बहुत सारे लोग पुस्तकें आदि यात्रा में ही पढते हैं। क्या कारण है? घर में एकांत नहीं मिलता या मूढ नहीं बनता है। या कोई पुस्तक या साहित्य आपने खरीदी है या भेंट में मिली है तो उसे यात्रा में ही पढेंगें। मुझे तो कोई पुस्तक मिलती है या खरीदता हूँ तो जबतक उसे पूरा ना पढ लूं, तबतक सभी काम गौण हो जाते हैं।
टीवी देखने का, सिनेमा देखने का और फालतू के कार्यों के लिये समय तुरन्त निकाल लेते हैं और पुस्तक सामने मेज पर, रैक में या बैग में इंतजार करती रहती है कि कोई हाथ मेरे पन्नों को खोलेगा। लेकिन इंतजार करते हैं कि कब यात्रा के लिये निकलना है, रिजर्वेशन हो गया है, तभी इस पुस्तक का यूटिलाईजेशन होगा।
पुस्तकों के लिए समय निकालना ही चाहिए..... सुंदर सन्देश
ReplyDeleteपुस्तक पढना चाहिए।
ReplyDeleteपुस्तके मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं।
वैसे अब ब्लॉग का जमाना है :)
पुस्तक पढना चाहिए।
ReplyDeleteइतनी व्यस्तता से समय निकालना वाकई बड़ा मुश्किल टास्क है अमित ! हाँ ट्रेन यात्रा सबसे उपयुक्त है किताबों से मित्रता करने को ! शुभकामनायें
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं, पुस्तक आते ही हमारा मन उसे पढ़ने का होता है लेकिन जब यात्रा पर जाना होता है तब तो कोई अच्छी सी पुस्तक या पत्रिका चाहिए ही। इसलिए कभी उन्हें अलग से निकालकर रख लिया जाता है।
ReplyDeleteवैसे आजकल यात्रा में भी गोदयंत्र (लैपटोप) साथ ही रहता है फ़िर बेचारी पुस्तक वापस लौट के अपने ठिकाने पर आ जाती है.:)
ReplyDeleteरामराम.
साहित्य का स्वरूप बदल रहा है. किताबों की जगह पर नेट आ गया है. आप और हम ब्लॉग लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं. हालाँकि किताबें पढ़ने की और रुझान कम जरूर हुआ है.
ReplyDeleteअब जब इंदोर जाना हे तो लगता हे सारी पुस्तके साथ ले जानी हे, आराम से रेल मे बेठ कर पढना:)
ReplyDeleteहा-हा-हा..... क्या अंतर भाई, जीने नहीं दोगे किसी को चैन से !
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हृदयग्राही,पर सब इस बात को समझें तो .............शुभकामनाएं
ReplyDeleteपुस्तकों में जो मजा है वो कहीं नहीं
ReplyDeleteपर अगर कोई सफर में पढता है तो ये तो अच्छी बात ही है
http://avaneesh99.blogspot.com/
तो इन्दौर की तैयारी है? हैप्पी जर्नी:)
ReplyDeleteघर में इतना समय एक साथ नहीं मिल पाता है कि वह प्रवाह बन सके।
ReplyDeleteखुशी हुई जानकर :)
ReplyDeleteअजी साहब जब से ब्लाग जगत से जुडे है पुस्तके पढना ही भूल गये हम तो
ReplyDeleteहम मनुष्य हमेशा दूसरों के बारे में ही सोचते हैं। लोग ऐसा क्यों नहीं करते, लोग वैसा क्यों नही करते। क्या हम वैसा कर पाते हैं, जो आसानी से दूसरों के बारे में लिख देते हैं।
ReplyDeleteसआशीर्वाद
सही कहा...इलेक्ट्रॉनिक जगत ने प्रिंट मीडिया को क्षति तो पहुंचाई है।
ReplyDeleteसटीक लेखन के लिए बधाई।