31 January 2010

फतू की साईकिल

तेरह साल का फत्तू चौधरी साईकिल चलाना सीखै था।
बार-बार साईकिल पर चड्ढन की कोशिश करता और गिर जाता।
एक बार जब वो गिरा तो एक ताऊ उडे तै गुजरै था।
ताऊ बोल्या - कोये बात ना बेटा, उठ जा-उठ जा, किस्से ने भी कोन्या देखा
फत्तू बोल्या - ताऊ, तन्नै देखकै के पूंझड पाड ली (पूंछ खींच ली)
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एक बर रलदू अपने दोस्त फत्तू के साथ ससुराल गया
फत्तू ने शर्म के मारे पेट भर कै खाना नही खाया
रात में उसकी आंख खुलगी
उसने रलदू को जगाया, और बोला दोस्त मन्नै भूख लाग री सै
रलदू - जा रसोई में देख कुछ ना कुछ रखा होगा, चुपचाप रसोई में जाकर खा ले
फत्तू - अगर कोये उठ गया तो बेइज्जती हो ज्यागी
रलदू - अगर कोये उठ जा तो तू भौं-भौं कर दिये, सब नूं समझैंगें के कुत्ता होगा
फत्तू रसोई में खाना ढूंढन लाग्या
अंधेरे में उसका हाथ लाग कै एक राछ (बर्तन) गिर गया
आवाज सुनकै रलदू की सासू की आंख खुलगी
सासू - कौन सै रसोई के भीतर
इब फत्तू डर के मारे भौं-भौं करना भूल गया और कुत्ते की बात याद रही
फत्तू जोर से बोल्या - पाड लूंगा (काट लूंगा)

24 January 2010

रलदू चौधरी की बकरियां

रलदू चौधरी पशु व्यापारी था। एक बार कोई ग्राहक उसके पास बकरी खरीदने आया। रलदू ने उसको तीन बकरियां दिखाई और उनकी खासियतें बताने लगा।
रलदू - भाई साहब, ये पहली बकरी हर रोज दो किलो दूध देती है और साल में एक बार बच्चा देती है। ये दूसरी वाली हर रोज चार किलो दूध देती है और साल में दो बार बच्चा देती है, और ये तीसरी वाली हर रोज छह किलो दूध देगी और एक साल में तीन बार बच्चे देगी।
ग्राहक - चौधरी साहब, इनकी कीमतें भी तो बताईये।
रलदू - पहली 5000 रुपये की, दूसरी 3000 रूपये की और तीसरी की कीमत है जी केवल 1000 रुपये।
ग्राहक - ये क्या चौधरी साहब, जो सबसे ज्यादा दूध और सबसे ज्यादा बच्चे देती है उसकी कीमत कम और कम दूध देने वाली बकरियों की ज्यादा, ऐसा क्यों?
रलदू - भाईसाहब, आखिर कैरेक्टर (चरित्र) भी कोई चीज होती है कि नहीं।

17 January 2010

रलदू की ससुराल

एक बै रलदू चौधरी  अपनी बहू नै लेने ससुराल गया। राम-रमी अर नाश्ता-पानी कर कै रलदू ने अपनी सास को कहा - सासूजी मेरी बहू नै घाल (भेज) दो, मैं लेन आया सूं
उसकी सास ने कहा - बेटा, आज रुक जाओ, कल चले जाना
रलदू - ना जी, मैं तो आज ही ले कर जांऊगां
सासू ने उसे खूब समझाया, पर रलदू अपनी बात पर अडा रहा। रलदू की और सास की तू-तू मैं-मैं होने लगी। दोनों तेज-तेज आवाज मैं बोलने लगे। इतनी देर में रलदू की छोटी साली भी उस कमरे में आ गयी।
साली - जीजा, तन्नै शर्म आनी चाहिये, इतनी जोर-जोर से बोलते हुए, यो तेरा ससुराल सै
रलदू - या बात तू अपनी मां नै भी तो समझा सकै सै, के यो उसकी ससुराल कोन्या

चलो कहा-सुनी करकै रलदू रुकने के लिये राजी हो गया। दोपहर के खाने का वक्त हो गया था। खाने में पालक बनी थी। रलदू - सासू जी, मुझे पालक की सब्जी पसन्द नही है।
सासू - बेटा, पालक में आयरन होता है, आंखों के लिये और स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद है। पालक तो जरूर खानी चाहिये।
सांझ नै रोटी खाने बैठा तो देखा फेर पालक की सब्जी बना राख्खी सै
रलदू - इब फेर पालक की सब्जी, सासू जी दोपहर में भी तन्नै यही सब्जी बनाई थी। तब तो मैनें खा ली थी, कि चलो ससुराल में ज्यादा नखरे नहीं करने चाहिये।
सासू - बेटा, पालक की सब्जी तो भोत आच्छी हो सै, इसमें आयरन होवै सै, स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद है। पालक तो जरूर खानी चाहिये।

