30 August 2008

इसमें कोई शिकवा न शिकायत न गिला है

ये भी कोई खत है के मुहब्बत से भरा है

मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूं मगर

सफ़र, सफ़र है मेरा इंतजार मत करना

मुझसे ना करो बात कोई बात नही है

औरों से मगर हाल मेरा पूछ्ते रहना

बारिशों के बाद सतरंगी धनक आ जायेगी

थोडा रो लोगे तो चेहरे पे चमक आ जायेगी

ये दबदबा, ये हुकूमत, ये नशा ए दौलत

किराएदार हैं सब घर बदलते रहते हैं

अपनी औलाद से ताजीम की उम्मीद न रख

अपने मां-बाप से जब तूने बगावत की है

वहां भी काम आयेगी मुहब्बत

जहां कोई नही होता किसी का

चल भी दिये वो छीन कर सब्र और करार ए दिल
हम सोचते रह गये कि माजरा क्या है

28 August 2008

वो

हम उन्हें अपना बनाने की बात करते हैं
वो हैं कि जमाने की बात करते हैं
गुस्से में लगते हैं वो कुछ इस कदर ज्यादा हसीन
कमल के फूल भी शरमाने की बात करते हैं
चाँद तारों का जिक्र करता है तो करे कोई
हम तो सिर्फ उनको मनाने की बात करते हैं
इस सादगी पर कैसे न फिदा हो यह दिल
जो बार-बार हमें यूँ बहलाने की बात करते हैं
जब भी जिक्र होता है उनकी नशीली आँखो का
वो समझते हैं कि मयखाने की बात करते है
छेडा है जब कभी भी महफिल में उन्हें हमने
वो फिर न छेडने की कसम खाने की बात करते हैं
हम उन्हें अपना बनाने की बात करते हैं
वो हैं कि जमाने की बात करते हैं

दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे

ऐसा पहली बार हुआ है सतराह अट्ठराह सालों में
अनदेखा अनजाना कोई आने लगा ख्यालों में
आँखों की खिडकी पर एक साया सा लहराता है
दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक दे कर जाता है
गहरी गहरी काली आँखें मुझसे मुझको पूछ्ती हैं
हाथों की रेखाओं में इक चेहरा सा बन जाता है
उसकी सांसे रेशम जैसी गालों को छू जाती हैं
उसके हाथों की खुशबू है अब तक मेरे बालों में
हां ऐसा पहली बार हुआ है सतराह अट्ठराह सालों में
अनदेखा अनजाना कोई आने लगा ख्यालों में

26 August 2008

मेरे खुदा न कोई इतना प्यार को तरसे

जुदा न करना किसी को किसी के दिलबर से

हम छोड़ चले हैं महफ़िल को

याद आये कभी तो मत रोना

लिखा न किताबों में मुझे वक्त ने वरना

दिल्ली की तरह मै भी कई बार लुटा हूँ

छीनकर रोशनी सितारों की
जगमगाना कोई कमाल नही
जिन्हें आदत होती है हँसने की
वो बहुत रोते हैं अन्दर ही अन्दर

ताजा कलियों के तबस्सुम का शबब क्या होगा

आया करती है जवानी में हँसी आप ही आप

मुहब्बत

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मुहब्बत नाम है किसका, शुरु कहाँ से होती है

इसे पैदा किया किसने, खत्म कहाँ पे होती है

मुहब्बत नाम चाहत का, शुरु आँखों से होती है

इसे पैदा किया दिल ने, खत्म साँसों पे होती है

25 August 2008

मैं भी चला

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चलने की तमन्ना थी
पहुँचने की नही थी
अब डूब भी जाऊँ
तो मुझे पार समझना