02 April 2010

वह किताब, वह शास्त्र, वह संदेश सही होना चाहिये

मन की यह स्वाभाविक आकांक्षा होती है कि जो मैं मानता हूं, वही दूसरा भी मान ले। यह आकांक्षा क्यों होती है? यह आकांक्षा इसलिये होती है कि मुझे खुद भी भरोसा नहीं है, जो मैं मानता हूं उस पर। जब मैं दूसरे को भी राजी कर लेता हूं, तो थोडा भरोसा आता है। जब भीड बढने लगती है और मेरे साथ बहुत लोग राजी होने लगते हैं, तो मैं समझता हूं कि जो मैं कह रहा हूं, वह सत्य है। अन्यथा इतने लोग कैसे मानते! मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि भीतरी इनफीरिआरिटी, भीतरी हीनता है; भीतर पक्का भरोसा नहीं है। दूसरे को राजी करवा कर अपने पर भरोसा आता है। दूसरा जब बदल जाए, तो खुद पर भरोसा आता है कि ठीक है, हम जो मानते हैं, वह ठीक है। वह किताब, वह शास्त्र, वह संदेश सही होना चाहिये, नहीं तो इतने आदमी कैसे राजी हो जाते।
इसलिये जब हमसे कोई राजी नही होता, तो हमें अपने भीतर खोखलापन दिखायी पडता है कि किसी को मैं सहमत नहीं करवा पा रहा हूं। तब हमारी जडें हिलने लगती हैं, हमारा भरोसा टूटने लगता है।
हिंदु धर्म नान-कनवर्टिंग रिलीजन है। हिंदू धर्म किसी को रूपांतरित नहीं करना चाहता। किसी को बदलने की आकांक्षा नहीं है। हिंदू धर्म ने अपने इतिहास में दूसरे को रूपांतरित करने की अपने धर्म में, कभी कोई चेष्टा नहीं की। क्योंकि हिंदू मानता है, किसी को क्या बदलना! क्योंकि बदलना एक तरह का आक्रमण है, हिंसा है। क्यों मैं चोट करूं किसी के ऊपर कि तुम गलत हो! अगर मेरे जीवन की सुगंध किसी को बदल दे, तो काफी है। अगर मेरा जीवन तुम्हें बदल दे, तो ठीक है।
यह पंक्तियां गीता-दर्शन (भाग पांच)  से साभार ली गई है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो क्षमायाचना सहित हटा दी जायेंगी। 
 मैं ही सही क्योंकि तू गलत है
सब बना बनाया खेल मिट जाये
थोडा तो चल रे आलसी
मैं आचरण से धोखा देता हूं

6 comments:

  1. हिन्दू जीवन दर्शन की सहिष्णुता बेमिसाल है

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  2. आपके लेख और टिप्‍पणीकारो के मत से सहमत हूँ, हिन्‍दुत्‍व विचारधारा विश्व मे क‍हीं नही है।

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  3. किसी को जबरदस्ती मनवाना प्रवंचना मात्र है, जो प्रभावित होकर निस्वार्थ भाव से मान ले वही सही मानना है।

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  4. पर अच्छी चीजों की रक्षा करना तो अच्छा ही है ।

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  5. बहुत सुंदर बात कही आप ने, बहुत ही गुढ भी..... धन्यवाद

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  6. मजे की बात है किसी को मनवाने चलो तो कोई मानता नहीं। और छोड़ दो तो पीछे आने लगते हैं लोग।
    यह कई क्षेत्रों में दीखता है।
    हां, मनवाने का अल जुल्फिकार का तरीका निहयत वाहियात है। जोर जबरजस्ती से भेड़ बकरियों की तरह संख्या बढ़ती है, प्रभाव नहीं।

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