24 September 2011

हर एक ब्लॉगर जरुरी होता है

अनशन के लिये जैसे अन्ना होता है वैसे हर एक ब्लॉगर जरुरी होता है
ऐसे हर एक ब्लॉगर जरुरी होता है

कोई सुबह पांच बजे पोस्ट सरकाये
कोई रात तीन बजे टीप टिपियाये

एक तेरे ब्लॉग को फॉलोइंग करे
और एक तेरी पोस्ट पे लाईक करे

कोई नेचर से भूतभंजक कोई घोस्ट होता है
पर हर एक ब्लॉगर जरुरी होता है

एक सारी पोस्ट पढे पर कभी-कभी टिप्पी करे
एक सभी पोस्ट पर सिर्फ नाईस कहे

धर्मप्रचार का कोई ब्लॉग, कोई भंडाफोडू
कोई कहे जो तुझसे सहमत ना हो उसका सिर तोडूं

कोई अदला-बदला की टिप्पणी कोई लिंक देता है
लेकिन हर इक ब्लॉगर जरुरी होता है

इस गुट का ब्लॉगर कोई उस मठ का ब्लॉगर
कोई फेसबुक पर चैट वाला क्यूट-क्यूट ब्लॉगर

साइंस ब्लॉगर कोई ज्योतिष ब्लॉगर
कोई दीक्षा देने वाला बा-बा ब्लॉगर

कविता सुनाने वाला कवि ब्लॉगर
उलझन सुलझाने वाला वकील ब्लॉगर

पहेली पूछने वाला ताऊ ब्लॉगर
आपस में लडवाने वाला हाऊ ब्लॉगर

देश में घुमाने वाला मुसाफिर ब्लॉगर
विदेश दिखाने वाला देशी ब्लॉगर

तकनीक सिखाने वाला ज्ञानी ब्लॉगर
सबको हंसाने वाला कार्टूनिस्ट ब्लॉगर

ये ब्लॉगर, वो ब्लॉगर, हास्य ब्लॉगर, संजीदा ब्लॉगर
हिन्दू ब्लॉगर, मुस्लिम ब्लॉगर, नया ब्लॉगर, पुराना ब्लॉगर
चोर-अनामी
महिला ब्लॉगर-पुरुष ब्लॉगर
क से ज्ञ

हर इक सोच में अन्तर होता है
पर हर एक ब्लॉगर जरुरी होता है
लेकिन हर एक ब्लॉगर जरूरी होता है

29 August 2011

कैसे कहूं "मैं अन्ना हूँ"

अन्ना की मुख्य तीन मांगें मानकर सरकार ने संसद में लोकपाल बिल पेश कर दिया है। लेकिन मेरा व्यक्तिगत विचार था और है कि भारत देश में जनलोकपाल बिल जैसा कानून तो कोई भी सरकार नहीं लायेगी। मेरा समर्थन अन्ना के साथ था और है, क्योंकि आज शायद पूरे भारत में अन्ना जैसा व्यक्तित्व बहुत मुश्किल से मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि लोकपाल कानून आने से थोडा फर्क तो जरुर पडेगा। डंडे का डर फिजूल नहीं होता, बहुत से आपराधिक कार्य डंडे के डर से ही रुके होते हैं। लगभग सभी धर्मों में भी जीवन में आचरण के लिये परम सत्ता का भय दिखाकर नियम बनाये गये हैं। 
मेरा शुरू से मानना रहा है कि जबतक हर आदमी नैतिक नहीं हो जाता, तबतक भ्रष्टाचार का समूल नाश नहीं हो सकता और ऐसा होना असंभव है। इतिहास में भी कभी भी ऐसा नहीं हुआ है कि हर आदमी नैतिक हो जाये। 

अब बात रामलीला ग्राऊंड में चलने वाले आंदोलन के दिनों की। मेरे कार्यस्थल के नजदीक होने की वजह से मैं लगभग हर रोज रामलीला मैदान में जाता रहा। दूसरे लोगों को भी वहां चलने के लिये प्रेरित करता रहा। सुबह 10 बजे ट्रेन से उतरकर मैं सीधा रामलीला मैदान पहुँचता था। वहां सबसे पहले भजन होता था "रघुपति राघव राजा राम, सबको सन्मति दे भगवान"। फिर 1-2 घंटे में या एक दो गाने वगैरा सुनकर मैं ऑफिस आ जाता था। वहां स्टेज पर जब कोई बोलता था तो लोगों के नारे आदि की वजह से सुनना समझना मुश्किल सा होता था। कभी-कभी दोपहर में और शाम को भी 1-2 घंटे के लिये मैं वहां जाता रहा। 

