12 January 2017

देश का विकास यहीं से शुरू होता है........

BSF के जवान के घटिया खाना परोसे जाने का वीडियो आने के बाद मुझे पूरा यकीन था कि अब इस तरह के और वीडियो भी आयेंगे..........अब CRPF के एक कांस्टेबल ने समस्याओं की शिकायत की है। आगे और भी आयेंगे और आने भी चाहियें। लेकिन अब क्यों, इसका कारण है ....... जवानों के मन में, जनता के मन में, लोगों के मन में एक आशा..........एक भरोसा पैदा हुआ है कि नरेन्द्र मोदी शायद कुछ कर सकते हैं। वो नोटिस लेते हैं....... ये सब समस्यायें अब पैदा नहीं हुई।
जन-मन में ऐसा भरोसा होना आसान नहीं होता और बहुत मुश्किल है ऐसे भरोसे को बनाये रखना। नेहरू पर था......इन्दिरा पर हुआ.......अटल पर हुआ और उसके बाद सब बिखरता गया.....पहले दिन भरोसा करते..वोट पडते ही टूट जाता। केजरीवाल पर भरोसा किया था......खूब भरोसा किया। लेकिन कितने दिन....रहा।
नेता कुछ करे कुछ करके दिखाये तभी बनता है ऐसा भरोसा.......ऐसी ही एक उम्मीद मैं भी पाले बैठा हूं।

मैं भी सोच रहा हूं मोदी के लिये एक सेल्फ़ी वीडियो मैं भी डाल दूं......भई भरोसा तो हमें भी है कि नोटिस लेंगे। भारत विकासशील देश है....मतलब.....कुछ ना कुछ विकास तो होता ही रहा है......हो रहा है और होता रहेगा। लेकिन विकसित कब होंगे....और विकसित होने के लिये विकास की गति बढानी होगी और गति कैसे बढे......जिस देश में आज भी 50km जाने के लिये तीन घंटे लगते हैं। देश के किसी दूर-दराज के इलाके की बात नहीं कर रहा हूं....वहां तो पता नहीं क्या होता होगा.....राजधानी दिल्ली के आसपास और NCR का जिक्र है। इस देश का विकास सम्भव नहीं है जबतक सडकों और रेलवे का सुधार ना हो। सबसे बडी बात रेलों का सुधार चाहिए। 
ट्रेन समय पर चलें बस इतना सा सुधार हो जाये तो बहुत बडा फर्क आयेगा, कैसे? तो सुन लो........इस देश में लगभग ढाई करोड..... हां जी, दो करोड पचास लाख (2,50,000,00) लोग प्रतिदिन रेल में सफ़र करते हैं। इनमें लगभग एक करोड लोग दैनिक यात्री भी होते हैं......जो अपने व्यापार धंधे के लिये, नौकरी के लिये, रोजी-रोटी के लिये, मेहनत-मजदूरी के लिये ट्रेन में आते-जाते हैं। उनकी कितनी एनर्जी/ऊर्जा जिसका उपयोग उत्पादन/रचनात्मकता/संवृद्धि (Development/Growth/Produce/Creativity) में होना चाहिये, वो ट्रेन में या स्टेशन पर देरी से आने वाली ट्रेनों का इंतजार करते, झल्लाते निकल जाता है।


मुझे घर से केवल 50km दूर दिल्ली आने के लिये तीन घंटे लग जाते हैं......जबकि ट्रेन की समयदूरी रेलवे के अनुसार एक घंटा है। ट्रेन देरी से आती हैं.......या समय से आती हैं तो पहुंचते-पहुंचते देर कर देती हैं.......... सर्दी के मौसम में तो अवश्य.....छ: घंटे आने और जाने में लगते हैं, इसका मतलब है गणित की भाषा में जिन्दगी का एक चौथाई (1/4) हिस्सा ट्रेन में और ट्रेन के इंतजार में बर्बाद हो जाना।  ;-) :-) :D
सुबह-सुबह की एनर्जी में जो कार्य कोई भी दो घंटे में कर सकता है, वही कार्य करने में उसी आदमी को 5 से 6 घंटे लग जाते हैं। ढाई करोड लोग एक घंटा भी देर से अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं तो देश की ढाई करोड घंटो की उत्पादकता/रचनात्मकता बाधित होती है.....समझे कि नहीं? 

तेईस साल से दैनिक रेलयात्री होने के नाते एक अनुभव ये है कि लालू जब रेलमंत्री बने थे तो साफ़-सफ़ाई और रेलों की नियमितता में सुधार देखा था। सर्दियों की धुंध और कोहरे भरी सुबहें भी ज्यादतर रेल समय से या बहुत कम देरी किये आती-जाती थी। मत चलाओ नई ट्रेन, मत दो और ज्यादा सुविधायें........जो चल रही हैं उन्हें ही ठीक रख लो..........सबसे पहले ट्रेनों के आवागमन को समयानुसार निश्चित कर दो। देश का विकास यहीं से शुरू होता है........ 
रेल मंत्रालय इस बार कुछ ऐसा करो कि ट्रेन समय पर चलें और समय पर पहुंचे। मालगाडियों का जिक्र नहीं किया है .......नुकसान तो उनकी देरी से भी है।

3 comments:

  1. ये सही बात है जो गाड़ियां चल रही हैं वे नियमित हों और उनमें साफ़-सफाई हो... गाड़ियों के भरमार करने से कोई फायदा नहीं सब अटके रहेंगे एक दूसरे पर
    बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति

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