कोई अन्ना को गांधी बताने पर जुटा है और कोई तुलना करने में जी-जान लगाये है। गांधी-गांधी थे और अन्ना-अन्ना है। दोनों के समय, स्थिति और स्थान में फर्क है।
आप ये कहना चाहते हैं कि कृष्ण को भी राम की तरह वनवास काटना चाहिये था। राम कभी हँसे भी नहीं और कृष्ण हैं कि रासलीला करते बांसुरी बजाते और नाचते रहे।
गांधी 16-08-47 को अन्धेरे कमरे में उपवासे बैठे थे, अन्ना को भी बन्द कमरे में अनशन करना चाहिये। (आप समझते हैं कि इस तरीके से जनता को उनके आन्दोलन की जानकारी हो जायेगी या सरकार कोई नोटिस लेगी)
अन्ना ने राजघाट पर मीडिया और भीड के बीच में ध्यान किया। गांधी ऐसा नहीं करते थे, ये कैसा ध्यान है। (गांधी के समय में राजघाट जैसी पवित्र जगह नहीं थी। : ) किसी का राजघाट पर ध्यान करने को जी चाहा, मीडिया और जनता खुद जुटी थी, उन्हें देखने के लिये)
निकम्मी सरकार लाने वाले हम ही हैं तो क्या उनके गलत कार्यों और नीतियों के प्रति आवाज नहीं उठानी चाहिये और अगले चुनावों का इंतजार करना चाहिये। कहां से लायेंगें आप राजनीति में अच्छे आदमी। जिसके सिर पर डंडा रहेगा वही अच्छा रह सकता है।
आप अपनी कम्पनी में एक मैनेजर या दुकान पर मुनीम 5 साल के अनुबंध पर रख लेते हैं। कारोबार उसके सुपुर्द करते हैं, वह घपला या चोरी करता है तो क्या आप 5 साल अनुबंध के पूरा होने तक उससे कोई जवाब-तलब नहीं करेंगें। क्या आपको कोई हक नहीं है उससे हिसाब-किताब लेने का और सजा दिलवाने का। अच्छा तो यही है कि पहले ही उसकी सजा का प्रावधान किया जाये। अनुबंध में बताया जाये कि अगर कोई हेरा-फेरी की तो तुम्हारे साथ क्या हो सकता है।
मेरे विचार से सत्ता बुरे लोगों के हाथ में जाती है ऐसा नहीं है बल्कि सत्ता पाते ही लोग बुरे हो जाते हैं। आपको अदृश्य होने की शक्ति मिल जाये तो सोचियेगा, सबसे पहले कौन सा कार्य करेंगें। ईमानदारी से सोचियेगा क्या ये ख्याल आयेगा कि चलो किसी थके-हारे के पैर दबा दूं या पडोसी की पत्नी को छेडने का ख्याल पहले आयेगा या किसी की तिजोरी खोलने का।