30 April 2009

क्षमा मांगने का यह कौन सा तरीका

मेरे एक बहुत प्यारे मित्र हैं बेदू नाम है उनका, बिल्कुल भाई जैसे हैं । उनकी जितनी तारीफ करूं उतनी कम है। वो सभी की सभी बातें उनमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान है, (जो आज के मनुष्य में हो सकती हैं) और जिन्हें आमतौर पर अवगुण कहा जाता है। और जिन बातों को गुण कहा जाता है (जो आज के मनुष्य में बहुत कम मिलती हैं) वो भी उनमें करीब-करीब समानुपात में हैं। उनके साथ रहते या घूमते हुए मेरे कई अनुभव और घटनाये मुझे याद आती हैं। उनमें से एक आज आपको बताता हूं।
एक बार हम दोनों Fun Town & Water Park घूमने गये। वहां पर घूमते-घामते अचानक बेदू ने हमारे पीछे चल रही दो बहुत ही मोटी लडकियों के डील-डोल और चाल की नकल करते हुए हाथ फैला कर चलना शुरू कर दिया। जाहिर सी बात है उन लडकियों को बुरा लगना था। उनमें से एक को बहुत गुस्सा आ गया और वो बेदू के सामने आ कर चप्पल निकाल कर कुछ-कुछ कहने लगी । मैं थोडी दूर खडा यह सब देख रहा था और मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। बेदू माफी तो क्या गलती मानने को भी तैयार नही था । मैने पास आकर उनसे कहा कि इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूं, आप शांत हो जाईये। तभी उस कन्या के पतिदेव भी आ गये उन्होंने वहां बडा शोर-शराबा किया। भीड और मामला बढता देख मैने बेदू से कहा कि बेटा तू माफी मांग ही ले, क्योंकि गलती तो तूने की है । (कम से कम मेरे लिए ही सही, वरना आज मुझे भी थाना-पुलिस वगैरा देखनी पडेगी) । काफी समझाने-बुझाने के बाद जब उसने माफी मांगी तो किस स्टाईल में -
बेदू उन लडकियों से - ठीक है भाई गलती हो गई, माफ करो और अब बात खत्म करो ।
बेदू आस-पास खडे लोगों और सिक्योरिटी वालों से - वैसे मैने कोई छेडखानी तो की नही, छोटा सा मजाक ही किया था। खामखा हल्ला मचा रहे हैं।
बेदू उस लडकी के पतिदेव से - कहीं कोई रिपोर्ट करनी है तो कर सकते हो, वैसे जब औरतें साथ हों तो तुम्हें झगडे नही करने चाहिये।

मेरी समझ में यह नही आ रहा था कि ये बंदा माफी मांग रहा है या धमकी दे रहा है। मेरे विचार से तो माफी मांगने का मतलब यह होता है कि हमें सचमुच अपनी गलती का एहसास हो गया है और आंईदा ऐसी गलती दुबारा ना हो इस बात का ख्याल रखेंगें।
लेकिन कई लोग माफी भी धमकी के अंदाज में या ऐसे कि कोई अहसान कर रहे हैं या कि दूसरों ने मजबूर कर दिया है या दूसरे कह रहे हैं इसलिये मांगते हैं। ब्लाग जगत में भी एक-दो बार इसी तरह का माफीनामा देख चुका हूं। आप को भी याद होगी कोई ना कोई ऐसी घटना॥……………………॥

27 April 2009

क्या हम दूध से बनी चाय पीते हैं

ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर बिकने वाली चाय जिस दूध से बनती है वो दूध नही पोस्टर कलर होता है। 15 रुपये के पोस्टर कलर की एक शीशी 10 लीटर पानी में मिलाई जाती है और 10 लीटर दूध तैयार । नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों के बीच एक थोक बाजार में स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले व्यापारी ने बताया कि पोस्टर कलर की बिक्री में बेतहाशा वृद्धी हुई है। इसे चाय बनाने वाले बहुत अधिक मात्रा में खरीद रहे हैं।