08 April 2011

"इस देश का कुछ नहीं हो सकता" इस पंक्ति के कहने वालों की वजह से ही कुछ नहीं हो रहा है।

बृजकिशोर (मेरे सहकर्मी) ने कहा  "अन्ना हजारे के आन्दोलन पर कुछ लिखो"।  मैनें कहा कि - लिखना तो चाहता हूँ पर मैं कोई पत्रकार नहीं हूँ और मेरे मन में आये विचारों को शब्दों में लिखना मुझे बहुत मुश्किल कार्य लगता है।  ऐसा करो आप ही मुझे थोडा मैटर बताओ, मैं आपके नाम से लिख देता हूँ। उन्होंने मुझे एक-दो ही पंक्ति बताई कि - "जहां एक आम आदमी पूरी उम्र में अपना घर नहीं बना पाता वहीं नेता लोग पाँच वर्ष में ही कुबेर बन जाते हैं और सरकार और अफसर देश को लूट रहे हैं, हम अन्ना हजारे के आंदोलन में उनके साथ हैं।" मैनें कहा - "ये तो आपने कोई नई बात नहीं बताई, ये तो सब जानते हैं और कहते हैं। कुछ ठोस विचार दीजिये।" लेकिन कार्यालय में कुछ कार्य आ जाने से उनसे आगे चर्चा नहीं हो पाई।   

बृजकिशोर जी ना तो ब्लॉगर हैं और ना ही ब्लॉग्स पढते हैं, लेकिन वे मेरे ब्लॉग पठन और लेखन के बारे में जानते हैं, इसलिये उन्होंने ऐसा कहा। बृजकिशोर जी अखबारों और न्यूज चैनल्स पर निर्भर रहते हैं और इनपर पूरी श्रद्धा और विश्वास के सहारे ही किसी विषय पर अपने विचार प्रकट करते हैं।  मैनें उनसे कहा कि आओ जंतर-मंतर चलते हैं। हमें भी आंदोलन में शरीक होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैं तो वहां गया था।

ट्रेन में दीपक से कहा कि मैं जंतर-मंतर जा रहा हूँ, आओ अगर तुम चलना चाहते हो तो। दीपक ने कहा कि वहां क्या हो रहा है? उसे अन्ना जी के आंदोलन के बारे में बताया-समझाया। दूसरे सहयात्रियों ने बहस शुरु कर दी। वहां जाने से क्या होगा। अन्ना जी की शर्तें मान ली जायेंगी, बिल पास हो जायेगा, लोकपाल और लोकायुक्त बन जायेंगे उसके बाद??? क्या गारंटी है कि तब भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी बंद हो जायेगी। क्या इन पदों पर बैठे  सभी लोग अन्ना हजारे होंगे??? जब संसद से अफसरशाही और सीबीआई से लेकर हाई कोर्ट और सु्प्रीम कोर्ट के न्यायाधीश तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो इस समिति में  पदासीन अधिकारियों पर कैसे भरोसा रखा जा सकता है?  एक आदमी ने यह कहा कि आज तुम वहां जाकर खडे हो जाओगे, लेकिन कल फिर अपने बेटे को नौकरी दिलवाने के लिये घूस खिलाओगे। इस देश का कुछ नहीं हो सकता।

यही एक पंक्ति "इस देश का कुछ नहीं हो सकता" कहने वालों की वजह से इस देश का कुछ नहीं हो पा रहा है। ऐसा कहने वाले ना खुद कुछ करते हैं और दूसरों को भी हतोत्साहित करते हैं। 
यहां ट्रेन में बैठकर नेताओं और सरकार को गाली देने वाले लोग केवल सफर काटने के लिये ऐसा करते हैं। जब कोई उनके लिये आवाज उठाता है तो उसके साथ खडा होना तो दूर उसपर ही सवाल उठाने लगते हैं।

