चित्र गूगल से साभार |
कुछ समय से मेरे भीतर तमोगुण की प्रमुखता बढती जा रही है। यानि तमोगुण में जकडे जाने के कारण आलस्य, निद्रा और मोहिनी वृति बढ रही है। कई दिनों से नाच, गाना, खेलना नहीं कर रहा हूँ। मादक द्रव्यों की तरफ ज्यादा आकर्षण है, जो कामवासना को भी बढाते हैं और जीवन में रुकावट भी पैदा कर रहे हैं। यानि सारी ऊर्जा उन क्रियाओं को करने में चली जाती है जो आलस में ले जा रही हैं। 4-4 घंटे कम्प्यूटर गेम खेलने जैसे फालतू के कामों में पूरा समय व्यतीत हो रहा है। नकारात्मक विचार भी ज्यादा आने लगे हैं।
सत्वगुण तो कभी प्रमुख हुआ ही नहीं, बस उसके होने का अभिनय मैं करता रहा। हाँ रजोगुण की प्रमुखता काफी समय तक रही, जिसने मुझे कर्म करने, मेहनत करने और विकास की राह पर लगाये रखा। रजोगुण की प्रमुखता होने के कारण बहुत दिनों तक आसक्ति और धन की भाग-दौड में लगा रहा। कुछ करना है, कुछ करके दिखाना है जैसे वाक्य याद रहने लगे थे। लेकिन सारी ऊर्जा एक ही राह से निकलती रही और कुछ कर भी नहीं पाया।
लेकिन अब देख रहा हूँ कि जो मैं नहीं हूँ वैसा होने का अभिनय ज्यादा कर रहा हूँ। किसी सहकर्मी को आदर देने का अभिनय कर रहा हूँ और उसकी उपलब्धियों से ईर्ष्या कर रहा हूँ। किसी मित्र से मुस्कुरा कर हाथ मिला रहा हूँ और उसके सुख से दुखी भी हूँ। किसी पडोसी या रिश्तेदार के कमाये धन को गलत बताता हूँ, क्योंकि मैं उतना नहीं कमा पाया। पत्नी को कह रहा हूँ कि दोस्तों-रिश्तेदारों में मेलजोल और सम्बन्धों में गर्माहट बनाये रखने के लिये बात करती रहा करो, लेकिन खुद बिना आवश्यक कार्य के किसी को भी फोन नहीं लगाता।
तम - जो ठहराव दे, विश्राम दे
रज - जो गति दे, त्वरा दे, जीवन दे
सत्व - जो सुख दे, शांति दे, शुद्धता दे
मुझे अपने अन्दर इन तीनों की मात्रा को संतुलित करना होगा।