कुछ लोग पिकनिक मनाने ही आते थे और बस फोटो खींचने-खिंचवाने में लगे रहते थे और कुछ लोग मीडिया के कैमरों के सामने आने की जुगत लगाते रहते थे। दिल्ली में रह रहे कुछ लोग, मजदूरी करने वाले और दिहाडी कार्य करने वाले लोग मुफ्त खाना खाने के लिये आते थे। कुछ नयी उम्र के लोफर टाईप लडके अन्ना टोपी लगाये लफंगागिरी करते रेलवे स्टेशनों और सडकों पर घूम रहे होते थे। अवसरवादियों ने इस आन्दोलन में धन भी खूब कमाया। तिरंगा, रिस्टबैंड, फटके, गलपट्टी, टोपी और चेहरे पर तिरंगा बनाने वाले भी हजारों की संख्या में चारों तरफ फैले थे। जो आपके कपडे देखकर हर वस्तु का दाम वसूल रहे थे। एक टोपी की कीमत 5रुपये से 50 रुपये कुछ भी मांग लेते थे। 

मैनें एक दिन दो टोपी 20रुपये की, एक दिन दो टोपी 15रुपये की और एक बार दो टोपी 10रुपये की खरीदी। लेकिन मैनें "मैं अन्ना हूँ" लिखी टोपी केवल एक दिन केवल 15मिनट के लिये ही पहनी। क्योंकि मैं अपने आप को कभी भी ये नहीं कह पाया कि "मैं अन्ना हूँ"। शुद्ध विचार और शुद्ध आचार ये दो बातें मेरे दिमाग में घूमती रही। दूसरों से मैं कितना भी छुपा लूं, लेकिन खुद से तो चाहकर भी नहीं भुला सकता। मुझे याद आता है अपना गंदा आचरण, अपने गंदे विचार, कुछ घटनायें जिन्हें मैं सबसे छुपाये हुए हूँ। अपने अन्दर भरे काम, क्रोध,लोभ और अशुद्ध विचारों के रहते मैं कैसे कह सकता हूँ कि "मैं अन्ना हूँ"।
   

26 August 2011

अब वो झल्लाती नहीं है

गूगल से
ऑफिस में लंचटिफिन ना ले जाने की बात से ही अंजू नाराज होने या मेरे बैग में टिफिन रखने की जबरदस्ती करने लगती थी। लेकिन पिछले तीन दिन से मैं लंच बॉक्स नहीं ला रहा हूँ तो भी वह कुछ नहीं बोलती। दो-तीन दिन से भूख कम हो रही है या लगता है मन ही नहीं करता। हर कौर, हर निवाले के साथ एक बात याद आती है कि एक आदमी मेरे अधिकारों की लडाई के लिये भूखा बैठा है।

25 August 2011

अन्ना बच्चों के मुख से

सुबह अन्जू को बोलकर आया हूँ कि शायद आज शाम मैं घर ना सकूं। हो सकता है मैं संसद पर जाकर गिरफ्तारी दे दूं। अन्जू ने कहा कि वह भी यह कार्य करना चाहती है। मैनें कहा मुझे खाना बनाना नही आता अगर मै बना सकता तो मैं घर पर रुक जाता और तुम ऐसा कर सकती हो। । बच्चे अभी छोटे हैं, फिर भी तुम्हारी मर्जी। कल रात 11:30 बजे टीवी पर अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी की बातें सुनकर रक्तचाप बढ गया था और धडकन तेज हो गई थी। दोनों बच्चे भी देख रहे थे और उन्होंने सवालों की झडी लगा दी थी। जितना उनकी समझ में आ रहा था, उसी अनुसार सवाल कर रहे थे। पुलिस तो बुरे लोगों को पकडती है? अन्ना तो किसी से लडाई भी नहीं करते? खैर, अभी तो ऑफिस से ये पोस्ट लिखकर निकल रहा हूँ और शाम 5 बजे  प्रधानमंत्री निवास पर जाने का मन है। 

उर्वशी स्कूल से एक कविता सीख कर आई है आप भी सुनिये और लक्ष्य के लिये जो चीजें दिख रही हैं, सबकुछ अन्ना हो गया है। 



23 August 2011

पत्नी बच्चे भी अन्ना के समर्थक बन गये

अन्जू आमतौर पर व्रत-उपवास कम ही रखती है। कल जन्माष्टमी को उपवास रखा था। मैनें पूछा मन्दिर गई नहीं, पूजा की नहीं, कान्हा को झूला झुलाया नहीं, ये कैसा व्रत रखा है? उसने कहा आज मैनें अन्ना जी के समर्थन में व्रत रखा है और प्रभु से प्रार्थना कर रही हूँ कि इस बारे में जल्द से जल्द कोई सकारात्मक खबर मिले। सुबह बच्चों को भी अन्ना टोपी (अब गांधी टोपी का नाम बदल गया है) पहना दी। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, उन्हें "मैं अन्ना हूँ" लिखी टोपी पहनकर स्कूल जाना पसन्द नहीं आया। हालांकि स्कूल में भी बच्चों को अन्ना जी के बारे में बताया जा रहा है और अन्जू भी  बच्चों को लगातार अन्ना के बारे में बताती है। जिस दिन घर के सामने से अन्ना के समर्थन में रैली निकल रही थी, उस दिन मैं ऑफिस में था। बडे उत्साह से मुझे फोन किया और रैली में भाग लेने की मंशा जाहिर की। तीन दिन से कह रही है कि अकेले जाते हो, एक दिन के लिये उसे भी बच्चों के साथ रामलीला ग्राऊंड जाना है।