कुछ लोग खुद को सही, श्रेष्ठ, बेहतर साबित करने के लिये बजाय अपनी उपलब्धि बताने के ; दूसरे को गलत, निकृष्ट, कमतर साबित करने में अपनी सारी शक्ति और ऊर्जा लगा देते हैं।
प्रत्येक को ऐसी प्रतीति हो सकती है कि जिस मार्ग पर मैं जा रहा हूं, वह सही है। इस प्रतीति में कोई भूल भी नहीं है। लेकिन जैसे ही यह भ्रांति भी हो जाती है कि जिस मार्ग से मैं जा रहा हूं, वही सही है, वैसे ही झगडा शुरू हो जाता है। शायद इतने से भी उपद्रव न हो, अगर मैं यह जानूं कि यह मार्ग मेरे लिये सही है। लेकिन अहंकार यहीं तक रुकता नहीं। अहंकार एक निष्कर्ष अनजाने ले लेता है कि जो मेरे लिए सही है, वही सबके लिए भी सही है।
प्रत्येक को ऐसी प्रतीति हो सकती है कि जिस मार्ग पर मैं जा रहा हूं, वह सही है। इस प्रतीति में कोई भूल भी नहीं है। लेकिन जैसे ही यह भ्रांति भी हो जाती है कि जिस मार्ग से मैं जा रहा हूं, वही सही है, वैसे ही झगडा शुरू हो जाता है। शायद इतने से भी उपद्रव न हो, अगर मैं यह जानूं कि यह मार्ग मेरे लिये सही है। लेकिन अहंकार यहीं तक रुकता नहीं। अहंकार एक निष्कर्ष अनजाने ले लेता है कि जो मेरे लिए सही है, वही सबके लिए भी सही है।
धर्मों के नाम से जो उपद्रव है, वह धर्मों का नहीं, अहंकारों का उपद्रव है। मेरा अहंकार यह मानने को राजी नहीं होता कि कोई और ढंग भी सही हो सकता है। यही मानने को तैयार नहीं होता कि मेरे अतिरिक्त कोई और भी सही हो सकता है। तो मेरा ही रास्ता होगा सही, मेरी उपासना पद्धति होगी सही, मेरा शास्त्र होगा सही। लेकिन मेरा यह सही होना तभी मुझे रस देगा, जब मैं सब दूसरों को गलत साबित कर डालूं।
और ध्यान रहे, जो दूसरों को गलत करने में लग जाता है, उसकी शक्ति और ऊर्जा उस मार्ग पर तो चल नही पाती, जिसे उसने सही कहा है; उसकी शक्ति और ऊर्जा उनको गलत करने में लग जाती है, जिन पर उसे चलना ही नहीं है।
कुछ पंक्तियां गीता-दर्शन (भाग चार) अध्याय आठ से साभार ली गई है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेंगी।
"ध्यान रहे, जो दूसरों को गलत करने में लग जाता है, उसकी शक्ति और ऊर्जा उस मार्ग पर तो चल नही पाती, जिसे उसने सही कहा है; उसकी शक्ति और ऊर्जा उनको गलत करने में लग जाती है, जिन पर उसे चलना ही नहीं है।"
ReplyDeleteएकदम सही बात कही है आपने!
एक सार्थक सन्देश देता हुआ पोस्ट!
मुझे लगता है कि ये के स्वाभाविक इंसानी फ़ितरत है और हम सब जाने अनजाने ये कभी न कभी तो कर ही बैठते हैं , मगर इसे आदत बना लेना निश्चित ही अहितकर है और शायद मूढता भी । सुंदर संदेश दिया आपने
ReplyDeleteअजय कुमार झा
आपकी बातों से असहमत होने का कोई मतलब ही नहीं। पूरी तरह से सही बात कही आपने।
ReplyDelete--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
अगर इतनी सी बात मूर्ख इंसान की समझ में आ जाए तो फिर झगडा ही किस बात का रहेगा ? उम्दा लेख !
ReplyDeleteकोई भी मार्ग हर देश, काल और परिस्थिति में सही नहीं हो सकता .. इसमें कुछ न कुछ खामियां आने से यह धनात्मकता और ऋणात्मकता का संगम हो जाता है .. सब मार्गों के गुणों और दोषों के विश्लेषण से हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए .. पर इसमें भयंकर टकराव के बाद हमें एक सर्वमान्य मार्ग का निर्माण अवश्य करना चाहिए !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार है, ओर यह बात हम सब जाने अन्जाने मै कर ही बेठते है, लेकिन जहां भी हमे लगे की हम भुल कर रहे है... हमे समभंल जाना चाहिये,वरना ऎसे लोग सारी दुनिया से अलग हो जाते है, ओर बस अपना ही नुकसान करते है.... मिलते है ऎसे बहुत से लोग... तभी तो हम एक दुसरे से सलाह करते है कि कही हम अंहाकरी ना बन जाये,एक दुसरे के विचारो का आदान प्रदान करते है, आप के लेख से सहमत है जी
ReplyDeleteइंसान का इंसान से हो भाईचारा,
ReplyDeleteयही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा...
जय हिंद...
बिल्कुल सत्य और सुंदर बात कही आपने.
ReplyDeleteरामराम.
baat to sahi hai....log swayam ko bhala batane ke chhakkar men...khud ko unchha uthhane kii bajay doosron ke pair khinchne men lag jate hain.........
ReplyDeleteआपने अपनी पोस्ट के माध्यम से कितना सही और सुन्दर सन्देश दिया है बस अगर इन्सान इतनी छोटी सी बात समझ ले तो दुनिया के सभी झगडे स्माप्त हो जायें शुभकामनायें
ReplyDeleteअति उत्तम विचारो को कितनी सरलता से व्यक्त किया है आपने. अभिनन्दन.
ReplyDeleteव्यक्ति का अहम् ego) ही सब उपद्रवो का मूल है उसे उखाड़ फेकना आसान होता तो आज समाज मे हिंसा, होड़ और हैवानियत अपने चरमसीमा पर नहीं पहुँच पाते.
पता नहीं, हिन्दू धर्म - या कम से कम मेरा हिन्दू धर्म तो बहुत उदात्त है। वह किसी को नीचा दिखाने में नहीं लगता।
ReplyDeleteहिन्दू धर्म के नाम पर संकुचित सोच रखने वालों की मैं नहीं कह रहा।