हाँ चिलम पी है कभी........?
मैनें पी है!!!
हरिद्वार में हर की पौड़ी से आगे सुभाष घाट है, उससे भी आगे बिरला घाट, उससे आगे अन्य कोई घाट और शमशान जहां अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीँ बिरला घाट के बायीं तरफ खुले मैदान में बहुत से पेड़,... कुछ साधुओं के तम्बू/कुटिया और कुछ चाय पानी की दुकानें हैं।
कुटिया के आगे राख लिपटे नग्न शरीर, धूनी रमाये साधु गोल घेरे में बैठे हैं। मैं उनके पास गया, जोर से "आदेश" का नारा लगाया तो दूर से ही लाल-लाल आंखें निकाल कर, हाथ हिलाकर फटकार दिये.........ए परे- परे.....दूर हट......चल भाग...कहां चला रहा है.......हट परे, बाबा से दूर रह ......
मैनें चाय वाले को आवाज दी सबके लिये डबल चीनी डाल कर चाय दो, हां सभी बाबा लोगों को.......1-2-3-4-5- और मैं,,... हां 6 चाय ./...मीठा ढंग से डालना......बाबा का टेस्ट तो पता ही होगा तुझे
इतना कहते ही एक बाबा ने हाथ से इशारा किया मुझे .......आजा यहां बैठ जा.. अरे ना जमीन में मत बैठ ...यहां कम्बल पर और मेरी जगह बन गई साधुओं के पास बैठने की......
चिलम चल रही थी.......अच्छा, चिलम पीने के भी कायदे हैं....... सबका बारी-बारी से नम्बर चलता है, कोई दो कश एक साथ नहीं लगा सकता....यानि एक बार हाथ में आने पर केवल एक कश लगायेगा..........कश लगाने से पहले कितनी भी देर पकडे रह सकता है और कश लगाने पर अपने बायें बैठे हुये को चिलम दी जाती है......तो भाई चिलम आ गई मेरे सामने भी..........य्य्येय्ये सुट्टा मारा दम लगा के.......और ढेर सारा धुंआ गले से होता हुआ....फेफडे...पेट और अंतडियों से होता हुआ पेट में घूमा....... फिर धीरे-धीरे नाक और मुंह से बाहर ..........थोडी खांसी भी उठी....थोडी दबा गया ........बाबा देखने लगे सब......
तबतक चाय आ गई ...........मैं अपना चाय का कप लेकर थोडा पीछे हट गया.....दुबारा की हिम्मत नहीं हुई......चिलम सामने आने तक और पीछे हट गया........यानि पंक्ति से बाहर.......मेरा काम जिसलिये इनके पास आया था वो हो चुका था...........चाय पी........आदेश और जय भोलेनाथ, जय गंगा मैया बोलकर निकल गया वहां से...........अपनी ही मस्तिष्क की आन्नददायी लहरों पर झूमता रहा शाम तक..
मैनें पी है!!!
हरिद्वार में हर की पौड़ी से आगे सुभाष घाट है, उससे भी आगे बिरला घाट, उससे आगे अन्य कोई घाट और शमशान जहां अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीँ बिरला घाट के बायीं तरफ खुले मैदान में बहुत से पेड़,... कुछ साधुओं के तम्बू/कुटिया और कुछ चाय पानी की दुकानें हैं।
कुटिया के आगे राख लिपटे नग्न शरीर, धूनी रमाये साधु गोल घेरे में बैठे हैं। मैं उनके पास गया, जोर से "आदेश" का नारा लगाया तो दूर से ही लाल-लाल आंखें निकाल कर, हाथ हिलाकर फटकार दिये.........ए परे- परे.....दूर हट......चल भाग...कहां चला रहा है.......हट परे, बाबा से दूर रह ......
मैनें चाय वाले को आवाज दी सबके लिये डबल चीनी डाल कर चाय दो, हां सभी बाबा लोगों को.......1-2-3-4-5- और मैं,,... हां 6 चाय ./...मीठा ढंग से डालना......बाबा का टेस्ट तो पता ही होगा तुझे
इतना कहते ही एक बाबा ने हाथ से इशारा किया मुझे .......आजा यहां बैठ जा.. अरे ना जमीन में मत बैठ ...यहां कम्बल पर और मेरी जगह बन गई साधुओं के पास बैठने की......
चिलम चल रही थी.......अच्छा, चिलम पीने के भी कायदे हैं....... सबका बारी-बारी से नम्बर चलता है, कोई दो कश एक साथ नहीं लगा सकता....यानि एक बार हाथ में आने पर केवल एक कश लगायेगा..........कश लगाने से पहले कितनी भी देर पकडे रह सकता है और कश लगाने पर अपने बायें बैठे हुये को चिलम दी जाती है......तो भाई चिलम आ गई मेरे सामने भी..........य्य्येय्ये सुट्टा मारा दम लगा के.......और ढेर सारा धुंआ गले से होता हुआ....फेफडे...पेट और अंतडियों से होता हुआ पेट में घूमा....... फिर धीरे-धीरे नाक और मुंह से बाहर ..........थोडी खांसी भी उठी....थोडी दबा गया ........बाबा देखने लगे सब......
तबतक चाय आ गई ...........मैं अपना चाय का कप लेकर थोडा पीछे हट गया.....दुबारा की हिम्मत नहीं हुई......चिलम सामने आने तक और पीछे हट गया........यानि पंक्ति से बाहर.......मेरा काम जिसलिये इनके पास आया था वो हो चुका था...........चाय पी........आदेश और जय भोलेनाथ, जय गंगा मैया बोलकर निकल गया वहां से...........अपनी ही मस्तिष्क की आन्नददायी लहरों पर झूमता रहा शाम तक..