अगले दिन सुबह नहा-धो कर रलदू चलने के लिये तैयार हो गया।
तो सासू ने कहा- बेटा रोटी  बनगी सैं, खा-पी कै जाईये।
रलदू - इब फेर पालक की सब्जी
सासू - पालक की सब्जी तो भोत आच्छी हो सै, इसमें आयरन होवै सै……………………
रलदू - के आयरन आयरन लगा राखी सै, सासू जी तम नूं करो अक, एक सरिया (Iron Rod) ले कै मेरे हलक महै (गले में) घुसेड दो

16 January 2010

छोटी सी दुल्हनियां तेरे अंगना में डोलेगी Radhika Gori Se

श्याम दी कमली नामक एल्बम से मैनें आपको एक गीत (भजन) ना जी भर के देखा सुनवाया था। आज भी इसी एल्बम से इस खूबसूरत भजन  के गायक श्री विनोद अग्रवाल जी  भजन और सूफी गायक के साथ-साथ संत भी हैं। इनके कंठ से निकले गीत श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर देते हैं।
यह गीत करीबन 15 मिनट का है। इसलिये आप खाली समय में सुनेंगें तो ही इस मधुर संगीत का आनन्द ले पायेंगें। Radhika Gori Se


इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

14 January 2010

राज जी इनका फिसलना भी देखिये


राज भाटिया जी दो दिन पहले फिसल ही गये….…इस उम्र में। राज जी बडे जिन्दादिल आदमी हैं। उन्होंनें इस घटना को भी मजेदार बना दिया और चोटिल होने पर भी हम लोगों से गपशप लगाते रहे। और यह गंभीर वाक्या भी रोमांटिक सा हो उठा था। वाकई राज जी हर पल को एंज्वाय करते हैं। आशा है कि अब एकदम स्वस्थ होंगें।  तो आज आप लोग भी हर उम्र के लोगों के फिसलने को एंज्वाय कीजिये और अपना फिसलना याद कीजिये।

13 January 2010

मैं ही सही, क्योंकि तू गलत है

कुछ लोग खुद को सही, श्रेष्ठ, बेहतर साबित करने के लिये  बजाय अपनी उपलब्धि  बताने के ; दूसरे को गलत, निकृष्ट, कमतर साबित करने में अपनी सारी शक्ति और ऊर्जा लगा देते हैं।
प्रत्येक को ऐसी प्रतीति हो सकती है कि जिस मार्ग पर मैं जा रहा हूं, वह सही है। इस प्रतीति में कोई भूल भी नहीं है। लेकिन जैसे ही यह भ्रांति भी हो जाती है कि जिस मार्ग से मैं जा रहा हूं, वही सही है, वैसे ही झगडा शुरू हो जाता है। शायद इतने से भी उपद्रव न हो, अगर मैं यह जानूं कि यह मार्ग मेरे लिये सही है। लेकिन अहंकार यहीं तक रुकता नहीं। अहंकार एक निष्कर्ष अनजाने ले लेता है कि जो मेरे लिए सही है, वही सबके लिए भी सही है।
 
धर्मों के नाम से जो उपद्रव है, वह धर्मों का नहीं, अहंकारों का उपद्रव है। मेरा अहंकार यह मानने को राजी नहीं होता कि कोई और ढंग भी सही हो सकता है। यही मानने को तैयार नहीं होता कि मेरे अतिरिक्त कोई और भी सही हो सकता है। तो मेरा ही रास्ता होगा सही, मेरी उपासना पद्धति होगी सही, मेरा शास्त्र होगा सही। लेकिन मेरा यह सही होना तभी मुझे रस देगा, जब मैं सब दूसरों को गलत साबित कर डालूं।

और ध्यान रहे, जो दूसरों को गलत करने में लग जाता है, उसकी शक्ति और ऊर्जा उस मार्ग पर तो चल नही पाती, जिसे उसने सही कहा है; उसकी शक्ति और ऊर्जा उनको गलत करने में लग जाती है, जिन पर उसे चलना ही नहीं है।

कुछ पंक्तियां गीता-दर्शन (भाग चार) अध्याय आठ से साभार ली गई है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेंगी।