24 February 2011

ब्लॉगपठन पुस्तक को पढने जैसा रुचिकर है?

ब्लॉगपठन किसी पुस्तक को पढने जैसा रुचिकर है, ऐसा मुझे तो नहीं लगता।   हिन्दी ब्लॉग़जगत के अमिताभ बच्चन बायें हाथ से लिखने वाले आदरणीय श्री समीरलाल जी की उपन्यासिका "देख लूं तो चलूं" के लिये आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में खलबली सी मची है। सभी इसे पढना चाहते हैं, लेकिन बहुत से लोगों को पता ही नहीं कि यह पुस्तक कैसे खरीदें, मंगवायें या हासिल करें। मैनें खुद भी अभी इसे खरीद कर नहीं पढा है, लेकिन ब्लॉगपोस्ट में मैंनें श्री समीर जी की पूरी ही उपन्यासिका को पढ रखा है। लेकिन मैं जल्द ही एक प्रति खरीद कर अपने पास सुरक्षित रखना चाहता हूँ। क्योंकि मुझे तो इंतजार है जब मुझे यह उपन्यासिका रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल पर दिखेगी और मेरे खरीदने से पहले ही कोई दूसरा यात्री इसे खरीद लेगा और दुकान वाला कहेगा कि भाई साहब, कल सुबह ही 100 प्रतियां आई थी ये आखिरी प्रति बची थी। 
तो आप देर क्यों कर रहे हैं  इसे खरीदने के लिये 
अविनाश वाचस्पति said...
जिनके पास पुस्‍तक नहीं है, उनमें से जो मित्र पुस्‍तक क्रय करके पढ़ना चाहते हैं, वे तुरंत nukkadh@gmail.com पर मेल भेजकर पूरी प्रक्रिया की जानकारी ले लें। यह सूचना देश में मौजूद देशी साथियों के लिए है। विदेशियों के लिए तो समीर भाई हैं ही। 
नोट - यह पोस्ट कोई प्रचार या विज्ञापन नहीं है। आप निम्न लिंक पर जाकर भी लगभग पूरी उपन्यासिका पढ सकते हैं। लेकिन ये आपको भी पता है कि ब्लॉग पर पढने और उपन्यास को पुस्तक रुप में पढने में क्या फर्क है। हिंदिनी पर इस उपन्यासिका के बारे में आदरणीय श्री फुरसतिया जी द्वारा और भी बहुत कुछ जान सकते हैं।

किताब में आदि से अंत तक ब्लागरों का योगदान है। किताब लिखी ब्लागर समीरलाल ने, आवरण डिजाइन किया ब्लागर विजेन्द्र एस विज ने, भूमिका लिखी ब्लागर राकेश खंडेलवाल और पंकज सुबीर ने, संपादन किया ब्लागर श्रीमती रचना बजाज और श्रीमती अर्चना चाव जी ने। छापने का काम करने वाले भी ब्लागर हैं। पाठक और समीक्षक भी ज्यादातर ब्लागर हैं। इस तरह से इस अद्भुत किताब के लिये कहा जा सकता है- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर।

मेरे गीत, न दैन्यं न पलायनम, देशनामा और अंतर्मंथन पर आई इन टिप्पणियों के कारण मैनें ये पोस्ट लिखी है।
: केवल राम : said...
मैं भी पढने की जिज्ञासा लिए हूँ .....देखूं तो सही जरा 
Abhishek Ojha said...
मैं भी इंतज़ार कर रहा हूँ पुस्तक का मुझ तक पहुचने का.
cmpershad said...
सुबीर जी को ज्ञानपीठ भी पुरस्कृत कर चुकी है उनकी कृतियों के लिए। वैसे, समीर जी को कोई धनाभाव तो है नहीं, हां- एक अच्छे प्रकाशक की सहायता ज़्ररूर मिल गई है। सोचा था पुस्तक देख लूं तो चलू पर क्या करें बिना देखे ही चल रहे हैं :)    
Kailash C Sharma said...
पोस्ट पढ़ कर पुस्तक पढने की जिज्ञासा बढ़ गयी है...

