पानी की बोतल 100 रुपये की, बिस्कुट के पैकेट 50 रुपये का बेचा जा रहा है। ना बेचें तो क्या करें वहां के बाशिंदे। उनका भी घर-बार उजडा है। इसी यात्रा के 2-3 महिनों में थोडा-बहुत कमा कर वो साल भर अपना और अपने बच्चों का पेट पालते हैं। वहां तक सामान और पानी ढोकर ले जाना कोई आसान कार्य नहीं है। हम लोग जाते हैं तो अपना कच्छा भी भारी लगने लगता है, चढते-चढते। हम ये क्यों नहीं सोचते कि पैसा खर्च करके कम से कम पानी-बिस्कुट मिल तो रहा है, वर्ना ये लोग इस लालच में वहां पानी लेकर ना जायें तो प्यास से भी तो मरोगे। वो लोग ना बेचें तो इनके बच्चे मरेंगे, घर-दुकान तो पहले ही डूब चुके हैं। घोर विपत्तियां जब आती हैं तो आदमी में स्वार्थपन की भावना प्रबल हो जाती है।
@भारत के कितने ही मन्दिरों, धर्मगुरुओं और मठों के पास बेहिसाब सम्पत्ति, टनों सोना और लाखों करोडों पैसा है। लेकिन किसी मठ, मन्दिर ट्रस्ट या धर्मगुरु ने केदारनाथ में आई आपदा के लिये सहायता उपलब्ध करवाई है या मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये चंदा देने की घोषणा की है???
ReplyDeleteबड़ा ही कठोर व्यंग्य....
एक दम सत्य बात!
आप सहमत हैं,
Deleteअच्छा लगा
देश के पास धन की कमी कहाँ है, न तन्त्र के पास, न मन्त्र के पास...बस मन ही नहीं होता है...
ReplyDeleteकिसी की जिन्दगी अंधेरों में डूब जाये तो क्या,
Deleteवो चाहते हैं कि सूरज मेरे घर में ही रहे
आपकी पोस्ट को कल के ब्लॉग बुलेटिन श्रद्धांजलि ....ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteजिसके पास होता है वो देना नही चाहता और जो देना चाहता है उसके पास होता नही. दुनियां कुछ इसी तरह चल रही है.
ReplyDeleteरामराम.
देना नहीं चाहते, इसीलिये तो उनके पास है ताऊजी
Deleteउत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार, स्नेह बनाये रखियेगा
Deleteसिनेमा जगत और क्रिकेट जगत में भी अरबो रूपये है पर अभी तक .... केदारनाथ में आई आपदा के लिये किसी ने सहायता के लिए कोई कदम नहीं बढाया है !
ReplyDeleteजहां आम जनता तक अपनी एक-दो दिन की आय डोनेट कर रही है, वहां बडे-बडे नजरें चुरा रहे हैं, संजय भाई
Deleteकड़वी लेकिन सच पात कही है ...
ReplyDeleteसभी बाते संवेदनहीनता से उपजी हैं ... सभी बल्कि पूरा देश ही संवेदनहीन हो रहा है ...