26 August 2011

अब वो झल्लाती नहीं है

गूगल से
ऑफिस में लंचटिफिन ना ले जाने की बात से ही अंजू नाराज होने या मेरे बैग में टिफिन रखने की जबरदस्ती करने लगती थी। लेकिन पिछले तीन दिन से मैं लंच बॉक्स नहीं ला रहा हूँ तो भी वह कुछ नहीं बोलती। दो-तीन दिन से भूख कम हो रही है या लगता है मन ही नहीं करता। हर कौर, हर निवाले के साथ एक बात याद आती है कि एक आदमी मेरे अधिकारों की लडाई के लिये भूखा बैठा है।

6 comments:

  1. हर संवेदन शील भारतीय नागरिक की भूख आजकल इसी के चलते कम हो चली है.

    रामराम

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  2. भावनात्मक सपोर्ट ही कहते हैं शायद इसको।

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  3. अंतर भाई मै तो समझता था कि मैरा ही दिमाग बिगड गया हे, लेकिन लगता हे अब ९०% भारतियो का दिमाग मेरे जैसा ही बिगड गया हे, बहुत भावूक कर दिया आप की इस पोस्ट ने...
    मैने कल यहां मुनिख मे अन्ना के समर्थन मे एक आयोजन रखा था, लेकिन कुछ अपने भारतिय तत्वो ने उसे पेदा होने से पहले ही खत्म कर दिया, जो बचा था वो बरसात की भेंट चढ गया,मुझे बहुत अफ़सोस हुआ... कसुर वार सिर्फ़ एक दो आदमी हे जो उम्र मे मेरे पिता से भी बढे हे इस कारण मै उन्हे कुछ कह भी नही सकता,इन्हे कब समझ आयेगी पता नही

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  4. पिछले कुछ दिनों से भोजन से अनिच्छा सी हो रही है।

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  5. सच कहते हैं आप अंतर सोहिल जी,
    एक संवेदनशील व्यक्ति यही महसूस करता है आज...
    आपकी यही पीड़ा आज मेरे घर में मेरी जुबान से भी निकली... सारा घर व्यथित महसूस कर रहा है...
    सादर....

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  6. ऐसा होता है जी
    आज मैनें सांपला में कवि सम्मेलन करवाने की कोशिश की थी। जिसमें देशभक्ति, ओज और वीर रस की कविताओं और सरकार पर व्यंग्य का प्रोग्राम रखना था। मेरी मंशा ये थी कि इस प्रोग्राम के तुंरत बाद एक कैंडिल मार्च या रैली निकालेंगे। एक संस्था के साथ बैठकर सारा प्रोग्राम बनाया, श्री यौगेन्द्र मौद्गिल जी से भी बात हो गई थी। लेकिन सुबह इन लोगों ने हाथ पीछे खींच लिये।
    मैं अपने पिताजी को (जो पूरा दिन न्यूज देखते रहते हैं) रामलीला ग्राऊंड चलने के लिये कहता हूँ, लेकिन एक बार भी नहीं आये। हालांकि अन्ना के समर्थन में मुंडन करा लिया है :)

    प्रणाम

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