती हैं।

अगली कडी में क्या धूप अगरबत्ती आदि यज्ञ के विकल्प हैं?
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

08 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)1

पिछली कडियों में आपने पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण) के बारे में पढा। आपने दीपक, धूप, अगरबत्ती किसलिये में पढा कि धूप, अगरबत्ती वगैरा यज्ञ का ही लघुत्तम रूप हैं। अब आगे की कडियों में पढिये यज्ञ द्वारा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का समाधान तत्काल कैसे हो सकता है।

अपने द्वारा उत्पन्न किये गये प्रदूषण को दूर करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। साढे छह अरब की आबादी वाली पृथ्वी पर सभी न सही यदि 20 करोड परिवारों में भी नित्य प्रति यज्ञ प्रारम्भ हो जाये तो इस प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है। वाहनों, मिलों, कारखानों द्वारा उत्पन्न हुई प्रदूषित वायु को यज्ञ के द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली धूम (धुआं) की एक मात्रा ही शुद्ध करने में सक्षम है। यज्ञ के द्वारा निकली शक्तिशाली गैसें आसपास विद्यमान वृक्षों, पौधों को इतना प्रभावित करती हैं कि वे भविष्य में भी उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को सोख लेने में सक्षम हो जाते हैं।

यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि स्थूल पदार्थ की अपेक्षा उसके चूर्ण में, चूर्ण की अपेक्षा उसके तरल में और तरल रूप की अपेक्षा उसके वायु या गैस रूप में अधिक शक्ति होती है। उदाहरण के लिये दस ग्राम हींग को घी में गर्म करके 100 किलो दाल को सुगन्धित किया जा सकता है। एक मिर्च अग्नि में डालने से आस-पास के सैंकडों व्यक्तियों को प्रभावित करती है। ठीक वैसे ही यज्ञ कुण्ड की अग्नि से सुगन्धित, पुष्टिकारक, रोग विनाशक, मधुर पदार्थों को विधिवत गोघृत (गाय का घी) के साथ जलाया जाता है तो यह पदार्थ प्रबल शक्तिशाली बनकर सहस्त्र गुणी वायु के प्रदूषण को नष्ट करके उसे सुगन्धित व सुखदायी बना देते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर विशाल यज्ञों का जगह-जगह आयोजन करके भी इस समस्या का तत्काल समाधान हो सकता है।    
जारी है……………

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

06 December 2009

अंक अजूबा सात

7 तंत्र-मंत्र
image
7 परिक्रमा
7 महाद्वीप
7 महासागर
7 फेरे अग्नि के
7 रंग इन्द्रधनुष के
7 घोडे सूर्य के रथ के
7 दिनों में संसार की रचना
7 आश्चर्य (सात अजूबे इस दुनिया के)
7 सुर संगीत के (सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि)
7 ग्रह (9 ग्रहों में राहु और केतु का अस्तित्व नहीं हैं)
7 गुण (विश्वास, आशा, दान, निग्रह, धैर्य, न्याय, त्याग)
7 जन्म (सातों जन्म मैं तेरे साथ रहूंगा यार -फिल्मी गाना)
7 दिन का सप्ताह (सोम, मंगल, बुध, वीर, शुक्र, शनि, रवि)
7 समुद्र (सात समन्दर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई - फिल्मी गाना)
7 पाप (अभिमान, लोभ, क्रोध, वासना, ईर्ष्या, आलस्य, अति भोजन)
7 उपहार आत्मा के (विवेक, प्रज्ञा, उपदेश, भक्ति, ज्ञान, शक्ति, ईश्वर का भय)
7 ताल (नैनीताल, भीमताल, नौकुचियां ताल, राम ताल, सीता ताल, लक्ष्मण ताल और सात ताल)