मेरे भाव ने कहा…

आप समीर जी के मित्रों में से हैं इसीलिए आपको वह पुस्तक पढने का सौभाग्य जल्दी मिल गया. "देख लूं तो चलूँ" कि प्रशंशा पढ़कर इसे पढने की अधीरता बढती जा रही है.
ZEAL said...
बहुत उत्सुकता है श्री समीर लाल जी की पुस्तक पढने की ।
दीप्ति शर्मा said...
mai bhi jarur padna chahugi
Mukesh Kumar Sinha said...
sameer bhaiya ko pata hota hai, pathak ke nabj ka, jaise aapko...tabhi to aap log ko ham sammaniya blogger samajhte hain...:) hame intzaar hai sameer bhaiya ke iss book ka..:)
shikha varshney said...
एक ठो प्रति का इंतज़ार हमें भी है ..समीर जी की लेखन शैली वाकई प्राभावशाली है .
pragya said...
पोस्ट पढ़कर मन कर गया कि पुस्तक पूरी पढ़ूँ...
रचना दीक्षित said...
समीर लाल जी की पुस्तक पढने की उतकंठा बढती जा रही है,
sagebob said...
आपने पुस्तक को पढने की जिज्ञासा जगा दी है.ढूंढता हूँ कहीं.
Mithilesh dubey said...
भाग्यशाली है आप, मुझे तो किताब मिली ही नहीं पढ‍े क्या और बोले क्या ??
VICHAAR SHOONYA said...
सतीश जी मैंने तो सभी बड़े बड़े लेखकों कि किताबें फ़ोकट में यार दोस्तों से उधार मांग कर ही पढ़ी हैं. अब देखें कि समीर जी कब मेरी इस लिस्ट में शामिल होते हैं.
 रश्मि प्रभा... ने कहा…
kahan se lun?
ब्लॉगरप्रमोद ताम्बट ने कहा…
बहुत बहुत बधाई। समीर जी की पुस्तक को पाने की बेकरारी तो हमें भी है, पता नहीं कैसे मिलेगी। अच्छा आलेख।
डॉ. मनोज मिश्र said...
आपनें पढने की उत्सुकता और दूनी कर दी,आभार प्रस्तुति के लिए.
RAJNISH PARIHAR said...
आपने बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ वर्णन किया है !अब तो मन ये कर रहा है की हम भी ये सब जीवंत देखें ,देखते है कब मौका मिलता है...
 ashish ने कहा…
अच्छी समीक्षा , "देख लू तो चलूँ " पढने की इच्छा है , बाकी सुवासित समीर ऐसे ही बहता रहे और मन को प्रफुल्लित करता रहे .
विनोद कुमार पांडेय said...
पंकज जी,ब्लॉग रत्न है जो अपने मेहनत से बहुत से ब्लॉगर्स को कहानीकार और ग़ज़लक़ार बना दिए हैं.. उनका सहयोग और मार्गदर्शन अतुलनीय है.. समीर जी के बारे में क्या कहूँ..उनके व्यक्तित्व को नमन करता हूँ....पुस्तक का इंतजार है...
madansharma said...
ब्लॉग पर आना सुखद रहा|वाह भाई वाह... "उजाले अपनी यादों के , हमारे साथ रहने दो ! न जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !" वाकई बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं आप! लगता है इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा।परन्तु यह मिलेगी कहाँ?
संजय @ मो सम कौन ? said...
’पढ़ने को मिलेम तो कहूँ’:)) इतना तो मालूम ही है कि मस्त होगी पढ़ने में।
Sunil Kumar said...
मैं भी पढने की जिज्ञासा लिए हूँ | इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा !
ममता त्रिपाठी said...
हम भी पढ़ना चाहेगे उड़नतश्तरी.........
ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...
सतीश जी, समीर जी की पुस्तक पढ़ने की इच्छा बलवती होती जा रही है ! कहाँ उपलब्ध है कृपया सूचित करने की कृपा करें !
संजय भास्कर said...
आपने पुस्तक को पढने की जिज्ञासा जगा दी मैं भी इंतज़ार कर रहा हूँ पुस्तक का मुझ तक पहुचने का.
देवेन्द्र पाण्डेय said...
जहाँ देखो वहीं चर्चा! लगता है इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा। मिलेगी कहाँ?
Deepak Saini said...
देख लूँ तो चलू का हमे भी इंतजार है आभार

8 comments:

  1. ये तो अच्छा काम किया।

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  3. साहित्य की सुन्दर कृति, ब्लॉग लेखन पर आधारित।

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  4. सभी पढाने को लालायित है ,वास्तव में लेखन की उत्कृष्टता है |

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  5. मैने तो पढ ली। शुभकामनायें।

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति। शुभकामनायें।

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