मैं तो अन्ना हजारे के इस आंदोलन में उनके साथ हूँ और भरसक कोशिश कर रहा हूँ कि जन-जन को उनके आंदोलन से जुडने के लिये प्रेरित करूं। अन्ना हजारे जी का अभियान तो सफल होने ही वाला है, लेकिन हमें खुद भी ईमानदार बनना होगा। हमें भी रिश्वत देकर अपना कार्य करवाने और कर चोरी से बचना होगा।  हम नेताओं को गालियां देने वाले लोग कर चुकाने में क्या पूर्णत: ईमानदार हैं? बृजकिशोर जी हमेशा सरकार को गरियाते रहते हैं पानी, सीवर, बिजली आदि मूलभूत सुविधाओं के लिये। मैं उनसे पूछता हूँ कि जब आपने 25लाख रुपये का मकान खरीदा तो सरकारी कागजों में उसकी कीमत 2लाख क्यों दिखाई थी? क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। क्यों लोग बिना बिल लिये खरीदारी करते हैं। आयकर के मामले में तो लगभग 90% लोग चोर हैं।

कौन लोग अन्ना हजारे के साथ नहीं हैं :
1> व्यापारी जो कर चोरी करते हैं। (हालांकि सिस्टम को ये भी गरियाते हैं)
2> जिन्होंने रिश्वत देकर सरकारी नौकरी पाई है।
3> जबरद्स्त नकारात्मक विचारों से भरे हुये लोग।
4> जिन्हें अब भी अन्ना हजारे के आंदोलन के बारे में नहीं पता।
………आगे आप जोड दें 

04 April 2011

रिमिक्स रामायण (बालकाण्ड)

इस पोस्ट से अगर किसी की भावनाओं को आघात पहुँचता है तो पोस्ट क्षमायाचना सहित हटा दी जायेगी। अगर आपने तारीफ में टिप्पणियां कर दी तो आगे पूरी रामायण इसी प्रकार गीतमाला रिमिक्स करके सुनाई जायेगी। कृप्या सोच-समझ कर टिप्पणी करें।

चित्र गूगल से
अयोध्या के राजा दशरथ के घर में एक साथ चार-चार खुशियां आई हैं। एक साथ चार-चार पुत्ररत्नों की प्राप्ति से राजा फूला नहीं समा रहा है। राजा अपने पुत्र राम को गोद में उठाकर गाता है -



तुझे सूरज कहूं या चंदा, तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा
मैं कब से तरस रहा था, मेरे आंगन में कोई खेले
नन्हीं सी हंसी के बदले, मेरी सारी दुनिया ले ले
तेरे संग झूल रहा है, मेरी बांहों में जग सारा
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा

थोडा बडा होने पर राम और लक्ष्मण को अस्त्र-शस्त्र विद्या और शिक्षा आदि के लिये गुरुकुल भेजने की तैयारी होती है। भरत और शत्रुघ्न दो बच्चे अपनी नानी के यहां रहकर अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने जाते हैं। राजा दशरथ राम को अपने से दूर करना नहीं चाहते, लेकिन शिक्षा तो जरुरी है और उस समय में घर से दूर गुरुकुल में रहकर ही अध्ययन करना होता था। राजा दशरथ का उदास दिल फिर से गा उठता है -
कल तू चला जायेगा तो मैं क्या करूंगा
तू याद बहुत आयेगा तो मैं क्या करूंगा
छोड जायेगा यहां तू कई कहानियां
उम्र भर रुलायेंगी ये तेरी नादानियां

राम-लक्ष्मण की शिक्षा वन में स्थित गुरुजी के आश्रम में होती हैं। वहां राम-लक्ष्मण गुरुजी और साधुओं को तंग करने वाले आतताईयों को मारकर, खदेडकर अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हैं। कई वर्षों के विद्याध्ययन के पश्चात गुरुजी उन्हें वापिस उनके महल में छोडने जाते हैं तो रास्ते में एक नगर मिथिला (जनकपुर) में रुकना होता है। वहां एक बाग में घूमते हुये राम और जनकपुर की राजकुमारी सीता की नजरें आपस में मिलती हैं। दोनों एक-दूसरे के आकर्षण में खो जाते हैं। 
तुझे देखा तो ये जाना सनम, प्यार होता है दीवाना सनम
अब यहां से कहां जाये हम, तेरी बाहों में मर जायें हम

राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिये स्वयंवर  समारोह का आयोजन किया है। गुरुजी भी समारोह में आमंत्रित हैं और इसी स्वयंवर के लिये राम को यहां लाये हैं। राम को सीता से मिलाना ही प्रारब्ध का उद्देश्य है। स्वयंवर की शर्त ऐसी है कि राम ही पूरी कर सकते हैं। सीता और राम का विवाह धूमधाम से हो जाता है। 

क्रमश:

02 April 2011

चच्चा पिटलिए कौन हैं, बताईये जरा

चच्चा पिटलिए यानि Pity (करुणा) का Pit (खान) लिए हुये। इनके पास प्रेम और करुणा का भंडार है, जिसे दोनों हाथों से लुटाते हैं। पृथ्वी के हर प्राणी मात्र के लिये प्यार और हमदर्दी लिए हुए हैं, इसलिये इनका नाम चच्चा पिटलिए है। इनसे कुछ सीखने और आशिर्वाद की ललक में यह पोस्ट चच्चा पिटलिए को समर्पित है।

कुछ समय पहले तक मेरे ब्लॉग पर फॉलोवर का विजेट नहीं था। ऐसा नहीं था कि मुझे लगाना नहीं आता था, बल्कि इसलिये कि मैं समझता था मुझे कोई क्यों फॉलो करेगा, कौन मुझे फॉलो करेगा। इस चिट्ठे पर बार-बार कौन बोर होने, समय बर्बाद करने या बकवास पढने आयेगा। मैनें तो चिट्ठा इसलिये बनाया था कि इसके बिना कुछ ब्लॉगर्स की पोस्ट पर टिप्पणी  करना असंभव सा लगता था। खैर एकदिन एक शख्सियत से फोन पर किसी विषय पर बातचीत हो रही थी कि उन्होंने कहा कि तुम्हारे ब्लॉग को मैं फॉलो करता हूँ और तुम्हारे ब्लॉग के फॉलोवर की लिस्ट में मेरा नाम दिखना भी चाहिये। अब एक ऐसा शख्स जिनके लिखे हरेक शब्द को मैं हमेशा दिल से निकला हुआ मानता हूँ, उनकी बात को गोल करना असंभव था। हालांकि उन्होंनें सलाह ही दी थी फिर भी वे आज्ञात्मक लहजे में  कहते तो बहुत ज्यादा अच्छा महसूस होता। तुरन्त फॉलोवर का विजेट लगा दिया गया। देखा तो 4-5 लोग फॉलो कर रहे थे, बहुत पहले से ही। खुशी भी हुई और अजीब भी लगा। 
आज 46 फॉलोवर हैं और इसका श्रेय जाता है उस शख्स को जिसके बारे में दीपक बाबा जी ने बकबक की है कि "….…जी ने हमारी बक बक को खंगाला ...... और सर्टिफिकट दे दिया ......... बाबा आश्रम बहुत अच्छा चलेगा...... और हम निहाल हो गए..... और मैं ये सर्टिफिकट देना चाहता हूँ की जिस ब्लॉग को लाइमलाईट में लाना हो ...... उनके हाथों में ऐसा जादू है जिस ब्लॉग पर फ्लोवेर्स बनते है .. उस ब्लॉग के भाग खुल जाते है."

