कोयले का इंजन और आरक्षण आंदोलन की याद
दरवाजे से हवा आता है, खिडकियों से खुशबू आती है
स्कूल में दाखिले का पहला ही हफ्ता था। उस दिन शनिवार था और शनिवार को 12:20 वाली रेल नहीं आती थी। 11:15 वाली ट्रेन के लिये स्कूल से कुछ मिनट पहले ही छुट्टी लेकर मैं स्टेशन पर आ गया। इसके बाद रोहतक से साँपला जाने के लिये ट्रेन 03:50 पर ही थी। 11:15 हो चुके थे और गाडी आने ही वाली थी कि तभी गणित के मास्टरजी मेरे सामने आ गये। असल में हमारे स्कूल और रोहतक शहर के मुख्य बाजार के बीच में रेलवे स्टेशन है। और ज्यादातर लोग स्कूल और बाजार में आने-जाने के लिये स्टेशन और प्लेटफार्म के अन्दर से ही गुजरते थे।
दरवाजे से हवा आता है, खिडकियों से खुशबू आती है
स्कूल में दाखिले का पहला ही हफ्ता था। उस दिन शनिवार था और शनिवार को 12:20 वाली रेल नहीं आती थी। 11:15 वाली ट्रेन के लिये स्कूल से कुछ मिनट पहले ही छुट्टी लेकर मैं स्टेशन पर आ गया। इसके बाद रोहतक से साँपला जाने के लिये ट्रेन 03:50 पर ही थी। 11:15 हो चुके थे और गाडी आने ही वाली थी कि तभी गणित के मास्टरजी मेरे सामने आ गये। असल में हमारे स्कूल और रोहतक शहर के मुख्य बाजार के बीच में रेलवे स्टेशन है। और ज्यादातर लोग स्कूल और बाजार में आने-जाने के लिये स्टेशन और प्लेटफार्म के अन्दर से ही गुजरते थे।
मैं दोस्तों की बताई बात (कि इन मास्टरजी को नमस्ते मत करना) भूल गया और मास्टरजी को नमस्ते फेंक मारी। मास्टरजी कुछ बोले नहीं बस मुझे हाथ से अपने पीछे आने का इशारा कर दिया। मैंनें तेजी से उनके साथ चलने की कोशिश की और पूछा कि हाँ मास्टर जी बोलिये क्या काम है? मास्टरजी बस हाथ से इशारा करते रहे और चलते रहे। वो बहुत तेजी से चल रहे थे और मुझे लगभग भागना पड रहा था। मेरे दिमाग में एक बात घूम रही थी कि मेरी ट्रेन छूटने वाली है। लेकिन मैं डर गया कि कहीं मास्टरजी गुस्सा ना हो जायें और शायद इन्हें कुछ कहना हो या काम हो। मैं उनसे पूछता रहा और वो इशारा करते हुये मुझे स्टेशन से काफी दूर ले आये थे।
भिवानी स्टैण्ड पर आने के बाद मैनें मास्टर जी का हाथ पकड लिया और कहा मास्टर जी मेरी ट्रेन छूट जायेगी, बताईये क्या काम है, मुझे कहां लेकर जा रहे हैं? उन्होंने बस इतना कहा - "जाओ"। अब मैं भागा पूरी ताकत से स्टेशन की तरफ, लेकिन रेल छूट चुकी थी और साढे चार घंटे इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सभी दोस्त भी जा चुके थे। पडा रहा वहीं स्टेशन पर और याद करता दोस्तों की दी हिदायत।
जब कोई दो छात्र साथ जा रहे होते थे तो मास्टर जी उनको धकियाते हुये उनके बीच से ही निकलते थे। हर महिने कक्षा से गैरहाजिर रहने वाले छात्रों पर 20-30 पैसे रोजाना के हिसाब से जुर्माना लगाया जाता था। मास्टर जी पहले दिन सबको बता देते कि किसपर कितना जुर्माना है और सभी खुले (छुट्टे) लेकर आयें। अगले दिन मास्टर जी एक कटोरी लेकर आते और हर बच्चे के सामने हाथ फैला कर निकलते। जिस छात्र को जितना जुर्माना लगाया गया है, वो कटोरी में डाल देता।
