इस पत्थर पर
बहुत आये बैठे
और चले गए
किसने सुबह
मुड़कर देखा
किसने सोचा
पत्थर भी पिघल
सकता है
पत्थर बेशक पत्थर है
पर पिघलता है
अंदर ही अंदर
दिखाई नहीं देता सबको
महसूस कर सकते हैं
वही जिसने इसे
बाहर से नहीं
अंतर से छुआ
इन्तजार कर रहा है
पत्थर भी
फिर से पत्थर होकर
पिघलने का
सदियां लगेंगी
पर जुड़ेगा एकदिन
और पिघलेगा
जब कल रात जैसे
कोई थोड़ी देर
आकर बैठेगा
आप जैसा