गूगल से साभार |
आज 01 अप्रैल है, नये बही खाते शुरु करने होते हैं। सुबह खरीदने गया तो पिछले वर्ष के मुकाबले उन्हीं फाइलों और किताबों के लिये तकरीबन 30% ज्यादा मूल्य चुकाना पडा। बिल मांगने पर पहले तो दुकानदार भडक गया कि पहले बताना चाहिये कि पक्का बिल लेना है। मैनें कहा मैं तो 5%टैक्स देने को तैयार हूँ, तो कहने लगा कि दो-दो बार टोटल करना पडा। सुबह-सुबह एक दुकानदार का यूं बिना कारण क्रोधित होना, मेरा भी मूड अजीब सा हो गया है। बन गया जी अप्रैल फूल।
सुबह-सुबह विद्यालय में बच्चों की फीस जमा कराने, नयी कक्षा की पुस्तकें लेने गया था। पहले बच्चे की फीस और बस किराया मासिक 1000 रुपये देने पडते थे, अब मासिक 1550 रुपये का भार आ गया है। ऊपर से सालाना (एनुअल) चार्ज 5000 (पहले 3000रुपये था) अलग से जमा करना पडा। बन गया जी अप्रैल फूल।
न्यूज दिखाई जा रही है कि खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में 9-10% की गिरावट आई है। खाद्य वस्तुयें सस्ती हो रही हैं। लेकिन ऑफिस में लंच के लिये टिफिन वालों ने 50रुपये को बढाकर 60रुपये प्रतिटिफिन कर दिया है। बन गया जी अप्रैल फूल।
पान की दुकान (जो पहले मैनें गुमटी लगाई थी उसे) मेरे नौकरी लगने के बाद छोटे भाई ने सम्भाल ली थी। करीबन पाँच साल पहले गुमटी हटा कर मैनें उसको दुकान खुलवा दी और थोडा कनफैक्शनरी टाईप का सामान भी रखवा दिया। शाम को ऑफिस से वापिस घर जाते वक्त अब भी पान-तम्बाकू आदि खरीदारी करके मैं ही लेकर जाता हूं, उसकी दुकान के लिये। कल पान खरीदते वक्त पान के जो भाव सुनें, एकबारगी लगा कि अब भाई का काम-धंधा बदलवा देना चाहिए। जिस भाव से रोजाना खरीद होती थी (हालांकि धीरे-धीरे महंगा तो हो रहा था) उससे दो-ढाई गुना भाव में खरीदी की। बन गया जी अप्रैल फूल।
दूसरे सामान वाले भी मुँह-मांगे रेट मांगने लगे हैं। कुल 40 रुपये का पैकिट 200 रुपये का बिकने लगा है। मैनें एक पोस्ट लिखी थी तम्बाकू पर बैन लगाने से क्या होगा। यहां थोक बाजार में वही होने लगा है, जिसका अंदेशा था। गुटखा-तम्बाकू की फैक्टरियां सील हैं और जमाखोर मुंहमांगी कीमत वसूल रहे हैं और चांदी कूट रहे हैं। अगर टैक्स ही इतना बढा दिया जाये तो कुछ तो सरकार के खजाने में जायेगा ही।
पान की दुकान तो ठीक है लेकिन तम्बाकू की? नहीं कभी नहीं।
ReplyDeletehamari sarkar hi
ReplyDeletepablic ko phool bana rahi hai ji
सदा सर्वदा फ़ूल भाई, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें चाहे कितना दे दो उनकी भरपाई नहीं होती। सरकार का खजाना भी ऐसा ही है। पिछले शनिवार भांजे को बंगलौर जाना था. उसकी टिकट देखी - किराया था तेरह सौ कुछ रुपये और टैक्स था उनतालीस सौ कुछ रुपये।
ReplyDeleteजय हो!
:) सदाबहार फूल हैं हम :)
ReplyDeleteआप ,आजके बारे में कह रहे है हम तो रोजाना ही अप्रेल फूल बने हुए है | गुटखे की नयी पैकिंग (पेपर में ) आ गयी है | उस पर मूल्य छपा हुआ है एक रूपया लेकिन ग्राहक चुका रहा चार रूपये ! पूछने पर पता चल रहा है की पेपर पैकिंग मशीन की गति कम होती है इसलिए सप्लाई में कमि है | लेकिन कोइ सुनने वाला नहीं है | इसे कहते है पोपा बाई का राज
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने....
ReplyDeleteअप्रैल फूल पर बेहतरीन एवं संजीदा आलेख ।
ReplyDeleteबधाई ।
रोज़ ही आम आदमी बन रहा है अप्रैल फूल..सटीक पोस्ट मित्र
ReplyDeleteहर दिन एक अप्रैल है।
ReplyDeletesahi kaha aapne hum to roz hi fool banta hai
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