उनके सजा देने के तरीके भी अलग ही थे। किसी छात्र की साईकिल पर बैठ जाते और छात्र से धक्के लगवाते। कभी-कभी तो साईकिल को किसी गड्डे या कांटों वाली जगह घुसा कर ही उतरते। एक छात्र पढाई में और शरीर से बहुत कमजोर था। हमारी कक्षा में सबसे छोटा और पतला भी था, वह उनके घर के नजदीक रहता था। उसकी जिम्मेदारी थी मास्टरजी का लोहे का गोला घर से स्टेडियम लाना और ले जाना। उस बेचारे का खुद का वजन 20-25 किलो था और 6-7 किलो का गोला उससे उठाना पडता था। सख्त आदेश था कि कहीं भी गोला जमीन पर नहीं रखना है और घर से दूरी थी ढाई-तीन किलोमीटर। उसे कहते थे तू मेरे हसीन पार्क में गुल्ली-डंडा क्यूं खेलता है? अब ये हसीन पार्क के बारे में भी सुन लीजिये आप। मास्टर जी के घर में उनके कमरे की खिडकी से एक मैदान नजर आता था। जहां लोग (महिलायें भी) शौचादि के लिये जाया करते थे, उसे मास्टरजी हसीन पार्क कहते थे। :):):)
मास्टर जी का पढाने का तरीका भी सबसे अलग था। उन्होंने कक्षा 6 से कक्षा 10 तक में कभी भी पढाते वक्त पुस्तक हाथ में नहीं ली। बस आते ही कहते थे फलाने पेज का फलाना सवाल और ब्लैकबोर्ड पर समझाना शुरु कर देते थे। हालांकि गणित बहुत बढिया तरीके से पढाते थे। बार-बार समझाते थे। किसी भी कक्षा का छात्र किसी भी समय, कहीं भी उनसे मदद ले सकता था।
एक मजेदार बात और याद आ रही है। हमारी कक्षा में दो छात्र जो बडे घरों के थे, उन्हें रोजाना एक बडा जग देकर कहते इसमें 2 रुपये का दूध लेकर आओ। उस समय दूध का भाव 5-6 रुपये होता था, फिर भी एक तीन किलो के बर्तन में 300-400 ग्राम दूध मंगवाना??? किसी दूसरे छात्र से नहीं मंगवाते थे, बस उन्हीं दोनों बडे घर के छात्रों से, बेचारे दोनों को जाना पडता था। कभी-कभी दोनों गिलास छुपा कर ले जाते और कक्षा में घुसने से पहले जग में डालकर मास्टर जी को देते थे। लेकिन मास्टर जी को पता चल जाता था। दूसरे छात्र ही बता देते थे। मास्टर जी इस दूध के बर्तन को मेज पर लेकर बैठ जाते। जेब से आयोडेक्स मल्हम जैसी बेहद काली दवा जैसी चीज की एक शीशी निकालते और थोडी दवाई घोल-घोल कर उसके ढक्कन से दूध पीते। दवाई मिला काला दूध उनके कपडों पर गिरता था, लगता था जैसे जानबूझ कर गिरा रहे हैं।
