23 March 2010

एक टिप्पणी के जवाब में

जबरदस्ती, बाध्य करने से या दमन द्वारा कोई कार्य करवाने से वह कार्य सफलता की श्रेणी में नही आ सकता। जो कार्य स्वस्फूर्त होता है, उसी में आनन्द है। जो दबाया जायेगा, वह तो सापेक्ष विरोध से प्रकट होगा ही। अगर संस्कृति बचाने के नाम पर कोई आपको धोती-कुर्ता पहनने के लिये बाध्य करे तो??? आप तो वही पहनेंगें ना जो आपको अनुकूल है। जिन्हें छोटे वस्त्र अनुकूल लगते हैं, उनकी अपनी समझ है। 
त्याग भावना और अतिथि देवो भव: की सस्कृति की वजह से भारत ने कितना नुक्सान उठाया है, यह आप भी भली-भांति जानते हैं।
जरूरी नहीं कि जो सदा से चला आ रहा है या हमारे पूर्वजों द्वारा किया जा रहा है, वह सारा का सारा सही हो। उसमें भी खामियां हो सकती हैं।
इसके अलावा भी हम कितने कार्य अपने वेद-पुराणों के अनुसार करते हैं???
"आत्मा अजर-अमर है" इसका प्रचार केवल हिन्दू धर्म में ही किया गया है और आज हिन्दू ही मौत से सर्वाधिक भय खाने वाली कौम हैं, क्यों??
आपकी बात सही है कि आज हर हिन्दू के सामने अर्जुन जैसी चित्तदशा, मनोदशा और ऊहापोह है, मगर हम अब भी किसी कृष्ण के अवतरित होने और दुष्टों का सफाया करने का इंतजार करते हैं, क्यों?
गीता में जितना कुछ अर्जुन के लिये कहा गया है, उसे हम अपनी सुविधानुसार तोड-मरोड कर अपने लायक बना लेते हैं।

5 comments:

  1. जरूरी नहीं कि जो सदा से चला आ रहा है या हमारे पूर्वजों द्वारा किया जा रहा है, वह सारा का सारा सही हो। उसमें भी खामियां हो सकती हैं।
    अजी कोई उदाहरण भी देते...वेसे हमे केसे पता चलता है कि उस मै कुछ कमिया है???

    ReplyDelete
  2. आज हर हिन्दू के सामने अर्जुन जैसी चित्तदशा, मनोदशा और ऊहापोह है, मगर हम अब भी किसी कृष्ण के अवतरित होने और दुष्टों का सफाया करने का इंतजार करते हैं, क्यों?

    हर व्यक्ति के अंदर अर्जुन के ऊहापोह भी हैं और कृश्ण के स्वतःस्फूर्त समाधान और विवेक भी..कबीर ने कहा मोको कहां ढूंढे रे .. हम सुनते नहीं, देखते नहीं

    ReplyDelete
  3. आदरणीय राज जी
    जैसे होली दीवाली पर चौराहों पर खाने-पीने के वस्तुयें पूजा के नाम पर चढाना, बाद में वो सब पैरो के नीचे आती रहती हैं।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  4. आदरणीय राज जी
    श्राद्ध के नाम पर भूखे, गरीबों और जरुरतमंदों को खाना खिलाने के बजाय भरे-पूरे पण्डितों को खिलाना और कपडे-लत्ते और अन्य बहुत सारा सामान और नकदी देना।
    क्या यह सब सामान हमारे मरे हुये पूर्वजों-पितरों तक पहुंच जाता है?

    प्रणाम

    ReplyDelete
  5. क्या पहना जाये, क्या खाया जाये, आदि मुद्दे बहुत छोटे हैं। पर सामान्यत: जब असली ध्येय, लक्ष्य स्पष्ट न हों या उनपर सोचने की मंशा न हो तो इन्ही मुद्दों पर ऊर्जा क्षरित की जाती है।
    वर्तमान हिन्दू जीवन पद्यति की त्रासदी है यह।

    ReplyDelete

मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।