05 June 2011

दरवाजे से हवा आता है, खिडकियों से खुशबू आती है

श्री राज भाटिया जी, आपने सही याद किया, यह वही स्टेशन और शमशान के पास वाला स्कूल है। हमने सुना था कि प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई भी इसी स्कूल में पढते थे। आपकी बचपन की किसी फोटो में क्या वो भी आपके साथ हैं। 

नये स्कूल का, नयी कक्षा का, नयी किताबों का और नये दोस्त बनाने का जितना चाव था, उतना ही चाव नये अध्यापकों को जानने और समझने का भी था। आज सभी की तो याद नही है, फिर भी एक-दो का जिक्र कर रहा हूँ। किसी भी अध्यापक का नाम नहीं बताऊंगा, माफ कीजियेगा।

विज्ञान के अध्यापक तो पढाते-पढाते ही सो जाते थे और उनके मुँह से लार टपकती थी। इसी कारण जब वो पढाने के लिये पुस्तक मांगते तो कोई भी छात्र उन्हें पुस्तक नहीं देना चाहता था। हमने उनका नाम रालू रख दिया। संस्कृत के अध्यापक का नाम रखा गया हाडल, उनके पतले शरीर के कारण और इतिहास के अध्यापक का नाम रखा गया थूकल, उनकी थूक बोलते-बोलते भी गिरती थी।

गूगल से साभार
हिन्दी के अध्यापक थे मूच्छल।  छोटे कद के, 50 के आसपास की उम्र, चेहरे पर तेज, चश्मा, गोरे-चिट्टे, एकदम फिटनेस शरीर, कुश्ती के खिलाडी, रोजाना व्यायाम भी करते होंगें शायद। छोटी ऊपर की तरफ मुडी हुई लेकिन भरी-भरी मूँछे थी उनकी। जिन्हें बन्द मुट्ठी से संवारते थे।  ये कक्षा में आते ही किसी छात्र को अपनी साईकिल पर रखे थैले को लाने के लिये भेजते। थैले में से टिफिन निकालते, उसको हमें दिखाते हुये खोलते, उसमें एक छोटी डिब्बी होती थी, उसमें से एक छोटी सी पॉलीथिन की थैली को निकालकर, टिफिन वापिस थैले के अन्दर और फिर थैला वापिस साईकिल पर भिजवा देते। उस थैली में कुछ 5-7 बादाम की गिरियां होती थी, उन्हें धीरे-धीरे कुतर-कुतर कर खाते हुये हमें पढाते थे। कक्षा के पहले ही दिन उन्होंने हमारी नौवीं कक्षा से क,ख,ग लिखने और सुनाने को कहा। लिख तो लिया एक-दो छात्र ने पर एक भी छात्र ठीक से उच्चारित नहीं कर पाया। उन्होंने उसी दिन उच्चारण की गलतियों के हिसाब से सभी छात्रों की चार पंक्तियां विभक्त कर दी। जिनके नाम रखे गये कच्ची कक्षा, पक्की कक्षा, पहली और दूसरी। तीन महिनों तक हमें उनकी कक्षा में इसी अनुसार बैठना पडा था। 

अब बताता हूँ गणित के अध्यापक के बारे में जिनके बारे में जानकर आप दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे। इनके बारे में मेरे दोस्तों ने बताया कि इन्हें कभी नमस्ते मत करना। कारण पूछने पर किसी ने कुछ नहीं बताया। (लेकिन मैं आपको बताऊंगा बादमें) इनकी शख्सियत कुछ रहस्यमयी सी थी। दूसरे अध्यापकों से बात कम ही करते थे, उनके आसपास खडे भी नहीं होते थे। कभी हँसते नहीं देखा, हमेशा कुछ बुदबुदाते हुये से, बहुत तेज कदमों से चलते थे।  उम्र लगभग 45 वर्ष, लम्बा कद, सुगठित मजबूत शरीर, काला रंग, एक आँख में कुछ डिफैक्ट, गंजा रहते थे।  एक लोहे का गोला (वजन 6.250 kgms शायद) जिसपर जंजीर लगी थी को घुमाकर फेंकते हुये इन्हें स्टेडियम में देखा था। कोई इस खेल का नाम बताये तो आभार होगा। कुछ-कुछ माईक टायसन या घटोत्कच जैसे, कई छोटे बच्चे तो इनसे डर जाते थे और कुछ बडे भी इनके सामने आने से कतराते थे। खुद कभी नहीं हँसते थे, लेकिन छात्रों और अन्य अध्यापकों को उनकी उपस्थिति और हरकतें खूब हँसाती थी। गणित के अध्यापक होने के बावजूद शेरों-शायरी करते थे। कक्षा में आते ही कहते थे-"दरवाजे बन्द कर दो, खिडकियां खोल दो"। दूसरे सभी अध्यापक खिडकियां बन्द करवा देते थे। क्योंकि खिडकियों के दूसरी तरफ महिला बी एड कॉलिज था। :) :) :) इनके आते ही कक्षा में एक बार तो हंसी की चीख-चिल्लाहट सी मच जाती थी। कहते थे दरवाजे से हवा आता है (जी हाँ आता है आती नहीं), खिडकियों से खूशबू आती है।