छात्रों को एक ही गाली देते थे - "हुश्श सडियल"। एक लडके का नाम दिनेश कुमार था, हम उसे D.K. कहते थे और मास्टर जी उसकी पदवी बढा कर उसे बोस D.K. कहते थे। एक बार का किस्सा याद आ रहा है। नवम्बर के उस दिन भारत-पाकिस्तान का कोई मैच था। सचिन उस समय क्रिकेट टीम में नये ही आये थे, शायद। गणित के मास्टर जी हमें छत पर खुले में बैठा कर हमारे तिमाही इम्तहान के पर्चे क्रिकेट सुनते हुये चैक कर रहे थे। रेडियो हमारी कक्षा के ही एक छात्र का था। कमेंट्री सुनते हुये बीच-बीच में पता नहीं किन चीजों से नाराज होने पर उन्होंने एक-एक करके कई छात्रों के पर्चे नीचे सडक पर फेंक दिये। जिस छात्र का पर्चा बाहर गिरता, वही छात्र दौड कर नीचे स्कूल से बाहर भागता और पूरी कक्षा हँसती। फिर रेडियो को हाथ मारा और रेडियो नीचे। पता लगा कि सचिन आऊट हो गया है। बाद में जब हमने अपने पर्चों में पाये मार्क्स देखे तो मजा ही आ गया। जिस छात्र ने कुल छ्ह नम्बर के सवाल ही हल किये थे उसके नम्बर 20 हैं और जिसने पूरे सवाल हल कर रखे थे उन्हें कुल 2 नम्बर मिले हैं। यानि जब सचिन ने छक्का लगाया तो 6 नम्बर दे दिये, चाहे सवाल 2 नम्बर का ही था।
किस्से तो बहुत हैं जी, पर और भी गम हैं, जमाने में मुहब्बत के सिवा
किसी ढंग के ब्लॉग पर जाईये और कुछ अच्छी कहानी-कविता पढिये। क्या यहां फालतू में जमे बैठे हो।
किसी ढंग के ब्लॉग पर जाईये,,...... ढंग का ब्लॉग कैसा होता है जैसा कि नारी बलॉग? ........अरे भाई वंहा भी गया था | लेकिन वंहा अब राम लीला खतम हो गयी | बाबा v रचना विवाद बिना हार जीत के बंद हो गया है | अब आप बताइये टिप्पणी किसे दू | आपके इसी सडियल ब्लॉग पर ही ठीक हूँ |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteजैसे हम, वैसे हमारे सगे।
ReplyDeleteभाई रै, सुण लै, सांग आड़े ही होगा।
पता है, अपने स्कूल टाईम के किस्से भी ससुरे सर उठाने लगे हैं, जब से ये सीरिज़ शुरू हुई है। और ये 3.50 वाली तो वही है न, केजीआर? रैण दे डाक्की:)
अब ऐसे किस्से सुनाने को मिलेंगे तो ढंग के ब्लॉग पर कैसे जा पायेंगे :)
ReplyDeleteभाई रै, सुण लै, सांग आड़े ही होगा।
ReplyDelete"हुस्स सडियल" अरे भाई हम तो बेढंगे ब्लाग पर ही पढेंगे, सच्ची व ऊंट्पटांग बाते, देखे कौन भगावेगा,
ReplyDeleteजो बोला वो होगा "हुस्स सडियल"
साइकिल मे धक्का लगवाना दमदार आइडिया है, पर्यावरण के लिये अच्छा है।
ReplyDeleteमस्त पोस्ट है । 'सडियल' शब्द में बहुत प्यार छुपा लगता है।
ReplyDeleteमस्त पोस्ट है !!
ReplyDeleteअरे पता हे वो मास्टर कोन हे:) जिसे सडियल कह रहे हो?.... सच कहूं मुझे भी नही पता वो कोन हे...
ReplyDeleteजा रहे हैं ढंग के ब्लाग पर । आशीर्वाद।
ReplyDeleteऐसे ऐसे किरदार भी होते हैं...आपने हू-ब-हू सामने रख दिया है...
ReplyDeleteबहुत ही रोचक किस्से
raam raam ji...
ReplyDeletekunwar ji,
यहाँ फालतू नहीं बैठे .बहुत मजेदार किस्से सुन रहे हैं.:)
ReplyDeletebhai kavita kahani mein voh maza kahan jo yahan aap ki baaton mein hai ..
ReplyDeletezindagi ki tasveer hai yahan to..
namaste
ReplyDeleteबहुत ही रोचक किस्से
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,