एक ऐसा शख्स जो हर किसी से ऐसे मिलता है जैसे कोई अपने बिछडे भाई को गले लगाता है। एक ऐसा शख्स जो हर किसी की हर प्रकार से मदद करने के लिये पंक्ति में सबसे आगे खडा मिलता है। एक ऐसा शख्स जो हर भूले-भटके को समझा-बुझा कर वापिस घर पहुँचाने की कोशिश करता है। एक ऐसा शख्स जो टूटे दिलों को जोडना चाहता है। एक ऐसा शख्स जो रिश्तों में आई रंजिश की कडुवाहट का कुल्ला करवाकर (धोकर) शहद चटाता है। एक ऐसा शख्स जो बेहतरीन ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स से यदा-कदा मिलवाता रहता है। जो  दो युवा बच्चों का पिता है लेकिन उनकी चुस्ती-स्फूर्ति के आगे जवान भी झंडू च्यवनप्राश के विज्ञापन में आने वाले थके युवा अभिनेता की तरह लगते हैं। जो हर चेहरे पर मुस्कुराहट देखना चाहता है। और हमेशा ये गीत गाता है :-
 

01 April 2011

अप्रैल ही क्यों हम तो हमेशा से फूल हैं

गूगल से साभार
आज 01 अप्रैल है, नये बही खाते शुरु करने होते हैं। सुबह खरीदने गया तो पिछले वर्ष के मुकाबले उन्हीं फाइलों और किताबों के लिये तकरीबन 30% ज्यादा मूल्य चुकाना पडा। बिल मांगने पर पहले तो दुकानदार भडक गया कि पहले बताना चाहिये कि पक्का बिल लेना है। मैनें कहा मैं तो 5%टैक्स देने को तैयार हूँ, तो कहने लगा कि दो-दो बार टोटल करना पडा। सुबह-सुबह एक दुकानदार का यूं बिना कारण क्रोधित होना, मेरा भी मूड अजीब सा हो गया है। बन गया जी अप्रैल फूल।

सुबह-सुबह विद्यालय में बच्चों की फीस जमा कराने, नयी कक्षा की पुस्तकें लेने गया था। पहले बच्चे की फीस और बस किराया मासिक 1000 रुपये देने पडते थे, अब मासिक 1550 रुपये का भार आ गया है। ऊपर से सालाना (एनुअल) चार्ज 5000 (पहले 3000रुपये था) अलग से जमा करना पडा। बन गया जी अप्रैल फूल।

न्यूज दिखाई जा रही है कि खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में 9-10% की गिरावट आई है। खाद्य वस्तुयें सस्ती हो रही हैं। लेकिन ऑफिस में लंच के लिये टिफिन वालों ने 50रुपये को बढाकर 60रुपये प्रतिटिफिन कर दिया है। बन गया जी अप्रैल फूल।

पान की दुकान (जो पहले मैनें गुमटी लगाई थी उसे) मेरे नौकरी लगने के बाद छोटे भाई ने सम्भाल ली थी। करीबन पाँच साल पहले गुमटी हटा कर मैनें उसको दुकान खुलवा दी और थोडा कनफैक्शनरी टाईप का सामान भी रखवा दिया। शाम को ऑफिस से वापिस घर जाते वक्त अब भी पान-तम्बाकू आदि खरीदारी करके मैं ही लेकर जाता हूं, उसकी दुकान के लिये। कल पान खरीदते वक्त पान के जो भाव सुनें, एकबारगी लगा कि अब भाई का काम-धंधा बदलवा देना चाहिए। जिस भाव से रोजाना खरीद होती थी (हालांकि धीरे-धीरे महंगा तो हो रहा था) उससे दो-ढाई गुना भाव में खरीदी की। बन गया जी अप्रैल फूल

दूसरे सामान वाले भी मुँह-मांगे रेट मांगने लगे हैं। कुल  40 रुपये का पैकिट 200 रुपये का बिकने लगा है। मैनें एक पोस्ट लिखी थी तम्बाकू पर बैन लगाने से क्या होगा। यहां थोक बाजार में वही होने लगा है, जिसका अंदेशा था।  गुटखा-तम्बाकू की फैक्टरियां सील हैं और जमाखोर मुंहमांगी कीमत वसूल रहे हैं और चांदी कूट रहे हैं। अगर टैक्स ही इतना बढा दिया जाये तो कुछ तो सरकार के खजाने में जायेगा ही।