26 February 2016

अपने मौहल्ले का चौकीदार भी मैं

कुछ समय पहले फेसबुक पर एक तुकबंदी लिखी थी, उसमें सुनीता यादव जी ने कमेंट किया -  "अपने मौहल्ले का चौकीदार भी मैं"
मजाक-मजाक में लिखी उनकी ये पंक्ति सत्य हो गई।

रेलवे रोड पर घर होने की वजह से रेलवे स्टेशन के आसपास की जगह और रेलवे स्टेशन का मालगोदाम खेलने का मैदान रहा और प्लेटफार्म मॉर्निंग-इवनिंग वॉक की जगह...........रात में मेहमान रुकते थे तो उन्हें नींद बडी मुश्किल से आती थी-ट्रेनों की आवाजाही और हॉर्न की वजह से और हमारे लिये रेल की सीटी आज भी लोरी का काम करती है।
15-02-2016 को दिल्ली से वापिस घर जाने के लिये ट्रेन नहीं थी तो ऑफिस में ही रात गुजारी। 16-02-2016 को घर गया तो उसके बाद ऑफिस आना 23-02-2016 को ही हो पाया। 24-02-2016 को सुबह ट्रेन का हॉर्न सुनकर चेहरा खिल गया। लेकिन सांपला से दिल्ली के लिये ट्रेन तो आज 26-02-2016 तक भी नहीं चल रही है।
17-18-19 फरवरी तो कोई खास नहीं, लेकिन 20-21-22 के दिन खौफ में और रातें हाथ में लट्ठ लेकर पहरा देते हुये गुजारी हैं।

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। बढि़या लिखा है आपने।

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