31 July 2015

उसी बैंच पर बैठेंगे.....थोडी देर....बोलो ना...???

तबसे 8 साल और आज से 16 साल पहले तुमने मुझे छात्रा मार्ग पर आने के लिये कहा था। तुम्हारा एग्जाम था उसदिन फर्स्ट इयर का। पहली बार तुमसे मिलने, देखने की चाह तो बहुत थी। लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया था कि नहीं आ सकता। दो कारण थे, पहला मेरी जेब बहुत हल्की थी। नई नई जॉब थी और सेलरी जितनी थी, जो थी, वो मां के हाथ पर रखता था; तो मेरी जेब हमेशा ही खाली सी रहती थी। दूसरा कारण था मेरा हुलिया, ड्रेसिंग सेंस तो अब नहीं है पर उसदिन लगा कि पहली डेट पर जाना है तो क्या इम्प्रेशन पडेगा? 

और आज 8 साल और बीत चुके हैं, जब तुमने दोबारा मिलने के लिये बुलाया था। इस बार तो हम दोनों की शादी भी हो चुकी थी, पर एक बार मिलने की तमन्ना दोनों ओर थी। पीतमपुरा मैट्रो पर जब पहली बार तुम्हें देखा, पता नहीं क्यों पहचानने की जरुरत ही नहीं थी। तुम्हें दूर से देखकर ही मेरी बाहें अपने आप फैलती चली गई और तुमने भी ना जाने कैसे जाना कि तुम्हें इन बाहों में ही सिमटना है एक पल के लिये ही सही.......... 
:-)
याद है वो वाक्या कितना मजा आया था तुम्हें और मैं कितना डर गया था, जब जापानी पार्क में हम उस आखिरी बैंच पर बैठे थे, जिसके पीछे ही तीन जोडे स्कूल-कॉलेज में पढने वाले, थोडी थोडी दूर पर पेडों की ओट लिये दुनिया को भूले एक दूसरे से लिपटे, बेसुध से पडे थे। तभी पता नहीं कहां से 3-4 पुलिस वाले निकल आये थे, शायद पीछे की दीवार फांद कर आये होंगे और तीनों कपल से उनके नाम-पते और घरवालों को बुलाने की बातें करते करते हमारी तरफ आ गये। 

मेरी धडकन तो तुम्हारे पहलू में बैठने से ही बढी पडी थी, पुलिस वालों को देखकर लगा कि रुक ही जायेगी। मुझसे भी सवाल जवाब होंगे और घरवालों को सूचित किया जायेगा। पर शुक्र है परमात्मा का वो सब हमारे करीब से निकल गये थे। पता है क्यों, मेरी-तुम्हारी उम्र, तुम्हारी मांग का सिन्दूर और बिंदी, हमारा घास की बजाय बैंच पर होना और वो लोग पीछे से आये थे तो हमारी हरकतों पर उनकी नजर नहीं पडी।
क्यों ना एक बार फिर से चलें?.... वहीं जापानी पार्क में.......... उसी बैंच पर बैठेंगे.................थोडी देर...........बोलो ना..............???