तेरह साल का फत्तू चौधरी साईकिल चलाना सीखै था।
बार-बार साईकिल पर चड्ढन की कोशिश करता और गिर जाता।
एक बार जब वो गिरा तो एक ताऊ उडे तै गुजरै था।
ताऊ बोल्या - कोये बात ना बेटा, उठ जा-उठ जा, किस्से ने भी कोन्या देखा
फत्तू बोल्या - ताऊ, तन्नै देखकै के पूंझड पाड ली (पूंछ खींच ली)
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एक बर रलदू अपने दोस्त फत्तू के साथ ससुराल गया
फत्तू ने शर्म के मारे पेट भर कै खाना नही खाया
रात में उसकी आंख खुलगी
उसने रलदू को जगाया, और बोला दोस्त मन्नै भूख लाग री सै
रलदू - जा रसोई में देख कुछ ना कुछ रखा होगा, चुपचाप रसोई में जाकर खा ले
फत्तू - अगर कोये उठ गया तो बेइज्जती हो ज्यागी
रलदू - अगर कोये उठ जा तो तू भौं-भौं कर दिये, सब नूं समझैंगें के कुत्ता होगा
फत्तू रसोई में खाना ढूंढन लाग्या
अंधेरे में उसका हाथ लाग कै एक राछ (बर्तन) गिर गया
आवाज सुनकै रलदू की सासू की आंख खुलगी
सासू - कौन सै रसोई के भीतर
इब फत्तू डर के मारे भौं-भौं करना भूल गया और कुत्ते की बात याद रही
फत्तू जोर से बोल्या - पाड लूंगा (काट लूंगा)