जैसे जर्मनी निवासी को जर्मन, मुम्बई निवासी को मुम्बईकर वैसे ही साँपला निवासियों को साँपलिया कहते हैं। लेकिन ये मास्टरजी हमें स्नेकला (Snakeला) कहते थे। गुणा को गुण्डा बोलते थे। हर साल अप्रैल में क्रीम या सफेद रंग के एक ही कपडे से एक पैंट, एक शर्ट और एक कुर्ता पाजामा बनवाते थे। जिस दिन नये सफेद जूते, नयी सफेद टोपी और एक घडी भी 20रुपये वाली डिजिटल नयी पहनकर आते थे, उस दिन स्कूल के करीबन सारे छात्र उनके पीछे-पीछे चलने की कोशिश करते थे। कोई-कोई तो उन्हें बताशे में मकोडा कहता था। शर्ट और कुर्ते पर बायीं तरफ लाल रंग के बालपैन से S लिखकर रखते थे। इसका मतलब कहते थे "शक्ति"। कई दिनों तक बिना धोये इन कपडों को पहनते रहते और जब मैले होकर सड जाते तो जूते-टोपी समेत सभी कपडों को लाल रंग से रंगवा देते। हा-हा-हा

पोस्ट लम्बी होती जा रही है, इन मास्टरजी के बारे में बहुत कुछ बाकी है, अगली पूरी पोस्ट इन्हीं के मजेदार और अनसुने किस्सों पर होगी। क्या हुआ जब मैनें इन मास्टर जी को पहली बार नमस्ते की???

11 comments:

  1. एक लोहे का गोला (वजन 6.250 grams शायद) - शायद grams की जगह kilo grams आये, अगर हाँ तो खेल का नाम है - डिस्कस थ्रो।

    प्यारे, मस्त यादें हैं। पिछली पोस्ट पर भी यही लिखा था शायद, लेकिन यही उपयुक्त लगता है। मजा आ रहा है, और तफ़सील से लिखो। इंतज़ार रहेगा।

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  2. क्या हाल है सांपलिया जी
    सुंदर यादे लिये हुए,
    रालू, थूकल , मूच्छल, मकोडा वाह नाम हो तो ऐसे
    आपकी कौन सी कच्ची लाईन या पक्की लाईन थी,
    चलो जी मकोडा जी के बारे में अगली कडी का इंतजार कर रहे है,

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  3. @कच्ची कक्षा, पक्की कक्षा, पहली और दूसरी।



    बहुत कुछ याद दिला दिया ......... जीव विज्ञान के तो सर थे ........ नाम रखा गया जीवाणु और कीटाणु ...

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  4. डिस्कस थ्रो कोनी रै भाया, हैमर थ्रो कहवें सै।

    इब बेरा पाट्या के कितने होशियार मास्टर पढाया करते तमने।

    राम राम

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    1. हाँ दादा, हैमर थ्रो ही।
      बेरा तो मन्ने था पन नूं चैक करूं था कि कोई गलती पकड़दा है अक नहीं :)

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  5. बहुत मजेदार यादें हैं .आगे मास्टर जी के बारे में जानने की उत्सुकता है.

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  6. यादो का पिटारा खुला है तो बात दूर तक जायेगी | कईयों के की बोर्ड यादो के साथ कुश्ती करेंगे | चलने दो ताऊ मजा आ रहा है कसम से ...|

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  7. शरारती स्टुडेंट कैसे होते हैं आज पता चला ...
    बेचारे मास्टर जी !
    :-)

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  8. क्‍यों भाई स्‍कूल था या अजायबघर? सारे ही अध्‍यापकों में विचित्रता! बढिया संस्‍मरण।

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