05 December 2009

मानव शरीर (आश्चर्यजनक किन्तु सत्य)

image मनुष्य के शरीर में इतनी चर्बी है कि उससे साबुन की सात बट्टियां बनाई जा सकती हैं। इतना चूना है कि उससे 10X10 फुट के एक कमरे की पुताई की जा सकती है। 14 किलोग्राम के करीब कोयला (कार्बन) है। अग्नितत्त्व (फास्फोरस) यानि आग इतना है कि उससे करीब 2200 माचीस बनाई जा सकती हैं। 1 इंच लंबी कील बनाने लायक लोहा और एक चम्मच गंधक होता है। और करीबन एक चम्मच अन्य धातुएं जैसे सोना, पारा आदि होती हैं। शरीर में 50% पानी होता है। इस शरीर को जीवित रखने के लिए ताजिन्दगी ईंधन के रूप में 50 टन खाद्य सामग्री और 11000 गैलन पीने वाले पदार्थों की जरुरत होती है।
मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसके शरीर में 305 हड्डियां होती हैं। मनुष्य जैसे-जैसे बडा होता है, वैसे-वैसे ये हड्डियां घटकर 205 रह जाती हैं। इन हड्डियों मे 100 जोड होते हैं। शरीर में 650 पेशियां होती हैं। हड्डियों और पेशियों को जोडने वाली कंडरा (टेंडन) 8 टन प्रति साढे छह वर्ग सेंटीमीटर दबाव सह सकती है। अपनी पूरी जिन्दगी में शहरी आदमी लगभग 16000 किलोमीटर और ग्रामीण 48000 किलोमीटर पैदल चल लेता है।
शरीर में उपलब्ध धमनियों, शिराओं और कोशिकाओं को मिलाकर नसों की लम्बाई 96540 किलोमीटर होती है। प्रति मिनट 10 फुट खून उछलता है। खून में उपलब्ध 25 खरब लाल कोशिकाएं (रक्ताणु) प्रतिपल रोगाणुओं से लडने को तैयार रहती हैं। सफेद कोशिकाएं (श्वेताणु) जीवन पर्यन्त 5 अरब बार सांस लेने में मदद करती हैं। शरीर में व्यवस्थित सभी अंग वाटरप्रूफ थैलियों में सुरक्षित रहते हैं। शरीर की संपूर्ण त्वचा लगभग 20 वर्गफुट लंबी व चौडी होती है। पूरे शरीर में करीब 50 लाख बाल होते हैं। जीवन का संपूर्ण आनन्द लूटने के लिए 9000 स्वाद कोशिकाएं होती हैं। प्रत्येक तीन साल में त्वचा सांप की केंचुली की तरह परिवर्तित होती रहती है। श्वेताणुओं की उम्र 120 दिन होती है। शेष कोशिकाओं के जीवन-मरण का सिलसिला चलता रहता है।

04 December 2009

आरजुओं का सारा जहां लुट गया

आज किसी दोस्त किसी बिछडे दोस्त को याद कर लिया जाये। ठंडी छांव की ही नही कभी-कभी कडी धूप भी जरूरी होती है। कभी-कभी उदास भी हो लिया जाये।
आज सुनिये एक दर्दीली आवाज में कव्वाली । उम्मीद है आपको यह कलाम पसन्द आयेगा।

इन हसीनों के चेहरे तो मासूम हैं
किसको कातिल कहूं, किसको इल्जाम दूं
किसने बिस्मिल किया किसने लूटा मुझे
क्या कहूं ऐ फना मैं कहां लुट गया



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03 December 2009

रलदू चौधरी और Ftv

एक दिन रलदू चौधरी घर महै बैठा फैशन टी वी (FTV) देखै था। अचानक उसका तेरह साल का बेटा फत्तू उसके कमरे महै आग्या। फत्तू नै देखते ही रलदू सकपका गया अर एकदम तै डिप्लोमैटिकली बात बना कै बोल्या - "गरीब छोरी सैं, कपडे लेन के पिस्से भी कोनी इन धोरै"
फत्तू बोल्या - बाब्बू जब इस तै भी गरीब आवैं तै मन्नै भी बुला लिये