23 February 2011

पुस्तकें, साहित्य पढने का समय नहीं है

बहुत सारे लोग पुस्तकें आदि यात्रा में ही पढते हैं। क्या कारण है? घर में एकांत नहीं मिलता या मूढ नहीं बनता है। या कोई पुस्तक या साहित्य आपने खरीदी है या भेंट में मिली है तो उसे यात्रा में ही पढेंगें। मुझे तो कोई पुस्तक मिलती है या खरीदता हूँ तो जबतक उसे पूरा ना पढ लूं, तबतक सभी काम गौण हो जाते हैं। 

टीवी देखने का, सिनेमा देखने का और फालतू के कार्यों के लिये समय तुरन्त निकाल लेते हैं और पुस्तक सामने मेज पर, रैक में या बैग में इंतजार करती रहती है कि कोई हाथ मेरे पन्नों को खोलेगा। लेकिन इंतजार करते हैं कि कब यात्रा के लिये निकलना है, रिजर्वेशन हो गया है, तभी  इस पुस्तक का यूटिलाईजेशन होगा। 


18 comments:

  1. पुस्तकों के लिए समय निकालना ही चाहिए..... सुंदर सन्देश

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  2. पुस्तक पढना चाहिए।
    पुस्तके मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं।
    वैसे अब ब्लॉग का जमाना है :)

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  3. इतनी व्यस्तता से समय निकालना वाकई बड़ा मुश्किल टास्क है अमित ! हाँ ट्रेन यात्रा सबसे उपयुक्त है किताबों से मित्रता करने को ! शुभकामनायें

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  4. आप सही कह रहे हैं, पुस्‍तक आते ही हमारा मन उसे पढ़ने का होता है लेकिन जब यात्रा पर जाना होता है तब तो कोई अच्‍छी सी पुस्‍तक या पत्रिका चाहिए ही। इसलिए कभी उन्‍हें अलग से निकालकर रख लिया जाता है।

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  5. वैसे आजकल यात्रा में भी गोदयंत्र (लैपटोप) साथ ही रहता है फ़िर बेचारी पुस्तक वापस लौट के अपने ठिकाने पर आ जाती है.:)

    रामराम.

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  6. साहित्य का स्वरूप बदल रहा है. किताबों की जगह पर नेट आ गया है. आप और हम ब्लॉग लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं. हालाँकि किताबें पढ़ने की और रुझान कम जरूर हुआ है.

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  7. अब जब इंदोर जाना हे तो लगता हे सारी पुस्तके साथ ले जानी हे, आराम से रेल मे बेठ कर पढना:)

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  8. हा-हा-हा..... क्या अंतर भाई, जीने नहीं दोगे किसी को चैन से !

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. हृदयग्राही,पर सब इस बात को समझें तो .............शुभकामनाएं

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  11. पुस्तकों में जो मजा है वो कहीं नहीं
    पर अगर कोई सफर में पढता है तो ये तो अच्छी बात ही है
    http://avaneesh99.blogspot.com/

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  12. तो इन्दौर की तैयारी है? हैप्पी जर्नी:)

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  13. घर में इतना समय एक साथ नहीं मिल पाता है कि वह प्रवाह बन सके।

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  14. अजी साहब जब से ब्लाग जगत से जुडे है पुस्तके पढना ही भूल गये हम तो

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  15. हम मनुष्य हमेशा दूसरों के बारे में ही सोचते हैं। लोग ऐसा क्यों नहीं करते, लोग वैसा क्यों नही करते। क्या हम वैसा कर पाते हैं, जो आसानी से दूसरों के बारे में लिख देते हैं।
    सआशीर्वाद

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  16. सही कहा...इलेक्ट्रॉनिक जगत ने प्रिंट मीडिया को क्षति तो पहुंचाई है।
    सटीक लेखन के लिए बधाई।

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मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।