यह वाक्या पढने से पहले कुछ हरियाणवी शब्दों के अर्थ समझ लेना जरूरी है।
उडै = वहां
उरेनै-परेनै = इधर-उधर
सोन की खातर = सोने के लिये
टोण लाग्या = ढूंढने लगा
कितै भी = कहीं भी
किस तरियां = किस तरह
न्यू कर = ऐसा करो
डोगा = बैंत (वृद्धों की छडी)
जगा = जगह
भतेरी = काफी (बहुत)
बाही = चारपाई (खाट) की लम्बाई वाली लकडी
{और छोटे डंडे (चौडाई वाले) को सेरू कहते हैं}
एक बार फत्तू चौधरी किसे की बारात म्है गया। उडै उसनै खूब खाया-पिया। देर रात भी हो गयी थी तो उसनै नींद आन लागी। वो उरेनै-परेनै सोन की खातर जगह टोण लाग्या। उसनै कितै भी जगह नही मिली। बडा परेशान होग्या। घूमता-घूमता वो गली म्है आग्या। उसनै देखा एक खाट पै एक ताऊ अकेला सोन लाग रह्या सै। उसनै ताऊ की चादर खींची
अर बोल्या - ताऊ थोडा सा परेनै होले, मैं भी इस खाट पै सो जाऊंगां
अर बोल्या - ताऊ थोडा सा परेनै होले, मैं भी इस खाट पै सो जाऊंगां
ताऊ बोल्या - अरै जींगड, इस खाट पै किस तरियां सोवैगा, इस पै तो एक आदमी ही सो सकै सै
फत्तू बोल्या - ताऊ तू बस थोडा सा सरक ले, मैं तो बस बाही पै सो ज्यांगा
ताऊ बोल्या - छोरे तू बाही पै ए सो ज्यागा???
फतू बोल्या - हां ताऊ, मन्नै तो इतनी ए जगा भतेरी सै
ताऊ बोल्या - जै तू बाही-बाही पै ए सो सकै सै तै छोरे तू न्यू कर, वो देख मेरा डोगा धरा, तू उस पै सो ज्या
ताऊ के ठुमके
ताऊ की पहली ठगी
ताऊ-ताई अर मोड्डा
ताई री ताई तेरी खाट तलै बिलाई
ताऊ के ठुमके
ताऊ की पहली ठगी
ताऊ-ताई अर मोड्डा
ताई री ताई तेरी खाट तलै बिलाई